आगे वाला और पीछे वाला.................

Thursday, April 29, 2010

इस फोटो को देख कर मेरे मन में कुछ बातें आ रही हैं -
1- आगे वाला व्यक्ति ये बात जानता है कि पीछे वाले पर भरोसा नहीं कर सकता पर बात तो शुरू की ही जा सकती है ।

2- पीछे वाला व्यक्ति ये सोच रहा है कि किसी ने देखा तो नहीं कि मैं "गिड़गिड़ा" रहा था ।

3- इस फोटो में एक "तीसरा अदृश्य" व्यक्ति भी है जो ये जानता है कि जब तक ये मामला "इन जैसों" के हाथ में रहेगा, तब तक समस्या ख़तम नहीं होगी बल्कि बढती ही जाएगी । ये "तीसरा अदृश्य" व्यक्ति कोई और नही बल्कि दोनों देशों की जनता है ।

जहाँ पैसा, वहां ईमान कैसा?

Tuesday, April 27, 2010

बिलकुल सही कह रहा हूँ । "जहाँ पैसा, वहां ईमान कैसा? " दरअसल "ईमानदार" होने में बड़ी दिक्कतें हैं । काफी परेशानियां होती हैं । आजकल हमलोग देख ही रहे हैं कि भारतीय क्रिकेट में IPL नामक एक क्रिकेट लीग का बहुत बोलबाला है । वैसे इस लीग का आधार ही पैसा है । प्राचीन समय में अफ्रीका और आस-पास के मुल्कों में अच्छे मवेशियों के लिए बोली लगती थी , ठीक वैसा ही IPL में भी हुआ । पर ऐसा हम लोग सोचते हैं । ये जो IPL वाले कहते हैं कि फलां क्रिकेटर इतने करोड़ में बिका , हमने फलां टीम इतने करोड़ में खरीदी । ये सब कोरा झूठ था । किसी भी खिलाडी को उतना धन नहीं मिला, जितने में वो बिका था । वैसे ही कोई भी टीम उतने में नहीं खरीदी गयी, जितने में वो सबको बताई गयी । चूँकि IPL पर कोई टैक्स नहीं था अतः टीम खरीदने में जितना पैसा लगा उस पर भी टैक्स नहीं था । बस इसी चीज़ में सबको मज़ा आ गया । जिस भी आदमी का रसूख था , उसने अपना काला धन इसमें लगा दिया और नाम आया उस कंपनी का, जिस कंपनी के नाम पर टीम खरीदी गयी । दरअसल उस कंपनी के नाम के आड़ में इस देश हरामखोर उद्योगपतियों, भ्रष्टाचारी नेताओं और कमीने लोगों का पैसा लगा था ।
अब यही बात थरूर वाले केस में भी हुयी । ये थरूर महाशय ही थे जिन्होंने अपने राजनैतिक करियर कि शुरुआत में नेहरु-गाँधी परिवार दोषी ठहराया था देश की ख़राब स्थिति के लिए । पर जब देखा कि जनता तो कांग्रेस को ही वोट दे रही है तो आ गए उन्ही की नैय्या में । फिर बन गए विदेश राज्य मंत्री और चिड़िया बनकर चहचहाने (Twittering) लगे । बाद में अपनी "ताकत" के दम पर अपनी मित्र के नाम पर IPL में टीम में हिस्सेदारी दबा ली वो भी बिना पैसा लगाये ।
तो समझने वाली बात ये है कि इस आई०पी०एल० के समंदर में बड़ी मछलियाँ भी हैं , काफी गहरायी में बैठकर अपना खेल नियंत्रित कर रही हैं और अगर "सरकार" ने चाहा ..............माफ़ कीजियेगा.............."भगवान्" ने चाहा तो वो कभी सामने नहीं आएँगी । तो भैया सौ कि सीधी एक बात है कि जहाँ पैसा होता है वहां ईमान नाम की कोई चीज़ नहीं होती है । ये मानवजाति की चारित्रिक विशेषता है, अतः हमें ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए । ये तो होना ही था । इस देश में बहुत कम काम बिना किसी भ्रष्टाचार के हुए होते हैं , इस देश का निकाय अब भ्रष्ट हो चुका है । आम आदमी भ्रष्टाचार और सदाचार में फर्क नहीं करता और न ही करना चाहता है ।
" आजकल जिसको जहाँ मौका मिलता है , वो वहीँ भ्रष्टाचार के तवे अपने स्वार्थ की रोटी बनाता है , खुद खाता है, दूसरों को खिलाता है और बनाने के लिए प्रेरित भी करता है । "

आई. पी. एल फ़ाइनल- "एक रहस्य"

Monday, April 26, 2010

आज आई.पी.एल का फाइनल मैच देखा । सबसे पहले तो "चेन्नई सुपर किंग्स" को बधाई कि वे सिरीज़ जीत गए हैं । चूंकि मैं "मुंबई इंडियंस" का समर्थक हूँ, इसलिए थोड़ी निराशा हुयी । बहुत सारीबातें हैं । समझ में नहीं आ रहा है कहाँ से शुरू करुँ । वैसे दुःख तो काफी हुआ है क्योंकि पिछले दो सीज़न से मैं "मुंबई" को सपोर्ट करता आ रहा हूँ । जिसका एक बहुत सीधा सा कारण है "सचिन तेंदुलकर" । मैं ये पहले भी लिख चुका हूँ कि मेरे लिए क्रिकेट का अर्थ है "सचिन" । पर आज मैं सचिन की कप्तानी से काफी सकते में हूँ । पूरी सिरीज़ में आपका जो प्लेयिंग एलेवेन था , आज आपको वही बरक़रार रखना चाहिए था । कोई भी अँधा-पागल यही करता । पर सच बात तो ये है कि "अँधा-पागल" ही ऐसा करेगा , क्योंकि ऐसा करने पर शायद "मुंबई" जीत जाती । ये मैच रहस्यों से भरा हुआ है । कैच भी टपक गए या टपकाए गए , कोई नहीं बता सकता ।
बैटिंग क्रम में भी बेकार के बदलाव किये गए । पोलार्ड को इतना बाद में क्यों भेजा ये समझ के बाहर है । जो बल्लेबाज़ पूरे टूर्नामेंट में आपका "हिटर" रहा हो उसे आप हरभजन और डुमिनी से कैसे बदल सकते हैं । ये बात पोलार्ड ने 18 वे ओवर में 22 रन कूट के सिद्ध भी कर दी । मैं ज्यादा गड़े मुर्दे नहीं उखाड़ना चाहता क्योंकि अब बारीकी करने से कोई फायदा नहीं है । जो "नियति" ने "लिखा" था वही मैदान पर भी किया गया ।

फोन उठाना ज़रूरी है क्या ?

Monday, April 12, 2010

एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि " घंटी बजने पर फोन उठाना ज़रूरी है क्या ? अगर नहीं उठाया तो कौन सा पहाड़ टपक जायेगा । फ़ोन ही तो है, नहीं उठाओगे तो कौन सा पके पपीते कि तरह टपक के सड़ जायेगा । किसी ने बांधा तो है नहीं, अगर नहीं उठाया तो ऐसा तो होगा नहीं कि "बेहेनजी" राजनीति त्याग देंगी । हाँ यार अगर ऐसा हो जाता तो शायद मैं फ़ोन न उठता । " पर विडम्बना यही है कि इतना सब मालूम होने के बावजूद फ़ोन उठा ही लेता हूँ । पता नहीं खुद को रोक क्यों नहीं पाता ?
लेकिन ये सब यहाँ लिखने से का फायदा है बबुआ......................................अब चलित अही........राम राम ।

"जैसी जहाँ की जनता, वैसी वहां की सरकार"

ब्रिटेन में एक कहावत है "जैसी जहाँ की जनता, वैसी वहां की सरकार । अगर सोचा जाये तो ये बात काफी हद तक सही भी लगती है । हमारी सरकार हम सब के बीच से ही चुने गए प्रतिनिधियों द्वारा बनती है । इसका मतलब यही है कि अगर यही प्रतिनिधि जब कोई गलत काम करते हैं और कानून की धज्जियाँ उड़ाते हुए नज़र आते हैं तो हमें इनकी भर्त्सना नहीं करनी चाहिए बल्कि पहले खुद अपने गिरेबां झाँक लेना चाहिए । आज सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये है कि हमारी शिक्षा पद्धति में "नैतिक शिक्षा" और "चरित्र-निर्माण" का कहीं कोई नाम-ओ-निशान नहीं है । जब कोई भी व्यक्ति चरित्र गत गुणों की बात करेगा ही नहीं तो ऐसे ही लोग तो राजनीति में आयेंगे क्योंकि ऐसे लोग ही तो बहुतायत में हैं । ज़रूरत है समाज में नैतिकता और सदाचार की जगह बनाना ।
जैसा हमारा समाज होगा, वैसी ही हमारी सामाजिक संस्थाएं भी होंगी । पुलिस, प्रशासनिक विभाग, राजनैतिक लोग सभी इसी समाज का हिस्सा हैं । ये सब दुसरे ग्रह से नहीं आये हैं । इसलिए अगली बार से इनको दोष देने से पहले खुद से ये पूछो कि "अगर तुम इनकी जगह होते तो क्या करते?" और इस प्रश्न का जवाब सही -सही दो । क्योंकि बोलने के लिए हर आदमी अपनी अपनी गीता और राम चरित मानस बांचता है , पर जब करने का मौका मिलता है तो उस दूसरे से भी सौ कदम आगे निकल जाता है । इसलिए कह रहा हूँ कि सबसे पहले आगे आने वाली पीढ़ी को सही शिक्षा देनी बहुत ज़रूरी है । अन्यथा बहुत देर हो जाएगी और समाज में चारित्रिक गिरावट घर कर जाएगी ।

"सचिन एक महान व्यक्ति और खिलाडी हैं"

Sunday, April 11, 2010

मेरे लिए क्रिकेट का मतलब है सचिन तेंदुलकर की बैटिंग । बचपन से लेकर आजतक क्रिकेट देखते हुए मुझे करीब 16-17 साल हो रहे हैं । पर अभी भी सचिन की बैटिंग ही सब कुछ है । बहुत से क्रिकेटर आये, जिन्हें मैं पसंद करता हूँ पर वो मेरे लिए कभी भी उस मुकाम तक नहीं पहुँच पाए जिस पर सचिन हैंमेरे लिए वो एक क्रिकेटर से बढ़कर हैंमैं सही मायनों में उनका सम्मान करता हूँकोई व्यक्ति अपना काम कितनी शिद्दत से कर सकता है , यह सचिन से सीखने को मिलता हैवो युवाओं के लिए एक आदर्श हैंउन्होंने साबित कर दिया है कि वो केवल एक खिलाडी ही नहीं हैं, वो अपने आप में एक "इंस्टीट्यूशन" हैं
2004 की गर्मियों में ऑस्ट्रेलियन टीम भारत आई थीएक मैच में ऑस्ट्रेलियन बॉलर ब्रैड हौग ने सचिन को आउट कर लिया । मैच के बाद वो सचिन के पास आया और सचिन से उस बॉल पर उनका साइन करने को कहासचिन ने साइन किया और लिखा "this will not happen again". तब से लेकर आजतक ब्रैड होग सचिन को दुबारा आउट नहीं कर पायातो ये है सचिन का आत्म-विश्वास । एक महान ऑस्ट्रेलियन क्रिकेटर एक बार भारत के कोच बनकर आये थे , श्रीमान ग्रेग चैपल । उन्होंने आते ही "युवा राग" अलापना शुरू कर दिया थावे सचिन, द्रविड़, गांगुली, कुंबले जैसे अनुभवी क्रिकेटरों के पीछे "नहा-धो" के पड़ गए थेयुवा शक्ति ठीक है , अपनी जगह सही है, पर अनुभव का भी होना ज़रूरी हैआज उनके कथित "युवा" और "प्रतिभाशाली" क्रिकेटर जो 20-20 और आईपीएल को अपना दहेज़ समझते हैं, वो भी इन चारों के आगे फेल हैंसचिन आईपीएल में सर्वाधिक रन बनाने वाले खिलाडी हैं ।
कुल-मिलकर मेरा यह कहना है कि सचिन हमेशा से सर्वश्रेष्ठ रहे हैं और आगे भी रहेंगेउनकी सब से बड़ी खासियत ये है कि वो कभी किसी के कमेन्ट पर कोई जवाब नहीं देते , बस अपना काम करते हैं । आज वो क्रिकेट में नए नए मायने स्थापित कर रहे हैंबात बस ये है कि हम सिर्फ उनका साथ दे सकते हैं, उन्हें प्रोत्साहित कर सकते हैं , वे एक समर्पित भारतीय हैं और हम सब के बीच में से ही हैंमेरे लिए वे एक महान शख्सियत हैं, जो भारत-रत्न के हक़दार हैं , क्योंकि वे अपने क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ हैं ।
"सचिन एक महान व्यक्ति खिलाडी हैं, ऐसे व्यक्ति कम ही होते हैं "

" न्यूज़ चैनल वालों को दीवार में चुनवा देना चाहिए "

Tuesday, April 6, 2010

बात अभी अभी की है । एक न्यूज़ चैनल पर अभी खबर आई की दंतेवाडा में नक्सलियों ने CRPF के 55 जवान मार दिए हैं । फिर इस खबर पर विश्लेषण शुरू हुआ । गृह मंत्री चिदंबरम का बयान सुना । कुछेक मंत्रियों , जानकारों के बयान आये । इसी बीच उसी चैनल का एक अत्यंत मूर्ख और सूअर टाइप संवाददाता चैनल पर आकर बकने लगा । उसकी एक भी लाइन सुनकर ये नहीं लग रहा था कि उसको नक्सलियों या ऑपरेशन ग्रीन हंट के बारे में कुछ भी पता है । बस मुंह फाड़ कर रिरियाने लगा । तभी किसी बुद्धिमान आदमी ने पूर्व डीजीपी श्री प्रकाश सिंह जी से फ़ोन पर बात शुरू की । पर उस महान आत्मा से ये भी नहीं सहा गया और बदतमीज़ ने उनसे ये कहकर कि "समय" की कमी के कारण आपसे यहीं बात ख़तम करता हूँ और धन्यवाद कहकर बात ख़तम कर दी । 5 मिनट बाद "प्रियंका के ठुमके" नाम का एक भौंडा सा प्रोग्राम, एक भौंडी सी , अभद्र , मूर्ख , अनपढ़ और भद्दी बातें करने वाली बदतमीज़ महिला ने प्रारंभ कर दिया । मतलब नक्सलियों द्वारा मारे गए वो 55 जवान, चिदंबरम, प्रकाश सिंह और अन्य जानकर लोग पागल हैं क्या? यार कम से कम जो खबर आम आदमी के जीवन से कोई ताल्लुक नहीं रखती उसे तो मत दिखाओ वो भी ऐसे मौके पर ।
एक बुद्धिमान आदमी अपनी बात पूरी भी नहीं कर पता है और आप एक नचनिया गवनिया वाला प्रोग्राम शुरू कर देते हैं । दूसरी तरफ वो संवाददाता सीधे गृहमंत्री और ऑपरेशन के डीजीपी को दोषी ठहराकर बडबडा रहा है । अरे *****! क्या बोल रहे हो, क्या बोलना है, क्या नहीं बोलना है? कुछ भी सोच नहीं रहे हो । अगर नहीं मालूम है तो केवल खबर सुना दो, उसमे काहे अपनी ग्रैजुअशन् छांटने लगते हो ।
हे भगवन !! इनको तुम अब उठा ही लो, अन्यथा मैं ही कुछ कर बैठूंगा !!
 
FREE BLOGGER TEMPLATE BY DESIGNER BLOGS