सिगरेट : एक प्रेम कथा

Tuesday, November 9, 2010

सिगरेट पीने वाले इसे एक प्रेम कथा मानते हैं क्योंकि इसमें भी कुछ खोकर ही कुछ मिलता है । पर मेरा ये कहना कि " इस प्रेम-कथा में आपको पैसा खोना है और बड़े बड़े मर्ज़ पाने हैं " । पर भाई ! पीने वाले तो सिर्फ पीते हैं उनको किसी का कोई फर्क नहीं पड़ता । मेरा ये मानना है कि सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और मैं "शायद" इसी कारण से इस "सद्गुण" से काफी दूर हूँ । मज़े की बात ये है कि ये एक ऐसा सद्गुण है जिसके ना होने से मैं ज्यादा संतुष्ट हूँ । पर मेरा प्रश्न ये है कि "आखिर लोग सिगरेट पीते क्यों हैं ?" कुछ सज्जन कहते हैं "जब पूरा देश तो सिगरेट पीता है तो क्या हम लोग पागल हैं? " तब मैं ये कहता हूँ कि भैया कौन पागल है और कौन नहीं ये तो मैं नहीं जानता पर ये वही देश जहाँ लालू जैसे लोग सांसद हैं । बाकी हिसाब आप स्वयं लगा लें । हमारे कुछ मित्र हैं जो इस सद्गुण के अत्यंत जिम्मेदार और अनुभवी अधिकारी हैं । ( मैं नाम नहीं बताऊंगा क्योंकि शेक्सपीयर ने भी कहा है "नाम मां का धरा अहै " ) । ये लोग पूरी जिम्मेदारी से ये काम निभाते हैं और दिन में दो-चार सिगरेट तो ऐसे भस्म कर ही डालते हैं । पर वे ये नहीं चाहते कि इस सद्गुण की "भनक" उनके परिवारजन को लगे । अन्यथा उनका भांडा और साथ में ना जाने क्या क्या "फूट" जायेगा । मेरे पूछने पर उन सुधीजनों में से एक मित्र ने इस प्रकरण पर पूरी ताकत से और जितना उनका ज्ञान था उस हिसाब से "प्रकाश" उडेला और कहा "देखिये, मरना तो सबको है तो क्यों ना पी के मरें " । अब मैं निरुत्तर था क्योंकि हमारे भाई साब ने भारतीय संस्कृति का वो चैप्टर खोल दिया था जिसके बाद केवल मोक्ष आता है और उस दिशा में भटकने का मेरा आज बिलकुल मन नहीं था ।
मेरे एक लखनवी और सहपाठी मित्र ने मुझे बताया था कि " 90 % लोग जो सिगरेट पीते हैं वो केवल दिखावे और शान के लिए पीते हैं पर ये "शान" कब उनकी "जान" पर बन आती है इसका उनको कोई अंदाज़ा नहीं होता " पर मज़ेदार बात तो ये है कि इतना सब पता होने के बावजूद वो खुद भी पीते हैं और सिर्फ पीते ही नहीं हैं , सिगरेट कंपनी वालों को जल्दी ही काफी अमीर करने पर तुले हुए हैं । जो भी हो, मैं शायद कभी समझ नहीं पाउँगा कि सिगरेट में ऐसा क्या है जो लोग इतना पीते हैं । पर ये ज़रूर कह सकता हूँ कि ये एक प्रेम कथा की तरह है, जिस पर किसी बेधड़क शायर ने कहा है -
" एक आग का दरिया है और डूब के जाना है,
बाद में उसी आग के दरिये से सिगरेट भी जलाना है "

" अहिंसा किसी एक व्यक्ति-मात्र को प्रभावित नहीं करती, ये वो गंगा है जो पूरे समाज को पाप-मुक्त बनाती है "

Saturday, October 30, 2010

कुछ दिन पहले मेरी एक "भाई साब" से गरमा-गर्म, तड़कती- फड़कती बहस हो गयी कि क्या गाँधी आज के समय में उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वो अपने समय में थे ? मेरा तो यही कहना है कि " हाँ , गाँधी जी, हर जगह, हर बात में, हर समय प्रासंगिक थे, हैं और रहेंगे । क्योंकि उनको अप्रासंगिक मानने वाले लोग 1920 में भी कम नहीं थे और 1947 में भी । पर उन्होंने सबको गलत साबित किया और भारत को दुनिया की एकमात्र अहिंसक स्वतंत्रता क्रांति का जनक बनाया । दरअसल गाँधी एक व्यक्ति नहीं थे , वे एक सिद्धांत थे और यही सिद्धांत ही है जो हर समय में प्रासंगिक है । गाँधी से मेरा मतलब उसी सिद्धांत से है । आप एक व्यक्ति से लड़ सकते हैं , उसे मार सकते हैं पर एक सिद्धांत को नहीं मार नहीं सकते , खासतौर पर तब तक तो बिलकुल नहीं जब आप उसका उल्टा ही कर रहे हो । गाँधी ने जो सिद्धांत दिया वो आम आदमी का पक्षधर था और इसीलिए वो सफल भी हुआ । जो लोग ये मानते हैं कि गाँधी अब के समय में लोगों को उतना प्रभावित नहीं कर सकेंगे , वो लोग अन्दर से कमज़ोर हैं और उनको खुद पर यकीन नहीं है । दूसरी सबसे बड़ी बात ये है कि
" अहिंसा किसी एक व्यक्ति-मात्र को प्रभावित नहीं करती, ये वो गंगा है जो पूरे समाज को पाप-मुक्त बनाती है । "

" बिटवा, अगर तनिक आपन दिमाग घिसत्यौ तो ये नहीं बकत्यौ "

Saturday, October 2, 2010

न चाहते हुए भी मुझे आखिरकार इस मुद्दे पर लिखना ही पड़ा । पर मैं पूरी तरह से इसके लिए दोषी नहीं हूँ । भारतीय राजनीति में कुछ ऐसे " बे-हया " लोग हैं जिनको मैं अपने साथ इस पोस्ट को लिखने के लिए दोषी मानता हूँ । इन लोगों ने वही किया जो नहीं करना चाहिए था , " मुंह खोला और भक्क से उगल दिया " । इन सब में एक बड़के समाजवादी ( जिनको समाजवाद का " स " भी नहीं मालूम ) हैं । वो फरमाते हैं " न्याय आस्था नहीं सबूतों के आधार पर होता है " । अब कोई इनकी कनपट्टी पर दो चपेंटे चिपकाये और इनको समझाए कि " बिटवा, अगर तनिक आपन दिमाग घिसत्यौ तो ये नहीं बकत्यौ " । इनको बड़ा कानून छांटना है । न्यायमूर्तियों ने ये बात साफ़ साफ़ लिखी है कि सभी निर्णय हर तरह के साक्ष्य और तथ्यों को ध्यान में रखके दिए गए हैं । अगर इन लोगों ने " अर्कियोलोजिकल सर्वे ऑव इंडिया " (ASI ) नामक एक चिड़िया का नाम सुना होता तो ये सब न उगलते । (ASI ) ने सारी जांच के बाद अपनी संस्तुति उच्च न्यायालय को प्रस्तुत कर दी थी । ऐसे ही कई अन्य सबूतों के आधार पर ही ये निर्णय दिए गए हैं । दूसरी सबसे बड़ी बात, ये काम जिसका है उसने कर दिया है । अब इन लोगों के पास ज्यादा कुछ है नहीं करने को । क्योंकि माननीय उच्च न्यायालय का निर्णय बहुत अच्छा है और भविष्य की ओर उन्मुख भारत के लिए है । कहीं किसी प्रकार को कोई हिंसक घटना का न होना इसका सबसे बड़ा प्रमाण है । आज तक दुनिया में किसी भी धार्मिक विवाद का निर्णय न्यायपालिका नहीं कर सकी है । भारत की जनता ने न्यायपालिका में जो विश्वास दिखाया है वो काबिले तारीफ है और ये हमारे सामाजिक निकाय और लोकतान्त्रिक ढांचे की जीत है ।

दरअसल ये जो राजनेता लोग हैं इनको बस एक ही काम आता है " अपनी औकात पर उतर आना " । कोई मरे, कोई जिए, इनको कुछ नहीं मालूम ( जैसे गब्बर कहता है " हमको कुच्छ नई मालूम ) । तो सबसे बड़ी बात " अपनी अकल लगाओ यार !!! "

अंत में, आज गाँधी जयंती है । अहिंसा और त्याग की उस प्रतिमूर्ति को मेरा शत शत नमन ।

"कॉमनवेल्थ राग"

Sunday, September 26, 2010

आज कल हर समाचार चैनेल पर बस एक ही राग बज रहा है , "कॉमनवेल्थ राग" । तो मैने सोचा कि मैं भी इस मामले पर अपनी तान छेड़ूँ । सभी एडिटर अपनी तरफ से ऊँचे ऊँचे सुर लगाके दिल्ली सरकार और खेल मंत्रालय की बखिया उधेड़ रहे हैं । आज समाचार सुना तो किसी ने बताया कि दक्षिण अफ्रीकी टीम के मैनेजर ने कहा कि उन्हें खेलगाँव के एक कमरे में एक भारतीय सांप दिखा है । अब यहाँ पर दो संभावनाएं हैं जो मैं देख रहा हूँ ।

1. कि ये सांप भारतीय है, मैनेजर को कैसे पता ? इसका मतलब वो अपना सांप साथ लाये हैं और अगर लाये भी हैं तो सांप खेल गाँव में कैसे रह सकता है । उसके लिए क्या दूसरी व्यवस्था नहीं होनी चाहिए । भाई " अतिथि देवो भवः " ।

2. दूसरी संभावना ये हो सकती है कि वो सही में भारतीय सांप था क्योंकि मंत्रालय ने दक्षिण अफ्रीकी खिलाडियों को उनके घर जैसा माहौल देने के लिए उनके कमरे में सांप छोड़ा था । शायद इसीलिए उनकी टीम का मैनेजर गुस्सा रहा था कि उनके सांप को अनदेखा ( ignore ) किया गया ।

पर ये तो सांप कि बात हुयी । ऐसी ही कई घटनाएं हैं । आज दिल्ली सरकार ने काम खतम करने कि डेड लाइन फिर बढ़ा दी है । जल्दी ही इसे बढ़ाकर समापन दिवस तक कर दिया जायेगा । इसी तरह खबर आई कि खेल गाँव में इन्टरनेट कि व्यवस्था अच्छी नहीं है । हो सकता है कि किसी अधिकारी ने पास के ही किसी साइबर कैफे वाले से पैसे खाकर खेलगांव में नेट कि व्यवस्था गड़बड़ कर दी हो । होने को तो बहुत कुछ, और कुछ-कुछ भी हो सकता है पर सही बात तो ये है कि सबसे पहले तो ये हो रहा है कि संसार में भारत की गजब की भद्द पिटी है । अब दोष चाहे कलमाड़ी-घोडागाड़ी को दें या गिल-बिल को दें, बंटाधार तो हो ही चुका है । बस अब किसी तरह ये खेल निपट जायें । फिर मैं मनमोहन और कलमाड़ी के साथ गंगा नहाने का प्रोग्राम बनाऊं । अब आप पूछेंगे कलमाड़ी क्यों ? अरे भाई ! है तो अपना ही बन्दा ( भले ही हो थोडा गन्दा ) ।

"शक्ति और क्षमा"

Monday, September 13, 2010

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा ?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।

तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे ।

उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो , तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
-राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह 'दिनकर'

A Serious sarcasm

Friday, September 10, 2010

Looks like everyone want to "donate" in his own way.

Cartoon Courtsy: Satish Acharya (www.cartoonistsatish.blogspot.com)

" परिवर्तन खुद से शुरू होता है "

Friday, September 3, 2010

मेरे पिछले पोस्ट में मैंने एक कोटेशन लिखी थी - YOU DON'T HAVE TO BELIEVE IN YOUR "GOVERNMENT" TO BE A GOOD INDIAN, YOU JUST HAVE TO BELIEVE IN YOUR "COUNTRY" दरअसल मेरा ये मानना है कि सरकार एक साधन है, जनहित के कार्यों के संपादन के लिए । पर काम तो हम सबको खुद ही करना होगा । सबसे पहले इस बात को भी मानना होगा कि यदि हम आने वाले समय में हमें नया, परिवर्तित और विकसित भारत चाहिए तो पहले खुद को परिवर्तित करना होगा । केवल सरकार को दोष देने से क्या होगा ? हम खुद अपने स्तर पर समाज के लिए क्या करते हैं ? क्या हम खुद कूड़ा नहीं फैलाते और फिर सरकार को सफाई न होने पर दोष देते हैं । सरकार के लोग कोई दूसरे ग्रह से नहीं आये हैं । वे सभी हमारे बीच में से ही हैं । वे हमारे ही प्रतिबिम्ब हैं । जैसा हम सबका रवैय्या रहता है , अपने जीवन के प्रति, दूसरों के जीवन के प्रति और देश के प्रति , वैसा ही रवैय्या सरकार का भी रहता है । तो फिर ये हो-हल्ला क्यों ? सबसे मोटी बात ये है कि हम सबको पहले खुद ऐसा कोई कार्य नहीं करना है जो हम खुद नहीं चाहते कोई और करे क्योंकि
" परिवर्तन खुद से शुरू होता है "

The Real Thought

Thursday, September 2, 2010

" YOU DON'T HAVE TO BELIEVE IN YOUR "GOVERNMENT" TO BE A GOOD INDIAN, YOU JUST HAVE TO BELIEVE IN YOUR "COUNTRY."

नन्हे मुन्ने बच्चे........

Saturday, August 14, 2010

15 अगस्त के मौके पर टीचर ने बच्चे से पूछा-" नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है ?
बच्चे ने जवाब दिया - "मुट्ठी में है तकदीर हमारी, हमने रिलायंस का फोन लिया है । "

ट्रेन रिज़र्वेशन का झमेला


कुछ दिन पहले की बात है मुझे रिज़र्वेशन कराने का सौभाग्य (?) प्राप्त हुआ । मैं रायबरेली से दिल्ली का रिज़र्वेशन करा रहा था । ट्रेन थी पद्मावत एक्सप्रेस । घर में कहा गया जितनी जल्दी जाओगे उतनी जल्दी रिज़र्वेशन हो जायेगा । पर एक बात बता दूं कि भारत में जल्दी करने से कुछ नहीं होता । आप चाहे जितनी जल्दी पहुँच जायें , आपको रिज़र्वेशन की लाइन हमेशा उतनी ही लम्बी मिलेगी । जैसे लगता इतने लोग भौतिक विज्ञान के किसी "नियतांक" (CONSTANT) के तरह सभी तरह क्रियाओं में "स्थिर" रहते हैं या फिर कोई उनपर "PAUSE" की बटन दबा कर भूल गया है । पर मैं भी क्या करता, जाकर लग गया उस लाइन में । पर उस समय तक काउंटर खुले नहीं थे । थोड़ी देर में वो कर्मचारी आ गया पर काउंटर खोलने में उसने वही शर्म और झिझक दिखाई जो एक नव-विवाहिता अपना घूंघट खोलने में दिखाती है । फिर धीरे से जनाब हम सबसे मुखातिब हुए । सब लोग उसे मन ही मन "गरिया" रहे थे पर सबके चेहरे कुछ और ही बयां कर रहे थे ।
मैं भी लाइन में लगा था कि कब "कपाट" खुलें और मैं भी दर्शन करूं । लाइन धीरे धीरे रेंग रेंग कर आगे बढ़ रही थी । पीछे वाले आगे वालों को कोस रहे थे - " भैया , सारी इन्क्वायरी यहीं कर लोगे का??.......जल्दी कीजिये भाईसाब.......अरे !! अगर तय नहीं था काहे आ गए रिज़र्वेशन करवाने ??.....कुछ ऐसी ही बातें निकल रही थी । कुछ लोग ऐसे होते हैं जो लाइन में नहीं लगते । वो बगल खड़े रहते हैं और बिना लाइन में लगे ही अपना काम करवाना चाहते हैं । पर वे जैसे ही अपना काम करवाने के लिए काउंटर की तरफ लपकते हैं , कोई सुधी व्यक्ति उनको सुवचन चिपका देता है । और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो खुद काउंटर तक नहीं आते , वे दूर खड़े रहते हैं और अपनी पत्नी या बहन या किसी सम्बन्धी महिला को काउंटर पर भेज देते हैं । वो महिला बिना लाइन में लगे रिज़र्वेशन करवाकर चली जाती हैं और कोई पुरुष जो लाइन में खड़ा है वो उस महिला से बदतमीजी तो कर नहीं सकता पर मन ही मन उस आदमी को ऐसे-ऐसे "सुवचन" देता हैं कि अगर कोई सुन ले तो बहरा हो जाये ।
समय बिताने के लिए कुछ लोग सचिन-धोनी का करियर बनाने लगते हैं और कुछ लोग राजनीति में नए नए आयाम जोड़ देते हैं । पर सबका ध्यान अपना नम्बर आने पर ही केन्द्रित होता है । और नम्बर आते ही अपने आस पास खड़े लोगों को ऐसे भूल जाते हैं जैसे गजिनी में आमिर खान ।और जब रिज़र्वेशन मिल जाता है तो बाकी लोगों को ऐसा महसूस करवाते हैं जैसे- "तुम लोग अभी यहीं तक पहुंचे हो? मुझे देखो मैं तो करवा भी चुका । "
पर कोई माने या ना माने रेलवे स्टेशन जाकर रिज़र्वेशन करवाना बद्रीनाथ यात्रा से ज्यादा कठिन और पुण्य देने वाला होता है ।

कश्मीर का नयापन ?

Friday, August 13, 2010

मुझे नहीं लगता कि कश्मीर में कुछ भी नया हो रहा है । सब कुछ वही पुराना है । वही दंगे, वही हत्याएं, वही कर्फ्यू, वही सहमा सा बचपन, वही विद्रोही युवा, वही मायूस बुढ़ापा । लोग कह रहे हैं कि कुछ नया हो रहा है । मैं भी यही चाहता हूँ कि कुछ नया हो । पर......

"DON'T HANG THEM NOW, WAIT FOR END CEREMONY"

Saturday, August 7, 2010

This is my appeal to the People of India, Please don't hear the news channels. They are just doing business by showing the irregularities in commonwealth games. We should support the government and try to give our best in hosting these games with warm intentions and hospitality. We all know there are so many points which show the corruption done by the officials. But its not right "TIME" to do this. We should try to help the government. This is time to show the entire world that "we are good at corruption but we can host the best Commonwealth Games too".
Just wait for the games to end, and then we can "hang them" if we want to.

INCEPTION: ONE OF THE BEST FILM IN HISTORY

Sunday, August 1, 2010

Recently i saw "Inception". Christopher Nolan has outdone himself. He has done something which none can do in future years. First "Memento" then "Batman Begins" and after that "The Dark Knight", these are some exceptional films which ensures his capability to make mind-jolting blockbusters again and again.
The films is brilliantly directed and edited. The screenplay is tremendous and plot is very good. This film is in my top rated ones. I can say it can surely land on top. ( WHAT CAN I SAY ABOUT THE GODFATHER?).
Do watch the movie.

नैतिक शिक्षा की ज़रुरत है .......

Sunday, July 11, 2010

अभी कुछ दिन पूर्व मैंने एक अखबार में पढ़ा कि दिल्ली के एक स्कूल के छात्र ने अपनी टीचर के साथ बदसलूकी की । पहले तो मैं थोडा अचंभित हुआ पर धीरे धीरे सामान्य भी हो गया क्योंकि आज कल जो माहौल है उस हिसाब से यही होना था । शिक्षा के क्षेत्र में बड़े बड़े परिवर्तन किये जा रहे हैं । नम्बर्स की जगह ग्रेड की व्यवस्था हो रही है जिससे बच्चों पर पढाई का बोझ कम पड़े । पर मेरा ये मानना है कि ये बोझ इतना कम भी ना हो जाये कि बच्चे इसकी जिम्मेदारी लेने से भी बचें । वैसे इतने सुधार की भी ज़रुरत नहीं है क्योंकि इसी शिक्षा के दम पर हम दुनिया का सर्वश्रेष्ठ दिमाग तैयार करते हैं और विश्व कि हर यूनिवर्सिटी में अपना परचम लहराते हैं । पर अब जो सुधार के नाम पर बदलाव किये जा रहे हैं वे वही हैं जो अमेरिका ने 50 साल पहले किये थे ताकि बच्चों पर बोझ कम पड़े । और देखिये अमेरिकी संस्कृति और बच्चों का क्या हाल है ?? और तो और ओबामा ने भी भारतीय शिक्षा पद्धति की तारीफ़ की थी पर इन बदलावों के साथ नही । अब अमेरिका अपनी शिक्षा पद्धति में परिवर्तन कर उसे भारत की तरह बनाने पर जोर दे रहा है पर हम लोग उनसे 50 साल पीछे हैं और वहीँ जा रहे हैं जहाँ वे अब हैं ।

मैं इन सुधार करने वाली कमेटियों से यही कहूँगा कि भैय्या आपको जो करना है वो करो पर एक काम और कर दो कि सभी बोर्ड के सभी स्कूल क्लास 12 तक नैतिक शिक्षा अनिवार्य कर देंगे । क्योंकि आजकल तो लोगों को सही और गलत में ज़रा सा भी फर्क नहीं महसूस हो रहा । तो कम से कम अगर बिना मन के भी नैतिक शिक्षा पढ़ी तो कुछ तो दिमाग में जायेगा ही । बिना नैतिक शिक्षा के अध्ययन के आज का बच्चा एक मूर्ख, असभ्य, बेशर्म और मानसिक रूप से विकृत सभ्यता और पीढ़ी का हिस्सा बनता जा रहा है ।

ये साला पानी काहे नहीं बरस रहा बे ????

Friday, July 9, 2010

........................हमारा तो दिमाग भन्नायरहा है । ये साला पानी काहे नहीं बरस रहा है । या कौन सा नवा नाटक अहै??? सब जने कहत रहें कि 15 जून तक मानसून आवत है पर ससुरा ये मानसून है कौन ??? और ये इतना बुलाने पर भी आ काहे नहीं रहा है ? मतलब अगर ज्यादा नाटक कर रहा है तो सरकार को चाहत है कि शक्ति का प्रयोग करें । या फिर केहू का भेजें उहका मनावै खातिर ??? मतलब पानी तो मांगता ही है ना । तो फिर काहे का सोचना । बुलाओ साले मानसून के अब्बा को ...........

नक्सलवाद : समस्या का हल या स्वयं एक समस्या ?

..........................नक्सलवाद, आजकल बड़ा चर्चा का विषय बन गया है । बात गंभीर भी तो है । पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से जन्मे इस "वाद" को चारू मजूमदार, कानू सान्याल और जांगल संथाल ने "हिंसक" क्रांति का नाम देकर 1967 में शुरू किया था । तब ये एक छोटा मोटा स्थानीय आन्दोलन था । पर अब नहीं रहा । वर्तमान समय में ये हमारे देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है । क्योंकि जब आपके घर का आदमी ही आपका दुश्मन हो जाये तो बात काफी गंभीर हो जाती है ।
...............................पर अब वो बात नहीं रही । मेरे कहने का मतलब है कि आन्दोलन अब बिना किसी "वजह" के हो रहा है और अपने उद्देश्य से भटक भी गया है । आप विकास के मुद्दे को ट्रेन उड़ाकर कैसे उठा सकते हैं या फिर किसानों की समस्या को निर्दोष लोगों को मारकर कैसे हल कर सकते हैं । ये बात मानी जा सकती है कि सरकारों ने नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है । पर किसी भी समस्या को हल करने का ये सबसे घटिया और शर्मनाक तरीका है । अब तो हद ही हो गयी है । जिस भी किसान की जिस साल फसल ख़राब हो जाती है वो उस साल नक्सलवादी बन जाता है और अगले साल अगर फसल सही हो गयी तो फिर किसान । ऐसी समस्या का कोई तुरत-फुरत हल नहीं निकल सकता । इस समस्या का हल है शिक्षा और सतत-स्थिर-विकास ( sustainable development ) ।
..........................नक्सलियों की मदद के लिए चीन, पाकिस्तान और बंगलादेश के कई संगठनों के नाम सामने आये हैं । मतलब यार शर्म की बात है कि इतने "संयोजित" (Organized) तरीके से कोई सहायता का काम नहीं होता । कोई भी संगठन एडस या किसी और समस्या से जूझने के लिए इतनी माथापच्ची नहीं करता , इतना खून नहीं बहाता । पर जब ट्रेन की पटरी उड़ानी होती है या सुरक्षा बलों की गाडी को बम या लैंडमाइन से उडाना हो या कोई पुलिस चौकी में आग लगानी हो तो सबकी समस्याएं बड़ी विकट हो जाती हैं और इतनी ज्यादा विकट हो जाती हैं कि बस यही एक हल रह जाता है कि एक निर्दोष व्यक्ति को मार दो और उसे पता भी ना लगे कि वो क्यों मरा ? और मरा कि शहीद हुआ ।
..........................भाई मेरी समझ में तो नहीं आता ऐसा आन्दोलन । लगता ही नहीं है कि ये उन्ही गाँधी जी का देश है जो अहिंसा का पाठ पढ़ा-पढ़ा के मर गए । पर साला किसी के दिमाग में एक धेला तक नहीं घुसा ।

..........................आज का नक्सलवाद आन्दोलन उस प्राचीन जगदगुरु भारतवर्ष के गौरवमयी इतिहास के लिए एक धब्बा है और हमारी सारी
परम्पराओं और मान्यताओं के अस्तित्व पर एक प्रश्नचिन्ह ।

हम कोई वैश्विक खेल क्यों नहीं खेल सकते??

Tuesday, July 6, 2010


dddddddddपूरी दुनिया इस समय फुटबाल वर्ल्ड कप के नशे में चूर है । जिसे देखो वो लियोनेल मैसी और जर्मनी के क्लोज़ की बात कर रहा है । यहाँ तक कि केवल क्रिकेट देखने वाले भी चिरकुटई छोड़कर फुटबाल देख रहे हैं । पर मुझे एक बात का अफ़सोस है कि हमारी टीम कब ऐसे किसी महाकुम्भ में शरीक होगी ?
ध्यान दिया जाये तो हॉकी को छोड़कर हम लोग कोई भी ऐसा खेल नहीं खेलते है जो पूरी दुनिया में खेला जाता हो । यदि खेलते भी हैं तो बेहद फिसड्डी और घटिया प्रदर्शन करते हैं । उसका सीधा सा कारण है कि हमारे यहाँ किसी भी खेल संघ की बागडोर उसके किसी पुराने जानकार या खिलाडी के हाथ में ना होकर किसी भिखारी नेता या नौकरशाह के हाथ में है । ये लोग अपने निजी स्वार्थ और सरकारी सहायता के लिए इन संघों को अपनी बपौती मानकर बैठ गए हैं । केपीएस गिल ने हॉकी इंडिया की बैंड बजा रखी है । ये तो हॉकी को छोड़ ही नही रहे हैं । ऐसे ही ना जाने कितने ही खेल संघ हैं जो इन जैसे "महानुभावों" के अनुभव के वट-वृक्षों के तले दब के रह गए हैं । उनका कोई अस्तित्व नहीं बचा है । अगर कुछ बचा है तो वो है नेता जी का सदा खाली रहने वाला कटोरा । जिसमें आये हुए सरकारी धन को वे पता नहीं कहाँ पचा जाते हैं ?

3333333333बात काफी गंभीर है । हमारे देश में कोई खेल तरक्की नहीं कर रहा है (क्रिकेट को छोड़कर, क्योंकि ये खेल नहीं बिज़नेस है) भ्रष्टाचार ने जब सबकी कमर तोड़ दी है तो खेल कैसे अछूते रह सकते हैं । पर मुझे तो इस बात पर आश्चर्य होता है (कभी-कभी) कि इन लोगों के बेशर्मी की हद क्या है ???

बोरियत वाले विचार

Friday, June 18, 2010

आजकल थोड़ी बोरियत सी महसूस कर रहा हूँ । नए काम करने को मन कर रहा है पर नया काम मिल नहीं रहा है । फिल्में देख देख के मन उकता गया है । अब कोई भी फिल्म शुरू करता हूँ तो लगता है कि फिल्म बिना देखे ही देखने का आनंद आ जाए । टीवी इतना घटिया और चिरकुट हो गया है कि उसे मैं झेल नहीं पाता हूँ ।
फ़िर याद आया कि एक ब्लॉग बनाया था मैंने , जिसपर कभीकभी लिखता भी था । सो आ गया मैं यहाँ । पर अभी जो मैं लिख रहा हूँ ये बोरियत वाले विचार हैं । ये बिना किसी उद्देश्य के लिए पनपे हैं और किसी अच्छे विचार के आने पर धीरे से कल्टी भी मार लेंगे । चलो आज काफी दिन बाद यहाँ लिख रहा हूँ । आशा करता हूँ कि जल्दी ही वापस लौटूंगा ।

अभी बस इतना ही ........

Tuesday, May 11, 2010

आज कल कोई नाटक नहीं हो रहा है । कुछ मसाला भी नहीं मिल रहा बकैती के लिए । अभी तो यही ताज़ी खबर है कि धोनी भैया ने टी-20 वर्ल्ड कप में घटिया और दोयम दर्जे के प्रदर्शन के लिए आई० पी० एल० को दोषी मानने से इनकार किया है । सही भी तो है । जिस खेल से आपको रेगुलर सिरीज़ से ज्यादा माल मिले उसमें क्या दोष होगा ? दोष तो हमारा है जो घंटों टीवी के सामने सर फोड़ते हैं ।
हमारे एक मित्र हैं , अंकित शुक्ल जी । वो मैसूर में हैं , इनफ़ोसिस में काम करते हैं । बहुत काम करते हैं । पर फिर भी मैच देखने का टाइम निकाल ही लेते हैं । भगवान् ही जाने कहाँ से निकालते हैं । कुछ दिन पहले बात हुयी तो टीम को गरिया रहे थे । हमारे यूपी में गरियाने से तात्पर्य गाली देने से होता है । वो बस यही कहना चाह रहे थे कि सालों ने टाइम बर्बाद कर दिया । चलिए जो भी हुआ सही ही हुआ । जो हुआ, सो हुआ ।
और एक बात कहना चाहता हूँ कि अभी कुछ दिनों से यहाँ कुछ बकवास नहीं लिखी । लगता है अभी कुछ और दिन भी नहीं लिख पाऊँगा । शायद कुछ दिन के लिए "अल्प-विराम" सा रहेगा । पर मुझे खुद पर कोई भरोसा नहीं हैं कि कब आ जाऊं इस जगह अपनी भड़ास निकालने ।

अभूतपूर्व हर्ष और उत्साह

Friday, May 7, 2010

चूंकि मैं यह मानता हूँ कि ये ब्लॉग मेरा है तथा इस पर सिर्फ और सिर्फ मेरा ही अधिकार है । इसलिए मैं इसे किसी भी तरह की "कैटेगरी" में नहीं रखना चाहता । इसी क्रम मेंअब से अपने निजी अनुभवों और जीवन से जुड़ी बातों का उल्लेख भी करूंगा ।
कल यूपीएससी '09 की परीक्षा का परिणाम निकला । जिसमे मेरे अग्रज स्वरोचिष सोमवंशी ने 575 वीं रैंक प्राप्त की है । प्रथम प्रयास में यह सफलता मायने रखती है । उनको बचपन से ही प्रशासनिक सेवा में जाने का कीड़ा लगा हुआ था । एक निजी कम्पनी में काम करने के बाद ये कीड़ा काफी बड़ा हो गया था और कल ये कीड़ा अपने मंतव्य में सफल भी हो गया । 06 मई 2010 अपार हर्ष और उमंग लेकर आई है । मैं अत्यंत प्रसन्न हूँ । ये जीवन के उन पलों में से एक है जब आपको लगता है कि कुछ भी नामुमकिन नहींहै अगर ठान लिया जाए । हर आदमी के पीछे कोई ना कोई कहानी होती है । कोई ना कोई रहस्य होता है । पर जब तक इसे खोला न ही जाय तभी अच्छा ।
!! जय हनुमान !!
श्रुतकीर्ति सोमवंशी
06-05-2010 2300 Hrs.
रायबरेली

सचिन तेंदुलकर "ट्विटर" पर........

Thursday, May 6, 2010

Finally !! at last !! He is on twitter. The world saw the love , passion and respect for a person in the hearts of Indians. Sachin Tendulkar has joined "Twitter". It was a breaking news today. The mob is following him. Just like in the film "MILK", where Sean Penn said to the people of America " I am Milk, I am here to recruit you ". Everyone on twitter is "following" the maestro. Me too. He too. There are some campaigns starting to "follow" him on the social networking giant.

I read the comments of people. They usually address him as "GOD". There is one more great thing which shows his power that he is dragging people to join twitter. There is very large number of people who joined twitter to follow him. It is very interesting to know that most of his followers are newbie. They don't like Twitter. But for Sachin, they can join twitter, follow him and leave their account for ages. This is what happening there. This proves that he is the biggest star, celebrity, sportsperson, whatever you want to say him, of India till date. Bollywood celebrities are welcoming him warmly. Sachin himself is very anxious and happy to join twitter as his children wanted it eagerly. When I am writing this article, there are almost 92K followers of sachin and he only following 2.
Deepika Padukone says "the only record is left for him to break the most followers". I want to mention here that Hollywood star Ashton Kutcher has most followers, around 48 lacs but seeing the speed of Sachin, i can see this record is also going to be grabbed by him.
In the end I just want to say " FOLLOW SACHIN"..................
here is the link : http://twitter.com/sachin_rt

ट्रेन रिज़र्वेशन का झमेला

Saturday, May 1, 2010

कुछ दिन पहले की बात है मुझे रिज़र्वेशन कराने का सौभाग्य (?) प्राप्त हुआ । मैं रायबरेली से दिल्ली का रिज़र्वेशन करा रहा था । ट्रेन थी पद्मावत एक्सप्रेस । घर में कहा गया जितनी जल्दी जाओगे उतनी जल्दी रिज़र्वेशन हो जायेगा । पर एक बात बता दूं कि भारत में जल्दी करने से कुछ नहीं होता । आप चाहे जितनी जल्दी पहुँच जायें , आपको रिज़र्वेशन की लाइन हमेशा उतनी ही लम्बी मिलेगी । जैसे लगता इतने लोग भौतिक विज्ञान के किसी "नियतांक" (CONSTANT) के तरह सभी तरह क्रियाओं में "स्थिर" रहते हैं या फिर कोई उनपर "PAUSE" की बटन दबा कर भूल गया है । पर मैं भी क्या करता, जाकर लग गया उस लाइन में । पर उस समय तक काउंटर खुले नहीं थे । थोड़ी देर में वो कर्मचारी आ गया पर काउंटर खोलने में उसने वही शर्म और झिझक दिखाई जो एक नव-विवाहिता अपना घूंघट खोलने में दिखाती है । फिर धीरे से जनाब हम सबसे मुखातिब हुए । सब लोग उसे मन ही मन "गरिया" रहे थे पर सबके चेहरे कुछ और ही बयां कर रहे थे ।
मैं भी लाइन में लगा था कि कब "कपाट" खुलें और मैं भी दर्शन करूं । लाइन धीरे धीरे रेंग रेंग कर आगे बढ़ रही थी । पीछे वाले आगे वालों को कोस रहे थे - " भैया , सारी इन्क्वायरी यहीं कर लोगे का??.......जल्दी कीजिये भाईसाब.......अरे !! अगर तय नहीं था काहे आ गए रिज़र्वेशन करवाने ??.....कुछ ऐसी ही बातें निकल रही थी । कुछ लोग ऐसे होते हैं जो लाइन में नहीं लगते । वो बगल खड़े रहते हैं और बिना लाइन में लगे ही अपना काम करवाना चाहते हैं । पर वे जैसे ही अपना काम करवाने के लिए काउंटर की तरफ लपकते हैं , कोई सुधी व्यक्ति उनको सुवचन चिपका देता है । और कुछ लोग ऐसे होते हैं जो खुद काउंटर तक नहीं आते , वे दूर खड़े रहते हैं और अपनी पत्नी या बहन या किसी सम्बन्धी महिला को काउंटर पर भेज देते हैं । वो महिला बिना लाइन में लगे रिज़र्वेशन करवाकर चली जाती हैं और कोई पुरुष जो लाइन में खड़ा है वो उस महिला से बदतमीजी तो कर नहीं सकता पर मन ही मन उस आदमी को ऐसे-ऐसे "सुवचन" देता हैं कि अगर कोई सुन ले तो बहरा हो जाये ।
समय बिताने के लिए कुछ लोग सचिन-धोनी का करियर बनाने लगते हैं और कुछ लोग राजनीति में नए नए आयाम जोड़ देते हैं । पर सबका ध्यान अपना नम्बर आने पर ही केन्द्रित होता है । और नम्बर आते ही अपने आस पास खड़े लोगों को ऐसे भूल जाते हैं जैसे गजिनी में आमिर खान ।और जब रिज़र्वेशन मिल जाता है तो बाकी लोगों को ऐसा महसूस करवाते हैं जैसे- "तुम लोग अभी यहीं तक पहुंचे हो? मुझे देखो मैं तो करवा भी चुका । "
पर कोई माने या ना माने रेलवे स्टेशन जाकर रिज़र्वेशन करवाना बद्रीनाथ यात्रा से ज्यादा कठिन और पुण्य देने वाला होता है ।

आगे वाला और पीछे वाला.................

Thursday, April 29, 2010

इस फोटो को देख कर मेरे मन में कुछ बातें आ रही हैं -
1- आगे वाला व्यक्ति ये बात जानता है कि पीछे वाले पर भरोसा नहीं कर सकता पर बात तो शुरू की ही जा सकती है ।

2- पीछे वाला व्यक्ति ये सोच रहा है कि किसी ने देखा तो नहीं कि मैं "गिड़गिड़ा" रहा था ।

3- इस फोटो में एक "तीसरा अदृश्य" व्यक्ति भी है जो ये जानता है कि जब तक ये मामला "इन जैसों" के हाथ में रहेगा, तब तक समस्या ख़तम नहीं होगी बल्कि बढती ही जाएगी । ये "तीसरा अदृश्य" व्यक्ति कोई और नही बल्कि दोनों देशों की जनता है ।

जहाँ पैसा, वहां ईमान कैसा?

Tuesday, April 27, 2010

बिलकुल सही कह रहा हूँ । "जहाँ पैसा, वहां ईमान कैसा? " दरअसल "ईमानदार" होने में बड़ी दिक्कतें हैं । काफी परेशानियां होती हैं । आजकल हमलोग देख ही रहे हैं कि भारतीय क्रिकेट में IPL नामक एक क्रिकेट लीग का बहुत बोलबाला है । वैसे इस लीग का आधार ही पैसा है । प्राचीन समय में अफ्रीका और आस-पास के मुल्कों में अच्छे मवेशियों के लिए बोली लगती थी , ठीक वैसा ही IPL में भी हुआ । पर ऐसा हम लोग सोचते हैं । ये जो IPL वाले कहते हैं कि फलां क्रिकेटर इतने करोड़ में बिका , हमने फलां टीम इतने करोड़ में खरीदी । ये सब कोरा झूठ था । किसी भी खिलाडी को उतना धन नहीं मिला, जितने में वो बिका था । वैसे ही कोई भी टीम उतने में नहीं खरीदी गयी, जितने में वो सबको बताई गयी । चूँकि IPL पर कोई टैक्स नहीं था अतः टीम खरीदने में जितना पैसा लगा उस पर भी टैक्स नहीं था । बस इसी चीज़ में सबको मज़ा आ गया । जिस भी आदमी का रसूख था , उसने अपना काला धन इसमें लगा दिया और नाम आया उस कंपनी का, जिस कंपनी के नाम पर टीम खरीदी गयी । दरअसल उस कंपनी के नाम के आड़ में इस देश हरामखोर उद्योगपतियों, भ्रष्टाचारी नेताओं और कमीने लोगों का पैसा लगा था ।
अब यही बात थरूर वाले केस में भी हुयी । ये थरूर महाशय ही थे जिन्होंने अपने राजनैतिक करियर कि शुरुआत में नेहरु-गाँधी परिवार दोषी ठहराया था देश की ख़राब स्थिति के लिए । पर जब देखा कि जनता तो कांग्रेस को ही वोट दे रही है तो आ गए उन्ही की नैय्या में । फिर बन गए विदेश राज्य मंत्री और चिड़िया बनकर चहचहाने (Twittering) लगे । बाद में अपनी "ताकत" के दम पर अपनी मित्र के नाम पर IPL में टीम में हिस्सेदारी दबा ली वो भी बिना पैसा लगाये ।
तो समझने वाली बात ये है कि इस आई०पी०एल० के समंदर में बड़ी मछलियाँ भी हैं , काफी गहरायी में बैठकर अपना खेल नियंत्रित कर रही हैं और अगर "सरकार" ने चाहा ..............माफ़ कीजियेगा.............."भगवान्" ने चाहा तो वो कभी सामने नहीं आएँगी । तो भैया सौ कि सीधी एक बात है कि जहाँ पैसा होता है वहां ईमान नाम की कोई चीज़ नहीं होती है । ये मानवजाति की चारित्रिक विशेषता है, अतः हमें ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए । ये तो होना ही था । इस देश में बहुत कम काम बिना किसी भ्रष्टाचार के हुए होते हैं , इस देश का निकाय अब भ्रष्ट हो चुका है । आम आदमी भ्रष्टाचार और सदाचार में फर्क नहीं करता और न ही करना चाहता है ।
" आजकल जिसको जहाँ मौका मिलता है , वो वहीँ भ्रष्टाचार के तवे अपने स्वार्थ की रोटी बनाता है , खुद खाता है, दूसरों को खिलाता है और बनाने के लिए प्रेरित भी करता है । "

आई. पी. एल फ़ाइनल- "एक रहस्य"

Monday, April 26, 2010

आज आई.पी.एल का फाइनल मैच देखा । सबसे पहले तो "चेन्नई सुपर किंग्स" को बधाई कि वे सिरीज़ जीत गए हैं । चूंकि मैं "मुंबई इंडियंस" का समर्थक हूँ, इसलिए थोड़ी निराशा हुयी । बहुत सारीबातें हैं । समझ में नहीं आ रहा है कहाँ से शुरू करुँ । वैसे दुःख तो काफी हुआ है क्योंकि पिछले दो सीज़न से मैं "मुंबई" को सपोर्ट करता आ रहा हूँ । जिसका एक बहुत सीधा सा कारण है "सचिन तेंदुलकर" । मैं ये पहले भी लिख चुका हूँ कि मेरे लिए क्रिकेट का अर्थ है "सचिन" । पर आज मैं सचिन की कप्तानी से काफी सकते में हूँ । पूरी सिरीज़ में आपका जो प्लेयिंग एलेवेन था , आज आपको वही बरक़रार रखना चाहिए था । कोई भी अँधा-पागल यही करता । पर सच बात तो ये है कि "अँधा-पागल" ही ऐसा करेगा , क्योंकि ऐसा करने पर शायद "मुंबई" जीत जाती । ये मैच रहस्यों से भरा हुआ है । कैच भी टपक गए या टपकाए गए , कोई नहीं बता सकता ।
बैटिंग क्रम में भी बेकार के बदलाव किये गए । पोलार्ड को इतना बाद में क्यों भेजा ये समझ के बाहर है । जो बल्लेबाज़ पूरे टूर्नामेंट में आपका "हिटर" रहा हो उसे आप हरभजन और डुमिनी से कैसे बदल सकते हैं । ये बात पोलार्ड ने 18 वे ओवर में 22 रन कूट के सिद्ध भी कर दी । मैं ज्यादा गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ना चाहता क्योंकि अब बारीकी करने से कोई फायदा नहीं है । जो "नियति" ने "लिखा" था वही मैदान पर भी किया गया ।

फोन उठाना ज़रूरी है क्या ?

Monday, April 12, 2010

एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि " घंटी बजने पर फोन उठाना ज़रूरी है क्या ? अगर नहीं उठाया तो कौन सा पहाड़ टपक जायेगा । फ़ोन ही तो है, नहीं उठाओगे तो कौन सा पके पपीते कि तरह टपक के सड़ जायेगा । किसी ने बांधा तो है नहीं, अगर नहीं उठाया तो ऐसा तो होगा नहीं कि "बेहेनजी" राजनीति त्याग देंगी । हाँ यार अगर ऐसा हो जाता तो शायद मैं फ़ोन न उठता । " पर विडम्बना यही है कि इतना सब मालूम होने के बावजूद फ़ोन उठा ही लेता हूँ । पता नहीं खुद को रोक क्यों नहीं पाता ?
लेकिन ये सब यहाँ लिखने से का फायदा है बबुआ......................................अब चलित अही........राम राम ।

"जैसी जहाँ की जनता, वैसी वहां की सरकार"

ब्रिटेन में एक कहावत है "जैसी जहाँ की जनता, वैसी वहां की सरकार । अगर सोचा जाये तो ये बात काफी हद तक सही भी लगती है । हमारी सरकार हम सब के बीच से ही चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा बनती है । इसका मतलब यही है कि अगर यही प्रतिनिधि जब कोई गलत काम करते हैं और कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए नज़र आते हैं तो हमें इनकी भर्त्सना नहीं करनी चाहिए बल्कि पहले खुद अपने गिरेबां झाँक लेना चाहिए । आज सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि हमारी शिक्षा पद्धति में "नैतिक शिक्षा" और "चरित्र-निर्माण" का कहीं कोई नाम-ओ-निशान नहीं है । जब कोई भी व्यक्ति चरित्र गत गुणों की बात करेगा ही नहीं तो ऐसे ही लोग तो राजनीति में आयेंगे क्योंकि ऐसे लोग ही तो बहुतायत में हैं । ज़रूरत है समाज में नैतिकता और सदाचार की जगह बनाना ।
जैसा हमारा समाज होगा, वैसी ही हमारी सामाजिक संस्थाएं भी होंगी । पुलिस, प्रशासनिक विभाग, राजनैतिक लोग सभी इसी समाज का हिस्सा हैं । ये सब दुसरे ग्रह से नहीं आये हैं । इसलिए अगली बार से इनको दोष देने से पहले खुद से ये पूछो कि "अगर तुम इनकी जगह होते तो क्या करते?" और इस प्रश्न का जवाब सही -सही दो । क्योंकि बोलने के लिए हर आदमी अपनी अपनी गीता और राम चरित मानस बांचता है , पर जब करने का मौका मिलता है तो उस दूसरे से भी सौ कदम आगे निकल जाता है । इसलिए कह रहा हूँ कि सबसे पहले आगे आने वाली पीढ़ी को सही शिक्षा देनी बहुत ज़रूरी है । अन्यथा बहुत देर हो जाएगी और समाज में चारित्रिक गिरावट घर कर जाएगी ।

"सचिन एक महान व्यक्ति और खिलाडी हैं"

Sunday, April 11, 2010

मेरे लिए क्रिकेट का मतलब है सचिन तेंदुलकर की बैटिंग । बचपन से लेकर आजतक क्रिकेट देखते हुए मुझे करीब 16-17 साल हो रहे हैं । पर अभी भी सचिन की बैटिंग ही सब कुछ है । बहुत से क्रिकेटर आये, जिन्हें मैं पसंद करता हूँ पर वो मेरे लिए कभी भी उस मुकाम तक नहीं पहुँच पाए जिस पर सचिन हैंमेरे लिए वो एक क्रिकेटर से बढ़कर हैंमैं सही मायनों में उनका सम्मान करता हूँकोई व्यक्ति अपना काम कितनी शिद्दत से कर सकता है , यह सचिन से सीखने को मिलता हैवो युवाओं के लिए एक आदर्श हैंउन्होंने साबित कर दिया है कि वो केवल एक खिलाडी ही नहीं हैं, वो अपने आप में एक "इंस्टीट्यूशन" हैं
2004 की गर्मियों में ऑस्ट्रेलियन टीम भारत आई थीएक मैच में ऑस्ट्रेलियन बॉलर ब्रैड हौग ने सचिन को आउट कर लिया । मैच के बाद वो सचिन के पास आया और सचिन से उस बॉल पर उनका साइन करने को कहासचिन ने साइन किया और लिखा "this will not happen again". तब से लेकर आजतक ब्रैड होग सचिन को दुबारा आउट नहीं कर पायातो ये है सचिन का आत्म-विश्वास । एक महान ऑस्ट्रेलियन क्रिकेटर एक बार भारत के कोच बनकर आये थे , श्रीमान ग्रेग चैपल । उन्होंने आते ही "युवा राग" अलापना शुरू कर दिया थावे सचिन, द्रविड़, गांगुली, कुंबले जैसे अनुभवी क्रिकेटरों के पीछे "नहा-धो" के पड़ गए थेयुवा शक्ति ठीक है , अपनी जगह सही है, पर अनुभव का भी होना ज़रूरी हैआज उनके कथित "युवा" और "प्रतिभाशाली" क्रिकेटर जो 20-20 और आईपीएल को अपना दहेज़ समझते हैं, वो भी इन चारों के आगे फेल हैंसचिन आईपीएल में सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाडी हैं ।
कुल-मिलकर मेरा यह कहना है कि सचिन हमेशा से सर्वश्रेष्ठ रहे हैं और आगे भी रहेंगेउनकी सब से बड़ी खासियत ये है कि वो कभी किसी के कमेन्ट पर कोई जवाब नहीं देते , बस अपना काम करते हैं । आज वो क्रिकेट में नए नए मायने स्थापित कर रहे हैंबात बस ये है कि हम सिर्फ उनका साथ दे सकते हैं, उन्हें प्रोत्साहित कर सकते हैं , वे एक समर्पित भारतीय हैं और हम सब के बीच में से ही हैंमेरे लिए वे एक महान शख्सियत हैं, जो भारत-रत्न के हक़दार हैं , क्योंकि वे अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ हैं ।
"सचिन एक महान व्यक्ति खिलाडी हैं, ऐसे व्यक्ति कम ही होते हैं "

" न्यूज़ चैनल वालों को दीवार में चुनवा देना चाहिए "

Tuesday, April 6, 2010

बात अभी अभी की है । एक न्यूज़ चैनल पर अभी खबर आई की दंतेवाडा में नक्सलियों ने CRPF के 55 जवान मार दिए हैं । फिर इस खबर पर विश्लेषण शुरू हुआ । गृह मंत्री चिदंबरम का बयान सुना । कुछेक मंत्रियों , जानकारों के बयान आये । इसी बीच उसी चैनल का एक अत्यंत मूर्ख और सूअर टाइप संवाददाता चैनल पर आकर बकने लगा । उसकी एक भी लाइन सुनकर ये नहीं लग रहा था कि उसको नक्सलियों या ऑपरेशन ग्रीन हंट के बारे में कुछ भी पता है । बस मुंह फाड़ कर रिरियाने लगा । तभी किसी बुद्धिमान आदमी ने पूर्व डीजीपी श्री प्रकाश सिंह जी से फ़ोन पर बात शुरू की । पर उस महान आत्मा से ये भी नहीं सहा गया और बदतमीज़ ने उनसे ये कहकर कि "समय" की कमी के कारण आपसे यहीं बात ख़तम करता हूँ और धन्यवाद कहकर बात ख़तम कर दी । 5 मिनट बाद "प्रियंका के ठुमके" नाम का एक भौंडा सा प्रोग्राम, एक भौंडी सी , अभद्र , मूर्ख , अनपढ़ और भद्दी बातें करने वाली बदतमीज़ महिला ने प्रारंभ कर दिया । मतलब नक्सलियों द्वारा मारे गए वो 55 जवान, चिदंबरम, प्रकाश सिंह और अन्य जानकर लोग पागल हैं क्या? यार कम से कम जो खबर आम आदमी के जीवन से कोई ताल्लुक नहीं रखती उसे तो मत दिखाओ वो भी ऐसे मौके पर ।
एक बुद्धिमान आदमी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पता है और आप एक नचनिया गवनिया वाला प्रोग्राम शुरू कर देते हैं । दूसरी तरफ वो संवाददाता सीधे गृहमंत्री और ऑपरेशन के डीजीपी को दोषी ठहराकर बडबडा रहा है । अरे *****! क्या बोल रहे हो, क्या बोलना है, क्या नहीं बोलना है? कुछ भी सोच नहीं रहे हो । अगर नहीं मालूम है तो केवल खबर सुना दो, उसमे काहे अपनी ग्रैजुअशन् छांटने लगते हो ।
हे भगवन !! इनको तुम अब उठा ही लो, अन्यथा मैं ही कुछ कर बैठूंगा !!

"जीना इसी का नाम है"

Wednesday, March 31, 2010

कुछ दिन पहले मैंने एक मैगजीन में एक आर्टिकल देखा और उसे पढने के बाद मुझे मेरा अस्तित्व "तुच्छ" प्रतीत होने लगा । यह लेख वर्ष 2008 में "रेमन मैगसायसाय" पुरस्कार पाने वाले श्री प्रकाश आम्टे और उनकी पत्नी श्रीमती मन्दाकिनी आम्टे के विषय में था । यहाँ यह जानना ज़रूरी है कि प्रकाश आम्टे प्रसिद्ध गांधीवादी समाज सेवक "बाबा आम्टे" के सुपुत्र हैं । पेशे से डॉक्टर यह पति-पत्नी एक महान कार्य कर रहे हैं । महाराष्ट्र के रिमोट एरिया में "मडियागोंड" नाम की एक आदिवासी प्रजाति रहती है । बात 1974 की है जब "प्रकाश" सर्जरी में पोस्ट-ग्रैजुएशन कर रहे थे । अपने पिता के कहने पर वे अपनी पत्नी के साथ शहर के सुखी जीवन को छोड़कर "हेमालकासा" चले आये यहाँ आकर उन्होंने "मडियागोंड" के उत्थान के लिए प्रयास शुरू किया । वे स्वनिर्मित, बिना दरवाज़े की झोपडी में रहने लगे । वे घूम-घूम कर दवाइयां देते और उनका उपचार करते थे । उन्हें उस प्रजाति का विश्वास जीतने में समय लगाधीरे धीरे उन्होंने एक स्कूल भी खोला । मन्दाकिनी उस स्कूल में प्रजाति के बच्चों को पढ़ाने लगी । आश्चर्य की बात तो ये है कि उनके खुद के बच्चे भी उसी स्कूल में पढ़ते थे । धीरे धीरे इन्होने लोगों को खेती और सब्जियां उगाने की शिक्षा भी देना प्रारंभ की । एक स्विस सहायता कोष की मदद से जल्दी ही प्रकाश ने एक छोटा सा हॉस्पिटल भी खोला जहाँ अभी भी सभी रोगियों का निःशुल्क उपचार होता है

आज ये हॉस्पिटल 50 बेड की क्षमता रखता है जहाँ 4 डॉक्टर का स्टाफ है और करीब 40000 हज़ार रोगी प्रतिवर्ष अपना निःशुल्क अपना इलाज करवाते हैं । उस स्कूल से पढ़ कर ग्रैजुएशन करने वाले बच्चे आज डॉक्टर, वकील, इंजीनीयर, समाज-सेवी और सरकारी अफसर बन चुके हैं । और तो और लगभग 90 % बच्चे वापस यहीं आकर उसी काम में लग गए हैं, जिसे कभी प्रकाश और मन्दाकिनी अकेले कर रहे थे । साथ ही उनके अपने दोनों पुत्र भी यहाँ आकर अपने माता पिता की मदद कर रहे हैं ।
मेरी नज़र में ये दम्पति एक महान कार्य कर रहे हैं, पर दुःख की बात यह है कि सरकार और आम जनता से इनको कोई सहयोग नहीं मिल रहा है । हम सबको ऐसे लोगों को प्रोत्साहित करने और उनकी मदद करने की ज़रुरत है । तभी हम पूर्ण रूप से विकसित देश बन पायेंगे । सच में,
"जीना इसी का नाम है"

NOWHERE TO GO

Saturday, March 27, 2010

" I searched for that,
I find that,
but,
I just dont want to give it you,
coz,
You are him,
and,
He is you."

"सर्वजन" और "बहुजन" का मजाक

Tuesday, March 16, 2010

अभी कल लखनऊ में बहुजन समाज पार्टी की महारैली में देश की गरीब जनता का बाकायदा मजाक बनाया गया । रैली में मायावती जी को 1000 रु के नोटों की माला पहनाई गयी, जिसका कुल मूल्य करीब 5 करोड़ बताया जा रहा है । जिस देश में 50 करोड़ लोग गरीब भी कहलाने के काबिल नहीं हैं, जब वहां ऐसा होता है तो मुझे खुद पर बहुत खीझ लगती है । लेकिन कर भी क्या सकते हैं ? अरे भाई ! हम लोगों ने ही तो वोट देकर, बहुमत से इस सरकार को बनाया है । कहते हैं "जैसी जहाँ की जनता, वैसी वहां की सरकार" ।
आज इस देश में जहाँ "vision 2020" की बात चल रही है, वहां मायावती जी इस "लोकतान्त्रिक राजशाही" को नए नए आयाम दे रही हैं । वो तो पार्क पर पार्क, स्मरण स्थल पर स्मरण स्थल बनवा रही हैं । लगता है मिस्र के किसी फ़राओ की आत्मा आ गयी हैं इनके अन्दर । लेकिन एक बात है, अब जनता के लिए इन्होने कोई काम तो किया है नहीं । तो पार्क ही इतना बढ़िया बनवा दो कि लोग जब 100 साल बाद उसे देखें तो यह याद करें कि " हाँ, एक जने थीं, बहनजी, उही इका बनवाय गयी रहीं, अब नाम तो नहीं याद अहै, बस इही पता है कि सबकी बहनजी थीं ।"
वैसे इन सब बातों से कोई फ़ायदा नहीं है, बस अब जब भी अगली बार चुनाव हों,तो इन बातों को ध्यान में रख कर वोट देना है और ऐसी भ्रष्ट, विनाशकारी, केवल पार्क बनाने और चंदा बटोरने वाली सरकार को समूल उखाड़ फेंकना है । हमारा प्रदेश में इतनी संभावनाएं हैं कि हम देश जीडीपी में एक बड़ा हिस्सा बन सकते हैं । पर अभी तक हम केवल देश की जनसँख्या में एक बड़ा हिस्सा हैं । मायावती जी तो उद्योग धंधों की बात ही नहीं करती हैं । केवल प्रशासनिक अधिकारियों की टांग ही खींच सकती हैं । जब देखो तब किसी न किसी पार्क का उदघाटन कर रही होती हैं या प्रेस कांफ्रेंस करके अपने ऊपर चल रही जांचों के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार ठहरा रही होती हैं । कभी कुछ और भी कर लिया करो यार ! जब देखो तब पैसा-पैसा । या तो मांगती रहती हैं या बर्बाद करती रहती हैं । और हाँ "थोडा थोडा" जमा भी करती रहती हैं । वैसे यही "थोडा" आम जनता की भलाई में "रोड़ा" है ।
तो सौ की सीधी एक बात, इस सर्वजन के नाम पर बहुजन का और बहुजन के नाम पर किसी भी जन का भला न करने वाली सरकार को हम अपने मताधिकार से बदल दें । यही हमारे और हमारे राष्ट्र की प्रगति और शक्ति-वर्धन के लिए श्रेयस्कर होगा । जय हिंद, जय महाभारत ।

लहरें

Sunday, March 14, 2010

समुद्र का वह तट,
जिसपर उत्तंग लहरों को,
रुकना पड़ता है,
वो लहरें जो कभी नहीं रूकती,
रुक जाती हैं..............

मुझे नहीं पता?

Friday, March 12, 2010

क्या जीवन में सफलता प्राप्त करने के लिए कभी न कभी , कहीं न कहीं, सबको अपनी सोच से समझौता करना पड़ता है ?
मुझे नहीं पता ।

स्वतंत्र भारत के नायक : पं. जवाहर लाल नेहरु

Thursday, March 11, 2010


वैसे तो हम लोग पं. जवाहर लाल नेहरु का नाम बचपन से इतनी बार सुन चुके हैं कि जब इनकी कोई उपलब्धि बताता है तो ज्यादा आश्चर्य या सम्मान प्रकट नहीं करते । पर मेरा यह मानना है कि अगर नेहरु जी हमारे पहले प्रधामंत्री न बनते तो काफी दिक्कतें आती, पर शुक्र है ऐसा हुआ नहीं । नेहरु जी ने ही भविष्य के भारत की नींव रखी थी और आज का भारत उसी नींव पर मजबूती से खड़ा है । कोई आश्चर्य नहीं होता अगर हमलोग भी पाकिस्तान की तरह "failed state" हो जाते । पर जब तक हमारे पास नेहरु जैसे लोग हैं, ऐसा होना संभव नहीं है ।
जो चीज़ नेहरु जी को सबसे अलग करती है वो है उनकी प्रतिभा पहचानने की शक्ति । उन्होंने लोगों की प्रतिभा को पहचान कर उसी के अनुरूप काम सौंपा । डॉक्टर भाभा, विक्रम साराभाई, सतीश धवन जैसे लोगों को खोजकर बड़ी बड़ी संस्थाएं बनायीं । जिनके भरोसे आज देश चल रहा है । नेहरु जी की वजह से ही आज भी एक ही देश हमारा सच्चा मित्र है, रूस । रूस ही एकमात्र देश है जिसने "न्यूक्लियर सप्लाई ग्रुप" में हमें सबसे पहले समर्थन प्रदान किया और रूस ने ही हमें सारी सैटेलाइट टेक्नोलोजी दी है । नेहरु जी ने ही योजना आयोग बनाया । पंचवर्षीय योजना का विचार भी नेहरु जी का ही था ।
नेहरु जी समाजवाद के प्रबल समर्थक थे । लेकिन उन्होंने समाजवाद का परिणाम भी पता था इसीलिए उन्होंने भारत में "mixed economy" की शुरुआत की । जिसके लिए हम आज भी उनके शुक्रगुज़ार रहेंगे ।


अपने जीवनकाल में उन्होंने बहुत सारे काम किये । इतनी छोटी से जगह में इतना सब लिख पाना मुमकिन नहीं है । पर नेहरु जी ने जो कुछ इस देश के लिए किया, उसके लिए ये देश सदैव उनका ऋणी रहेगा ।

स्वतंत्र भारत के नायक

Wednesday, March 10, 2010

आज से मैं ये एक नयी श्रृंखला प्रारंभ कर रहा हूँ । जिसमें मैं उन लोगों का उल्लेख करूँगा जिनको "मैं" स्वतंत्रता के बाद के भारत का नायक मानता हूँ । यह पूरी तरह से मेरे दिमाग की उपज है और इसमें किसी भी व्यक्ति का कोई हस्तक्षेप या वैचारिक-मत नहीं है । इन सभी सुधीजन का चयन मैंने अपने ज्ञान के आधार पर किया है । इन सभी लोगों को किसी भी तरह की वरीयता से नहीं लिखा जायेगा । मेरी नज़र में सभी समान हैं । बस उनका उल्लेख आगे-पीछे हो सकता है । अतः मैं किसी भी व्यक्ति के लिए उत्तरदायी नहीं हूँ ।
जल्दी ही आपसे मिलूंगा, पहले नायक के साथ ।
धन्यवाद ।

अभिनव भारत

विकास के तट पर खड़ा,
भारत
अन्धकार से मलिन मुख,
और गरीबी से सने पैरों वाला,
आँखों में भ्रष्टाचार का आलस्य,
हाथों में साम्प्रदायिकता की लाठी लिए,
विकास की तटिनी के शाश्वत अविच्छिन्न प्रवाह को,
विचारों से टटोलता,
भारत ।
यह कविता मैंने 2004 में लिखी थी किन्तु आज भी उतनी ही प्रासंगिक है ।
श्रुतकीर्ति सोमवंशी "शिशिर"
रायबरेली
2345 Hrs.
08.03.2010

हिंदी या ENGLISH ?

Monday, March 8, 2010

वैसे तो मुझे दोनों ही भाषाएँ आती हैं, पर हिंदी की बात कुछ अलग है । हिंदी में लिखने का मज़ा ही कुछ और है । वैसे भी आजकल अगर हम हिंदी का साथ नहीं देंगे तो क्या राज ठाकरे देंगे ? पर साथ ही एक बात और है, मैं कभी कभी ENGLISH में भी लिखना चाहूँगा, क्योंकि कुछ बातें ऐसी होती हैं जो ENGLISH में लिखनी बेहतर हैं ।
श्रुतकीर्ति सोमवंशी "शिशिर"
रायबरेली
1800 Hrs. 08.03.10

OSCARS 2010

The World's highest acclaimed award for excellence in motion pictures, The Oscar Awards, were given in Los Angeles today. There were some pleasant surprises but few were not that pleasant.
The best film, The Hurt Locker, which I saw in June '09 was a surprise. The film was excellent but not so good to win the best motion picture award (at least i think so.....but who cares for me?....all i know that this is my blog). I have seen 7 of all 9 nominees for best picture category But none of them like "the best film"............I think this year all the picture were good but not up to the mark. So the best of them won........Which is The Hurt Locker.
Now the best actor was given to Jeff bridges. I haven't seen the film so NO COMMENTS. I have seen 2 films out of 5 in this category and there was no such acting to give away the awards. In best actress category it is my opinion that the award was for "Meryl streep" for her outstanding acting in "Julie and Julia" but it was a day of Sandra bullock. She was good in "The Blind Side" but.............what can i say?
In supporting actor category, the award was given to Christoph Waltz for Inglourious Basterds, who was the perfect' choice. He has acted superbly. In supporting actress category, Mo'nique was the best choice. I haven't seen the film but when i saw the other nominees, i knew it.

So in my view it was good show but could have been better...........and Sorry for James Cameron.

61 वें गणतंत्र दिवस पर............

Tuesday, January 26, 2010

आज भारत का गणतंत्र दिवस है । सब लोग खुशियाँ मना रहे हैं । पता नहीं क्यों ? पता नहीं ख़ुशी किस बात की है , ऐसी क्या तोप दगा दी हमने इन साठ सालों में । बस सुबह उठे, झंडा लहराया, टूटा फूटा राष्ट्रगान गाया, दिन भर देश भक्ति के गाने बजाये और दूसरों को सुनने पर मजबूर किया, टीवी पर गाँधी या क्रांति फिल्म देख के चहक लिए और बस हो गया गणतंत्र दिवस । और हाँ छुट्टी भी मना ली । इस काम में बहुत तेज़ हैं हम लोग । कुछ हो न हो छुट्टी और जश्न ज़रूर मनाते हैं हम लोग । इन साठ साल में हमने काफी प्रगति की है, जो कि एक बड़ी बात है । पर अभी ऐसी तमाम चीज़ें हैं जिन पर काम होना बाकी है । सबसे बड़ी समस्या है जनसँख्या । मेरा मानना है कि हमारी सारी समस्याओं की जड़ यही है । हम चार कदम आगे बढ़ते हैं यह हम को साढ़े तीन कदम पीछे खींच लेती हैं । दूसरी तरफ हैं अशिक्षा, गरीबी, कुपोषण और बेरोजगारी । यहाँ कोई इन क्षेत्रों में काम करना ही नहीं चाहता । साथ में नक्सल, आतंकवाद, जातिवाद, और राज ठाकरे (क्षेत्रवाद) जैसी समस्याएं हैं ।
हमें प्रशासनिक सुधार करने होंगे । इस देश में बाबू सबसे बड़ा सत्यानाशी है । यह बाबू शब्द तो अब गाली बनने की कगार पर है । हमारी पुलिस में सुधार की ज़रुरत है । हमारी पुलिस अभी 1860 के मैनुअल पर काम कर रही है जो कि अँगरेज़ लोग जाते वक़्त हमको थमा गए थे और साथ में हमारी आँख पर पट्टी भी बांध गए थे और कह गए थे कि "भैया, आँख मत खोलना । "
हमारे देश के योजना आयोग के मुताबिक इस देश में 26% लोग गरीबी रेखा के नीचे हैं । इस देश में अगर किसी की आय प्रतिदिन ५०रूपये है तो वह गरीबी रेखा के नीचे है । और तो और अगर ये मानक १०० रूपये प्रतिदिन कर दिया जाये तो ८० % लोग देश में गरीबी रेखा के नीचे हैं । हमारे मानक भी इतने पुराने हैं कि अब इनका कोई मतलब नही रहा ।
तो दखा जाए तो हमारे पास इतराने के लिए ज्यादा कुछ नहीं है । जो यहाँ अमीर है वो और अमीर होता जा रहा है । केवल मोबाइल फ़ोन बेंच लेने से कोई देश महान नहीं बन जाता । हमें जमीनी स्तर से काम शुरू करना होगा । हमें शहर नहीं गाँव की ओर चलना है । और चलना ही नहीं भागना भी है । क्योंकि पहले ही काफी देर हो चुकी है । देश के युवाओं को आगे आना होगा । सरकारी नौकरी के पीछे भागने से कुछ नहीं होगा । अगर हर आदमी ये ठान ले कि वह केवल अपने गाँव के लिए काम करेगा तो देखते ही देखते पूए देश का थोबड़ा बदल जायेगा । हमें इस गरीबी की रेखा को विकास के रबर से मिटाना है । तो भाई लोग संभल जाओ और अपना अपना काम ठीक से करो ।
बस मेरा तो यही नारा है "गाँव चलो "
श्रुतकीर्ति सोमवंशी "शिशिर"
2300 Hrs. 26 जनवरी 2010
रायबरेली

एक मंज़र

Friday, January 22, 2010


उफुक के दरीचे से किरणों ने झांका
फ़ज़ा तन गयी रास्ते मुस्कुराये
सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाखसारों ने घूंघट उठाये
परिंदों की आवाज़ से खेत चौंके
पुर-असरार लय में रहट गुनगुनाये
हंसीं शबनम-आलूद पगडंडियों से
लिपटने लगे सब्ज़ पेड़ों के साए
वो दूर एक टीले पे आँचल-सा झलका
तसव्वुर में लाखों दिए झिलमिलाये
( साहिर लुधयानवी )

ओबामा को शांति का नोबेल.........

Thursday, January 21, 2010



अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा को वर्ष 2009 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया । पुरस्कार देने वाली ज्यूरी ने शायद पहली बार किसी व्यक्ति को नोबेल इस लिए दिया कि वो भविष्य में शांति के लिए कुछ करने वाला है । बराक ओबामा वास्तव में ऐसी स्थिति में हैं कि वे ऐसा कुछ कर सकते हैं , वो अमेरिका के राष्ट्रपति जो ठहरे । वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है कि संपूर्ण विश्व में शांति और अशांति के लिए अमेरिका ही जिम्मेदार है । शांति के लिए भले ही न हो पर अशांति के लिए तो है । पहले अफगानियों को मदद दी कि वो रूस में शांति भंग करें फिर अब उन्ही अफगानियों से लड़ रहे हैं । यही हाल पकिस्तान का भी होगा । खैर बात तो ओबामा बाबू कि चल रही थी । अब संपूर्ण विश्व उनकी तरफ देख रहा है कि वो परमाणु अप्रसार कार्यक्रम, निरस्त्रीकरण और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे पर ठीक उसी तरह मुखातिब होंगे जैसे कि वो अपने चुनावों के दौरान "YES, WE CAN" कहते नज़र आते थे। मज़ेदार बात तो ये है कि अफगानिस्तान में उन्होंने सैनिकों कि संख्या बढ़ा दी पाकिस्तान को आर्थिक मदद का ऐलान किया और कोपेनहेगेन में ग्लोबल वार्मिंग पर हुयी बैठक में विकसित देशों से मिलकर वार्ता का कबाड़ा कर दिया । अब ऐसी स्थिति में मुझे तो ये कहीं से नहीं लगता कि वो शांति के नोबेल के लिए सही चुनाव थे । पर अब दे ही दिया है तो देखते हैं कि वो क्या ऐसा कोई चमत्कार करेंगे जिससे अमेरिका कि छवि और विश्व का भविष्य कुछ अच्छा हो जाये ।




श्रुतकीर्ति सोमवंशी "शिशिर"
19.01.2010
लखनऊ
 
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