"कुछ वैचारिक प्रतिरोध"

Tuesday, May 31, 2011

क्या लिखूं यार ? कुछ वैचारिक प्रतिरोध सा महसूस हो रहा है आजकल । लेकिन ये प्रतिरोध केवल लिखने के वक़्त ही महसूस होता है । दिनभर चाहे जितनी बकैती करवा लो हमसे, पर लिखने के समय दिमाग एक दम शून्य सा प्रतीत होता है । वैसे ये कोई बड़ी बात नहीं है । मुझसे पहले भी कई "प्रख्यात" लेखकों को ऐसा ही लगता था, पर वे इससे जल्दी ही मुक्त हो जाते थे । शायद मैं भी उन्ही लोगों की तरह इस अवरोध से मुक्त होकर विचारों के अविच्छिन्न प्रवाह में गोते लगा सकूं । ईश्वर मुझे सामर्थ्य प्रदान करे ।

नदिया के पार-7

नदिया के पार-6

नदिया के पार-5

नदिया के पार-4

नदिया के पार-3

नदिया के पार-2

नदिया के पार-1

"इस देश में जनता जिसे चाहती है उसे गद्दी सौंपती है"

Saturday, May 14, 2011

कहते हैं ,जब बंगाल को छींक आती है तो देश को जुकाम हो जाता है और अब बंगाल को खांसी गयी है आज 13 मई को 13 साल पुरानी "तृणमूल कांग्रेस" ने बूढ़े और अप्रासंगिक (शायद सबसे उपयुक्त रहेगा ये कहना) हो चुके "वामपंथी" दल को 40 साल बाद उसकी राजगद्दी से उतार दिया है । ममता बनर्जी ने लेफ्ट के लाल किले को ढहा दिया है । ये बंगाल में एक नयी सुबह का संकेत है, पर ये सुबह इतनी आसानी से नहीं आई है । इसके लिए ममता बनर्जी ने बेहद कठिन राह चुनी थी । इतने सालों से वो वामपंथियों से अकेले लड़ रहीं थींकांग्रेस तो केवल दिखावा कर रही थी । पर तृणमूल ने तो पंचायत स्तर से लड़ाई शुरू की और लोकसभा तथा विधानसभा जैसे मोर्चों पर लेफ्ट को पटखनी दी है । 2006 के चुनावों में करारी हार के बावजूद उन्होंने संघर्ष जारी रखा । 1998 में तृणमूल कांग्रेस की नीव रखने के बाद से ममता ने बहुत संघर्ष किया है । वो अक्सर गरीबों, किसानों और ज़रुरतमंदों के लिए अनशन और हड़ताल पर बैठ जाती हैंसिंगूर मामले में तो अनशन पर जाने से उनकी हालत काफी ख़राब हो गयी थीअटल जी ने कहा था कि वो महिला जिद्दी है, मर जाएगी पर अनशन नहीं तोड़ेगीआज उन संघर्ष के दिनों का फल मिला हैवो बंगाल में राजनीति की नयी इबारत लिख रही हैं ।

किसी भी राजनैतिक दल के लिए लेफ्ट का तिलिस्म तोडना टेढ़ी खीर साबित होता रहा है पर मेरी समझ से लेफ्ट की हार के दो प्रमुख कारण रहेपहला ये कि पिछले 40 साल में बंगाल में विकास के नाम पे एक धेला भी यहाँ से वहां नहीं हुआ । आज़ादी के बाद से सब जस का तस पड़ा हुआ है । वहीँ दूसरा कारण ये है कि पहली बार जनता के सामने एक दमदार विकल्प भी मौजूद था । सो वही हुआ जो होना चाहिए था । वही विकल्प लेफ्ट के लिए रायता फैला गया । इन सब बातों के बीच एक बात कायम है कि ऐसी जीतों से भारत में लोकतंत्र की शक्ति और मजबूत हुयी है । साथ ही हम लोकतान्त्रिक रूप से एक मजबूत राष्ट्र बनकर उभरे हैं । इस देश में अभी भी जनता का राज हैजनता जिसे चाहती है उसे गद्दी सौंपती है चाहे वो ममता बनर्जी हों या जयललिता

अब क्या कहा जाये ?

Friday, May 6, 2011


काफी देर माथापच्ची करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि ओसामा बिन लादेन की जो फोटो मीडिया में जारी की गयी है वो नकली है । ओसामा की एक पुरानी फोटो (जो ऊपर दिख रही है) का प्रयोग करके और उसे कंप्यूटर से "एडिट" करके ये फोटो बनायीं गयी है । मीडिया में दी गयी फोटो को ध्यान से देखने पर ये साफ़ साफ़ नज़र आ रहा है कि ये नकली है । मैंने दोनों फोटो साथ में लगा दी हैं । सच्चाई सामने है । शायद इसीलिए अमेरिका अन्य फोटो जारी नहीं कर रहा है । इसका एक और मतलब है , कि अगर अमेरिका ये नकली फोटो जारी कर सकता है तो हो सकता है कि ये पूरा ऑपरेशन ही नकली हो । अगर लादेन जिंदा है और इस वाकये से खफा नहीं है तो हो सकता है कि जल्दी ही उसका कोई वीडियो आ जाये । पर ऐसा होना मुश्किल है क्यूंकि अमेरिका ऐसा कच्चा खेल नहीं खेलेगा । खासतौर पर तब जब राष्ट्रपति ओबामा की गद्दी दांव पर हो ।
पर एक़ बात साफ़ है कि जो चीज़ जैसी दिखती है वैसी होती नहीं है अगर होती भी है तो बाद में वैसी दिखती नहीं है ।

" ढाक के तीन पात "

Tuesday, May 3, 2011

कल खबर देखी कि लादेन भैया निकल लिए । पर जो मामला है वो थोड़ा पेचीदा लग रहा है । कार्रवाई बेहद गुपचुप तरीके से हुयी । यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी किसी को नहीं मालूम था इसके बारे में । पर एक बात बड़ी मज़ेदार है कि पाकिस्तान में कोई भी घुसके किसी को भी मार देता है और ये लोग घुइंयाँ छीलते रहते हैं । इसके बाद तुरन्त ही लादेन का शव भी दफना दिया गया । एक साईट ने कहा है कि जो फोटो मृत लादेन का दिखाया गया है वो कंप्यूटर से "एडिटेड" है । अभी तो ये शुरुआत है । पूरे मामले पर अभी ना जाने कितने पेंच ढीले होंगे और कितने सवाल पैदा होंगे । खैर ये तो अंतर्राष्ट्रीय खबर है । अपने देश में वही ढाक के तीन पात वाली कहानी चल रही है । वही पुराना भ्रष्टाचार का मुद्दा । वही प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे लीक होना । वही गांगुली, वही आईपीएल ।

आज एक मज़ेदार बात भी हुयी । किसी "बुद्धिमान" पत्रकार ने वायुसेना अध्यक्ष से पूछा कि क्या भारत भी ऐसी कार्रवाई करने में सक्षम है ? उन्होंने जो जवाब दिया उसका तो कोई मतलब मेरी समझ में नहीं आया । पर मेरे विचार से, किसी चीज़ में सक्षम होना और उसको करना दोनों अलग-अलग बात है । सक्षम होने से कहीं ज्यादा कठिन है काम को पूरा करना । भारत में सक्षमता है कि वो पाकिस्तान में बैठे अपने दुश्मनों को मार सके पर उसको करने के लिए जो राजनैतिक इच्छाशक्ति चाहिए वो यहाँ किसी माई के लाल में नहीं है । अटल जी ने बहुत ट्राई मारा था पर केवल एलओसी तक ही पहुँच पाए थे ।

चलो ये सब तो चलता ही रहेगा । मैं चला निद्रा-लोक में । आजकल यहाँ कम ही लिख पा रहा हूँ । मेरे हिसाब से कारण ये है कि मेरे अन्दर की "भड़ास और रचनात्मकता (creativity), भारत में बैठे अंग्रेजों के लिये अंग्रेजी अनुवाद लिखना ज़रूरी है, कहीं और ही निकल रही है । पर आज सोचा कि "अनुभाव" के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार ठीक नहीं ।
धन्यवाद । Justify Full
 
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