"कॉमनवेल्थ राग"

Sunday, September 26, 2010

आज कल हर समाचार चैनेल पर बस एक ही राग बज रहा है , "कॉमनवेल्थ राग" । तो मैने सोचा कि मैं भी इस मामले पर अपनी तान छेड़ूँ । सभी एडिटर अपनी तरफ से ऊँचे ऊँचे सुर लगाके दिल्ली सरकार और खेल मंत्रालय की बखिया उधेड़ रहे हैं । आज समाचार सुना तो किसी ने बताया कि दक्षिण अफ्रीकी टीम के मैनेजर ने कहा कि उन्हें खेलगाँव के एक कमरे में एक भारतीय सांप दिखा है । अब यहाँ पर दो संभावनाएं हैं जो मैं देख रहा हूँ ।

1. कि ये सांप भारतीय है, मैनेजर को कैसे पता ? इसका मतलब वो अपना सांप साथ लाये हैं और अगर लाये भी हैं तो सांप खेल गाँव में कैसे रह सकता है । उसके लिए क्या दूसरी व्यवस्था नहीं होनी चाहिए । भाई " अतिथि देवो भवः " ।

2. दूसरी संभावना ये हो सकती है कि वो सही में भारतीय सांप था क्योंकि मंत्रालय ने दक्षिण अफ्रीकी खिलाडियों को उनके घर जैसा माहौल देने के लिए उनके कमरे में सांप छोड़ा था । शायद इसीलिए उनकी टीम का मैनेजर गुस्सा रहा था कि उनके सांप को अनदेखा ( ignore ) किया गया ।

पर ये तो सांप कि बात हुयी । ऐसी ही कई घटनाएं हैं । आज दिल्ली सरकार ने काम खतम करने कि डेड लाइन फिर बढ़ा दी है । जल्दी ही इसे बढ़ाकर समापन दिवस तक कर दिया जायेगा । इसी तरह खबर आई कि खेल गाँव में इन्टरनेट कि व्यवस्था अच्छी नहीं है । हो सकता है कि किसी अधिकारी ने पास के ही किसी साइबर कैफे वाले से पैसे खाकर खेलगांव में नेट कि व्यवस्था गड़बड़ कर दी हो । होने को तो बहुत कुछ, और कुछ-कुछ भी हो सकता है पर सही बात तो ये है कि सबसे पहले तो ये हो रहा है कि संसार में भारत की गजब की भद्द पिटी है । अब दोष चाहे कलमाड़ी-घोडागाड़ी को दें या गिल-बिल को दें, बंटाधार तो हो ही चुका है । बस अब किसी तरह ये खेल निपट जायें । फिर मैं मनमोहन और कलमाड़ी के साथ गंगा नहाने का प्रोग्राम बनाऊं । अब आप पूछेंगे कलमाड़ी क्यों ? अरे भाई ! है तो अपना ही बन्दा ( भले ही हो थोडा गन्दा ) ।

"शक्ति और क्षमा"

Monday, September 13, 2010

क्षमा, दया, तप, त्याग, मनोबल
सबका लिया सहारा
पर नर व्याघ्र सुयोधन तुमसे
कहो, कहाँ कब हारा ?

क्षमाशील हो रिपु-समक्ष
तुम हुये विनत जितना ही
दुष्ट कौरवों ने तुमको
कायर समझा उतना ही।

अत्याचार सहन करने का
कुफल यही होता है
पौरुष का आतंक मनुज
कोमल होकर खोता है।

क्षमा शोभती उस भुजंग को
जिसके पास गरल हो
उसको क्या जो दंतहीन
विषरहित, विनीत, सरल हो ।

तीन दिवस तक पंथ मांगते
रघुपति सिन्धु किनारे,
बैठे पढ़ते रहे छन्द
अनुनय के प्यारे-प्यारे ।

उत्तर में जब एक नाद भी
उठा नहीं सागर से
उठी अधीर धधक पौरुष की
आग राम के शर से ।

सिन्धु देह धर त्राहि-त्राहि
करता आ गिरा शरण में
चरण पूज दासता ग्रहण की
बँधा मूढ़ बन्धन में।

सच पूछो , तो शर में ही
बसती है दीप्ति विनय की
सन्धि-वचन संपूज्य उसी का
जिसमें शक्ति विजय की ।

सहनशीलता, क्षमा, दया को
तभी पूजता जग है
बल का दर्प चमकता उसके
पीछे जब जगमग है।
-राष्ट्रकवि श्री रामधारी सिंह 'दिनकर'

A Serious sarcasm

Friday, September 10, 2010

Looks like everyone want to "donate" in his own way.

Cartoon Courtsy: Satish Acharya (www.cartoonistsatish.blogspot.com)

" परिवर्तन खुद से शुरू होता है "

Friday, September 3, 2010

मेरे पिछले पोस्ट में मैंने एक कोटेशन लिखी थी - YOU DON'T HAVE TO BELIEVE IN YOUR "GOVERNMENT" TO BE A GOOD INDIAN, YOU JUST HAVE TO BELIEVE IN YOUR "COUNTRY" दरअसल मेरा ये मानना है कि सरकार एक साधन है, जनहित के कार्यों के संपादन के लिए । पर काम तो हम सबको खुद ही करना होगा । सबसे पहले इस बात को भी मानना होगा कि यदि हम आने वाले समय में हमें नया, परिवर्तित और विकसित भारत चाहिए तो पहले खुद को परिवर्तित करना होगा । केवल सरकार को दोष देने से क्या होगा ? हम खुद अपने स्तर पर समाज के लिए क्या करते हैं ? क्या हम खुद कूड़ा नहीं फैलाते और फिर सरकार को सफाई न होने पर दोष देते हैं । सरकार के लोग कोई दूसरे ग्रह से नहीं आये हैं । वे सभी हमारे बीच में से ही हैं । वे हमारे ही प्रतिबिम्ब हैं । जैसा हम सबका रवैय्या रहता है , अपने जीवन के प्रति, दूसरों के जीवन के प्रति और देश के प्रति , वैसा ही रवैय्या सरकार का भी रहता है । तो फिर ये हो-हल्ला क्यों ? सबसे मोटी बात ये है कि हम सबको पहले खुद ऐसा कोई कार्य नहीं करना है जो हम खुद नहीं चाहते कोई और करे क्योंकि
" परिवर्तन खुद से शुरू होता है "

The Real Thought

Thursday, September 2, 2010

" YOU DON'T HAVE TO BELIEVE IN YOUR "GOVERNMENT" TO BE A GOOD INDIAN, YOU JUST HAVE TO BELIEVE IN YOUR "COUNTRY."
 
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