क्या लिखूं यार ? कुछ वैचारिक प्रतिरोध सा महसूस हो रहा है आजकल । लेकिन ये प्रतिरोध केवल लिखने के वक़्त ही महसूस होता है । दिनभर चाहे जितनी बकैती करवा लो हमसे, पर लिखने के समय दिमाग एक दम शून्य सा प्रतीत होता है । वैसे ये कोई बड़ी बात नहीं है । मुझसे पहले भी कई "प्रख्यात" लेखकों को ऐसा ही लगता था, पर वे इससे जल्दी ही मुक्त हो जाते थे । शायद मैं भी उन्ही लोगों की तरह इस अवरोध से मुक्त होकर विचारों के अविच्छिन्न प्रवाह में गोते लगा सकूं । ईश्वर मुझे सामर्थ्य प्रदान करे ।
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Aaameen....
ReplyDeleteWhat matters is प्रतिरोध.
ReplyDeleteअब दिल्ली दूर नहीं ....प्रतिरोध का एहसास हो ही गया, अस्तु अब महान बनना भी आसान हो गया .