..........................नक्सलवाद, आजकल बड़ा चर्चा का विषय बन गया है । बात गंभीर भी तो है । पश्चिम बंगाल के नक्सलबाड़ी से जन्मे इस "वाद" को चारू मजूमदार, कानू सान्याल और जांगल संथाल ने "हिंसक" क्रांति का नाम देकर 1967 में शुरू किया था । तब ये एक छोटा मोटा स्थानीय आन्दोलन था । पर अब नहीं रहा । वर्तमान समय में ये हमारे देश के लिए सबसे बड़ा खतरा बन गया है । क्योंकि जब आपके घर का आदमी ही आपका दुश्मन हो जाये तो बात काफी गंभीर हो जाती है ।
...............................पर अब वो बात नहीं रही । मेरे कहने का मतलब है कि आन्दोलन अब बिना किसी "वजह" के हो रहा है और अपने उद्देश्य से भटक भी गया है । आप विकास के मुद्दे को ट्रेन उड़ाकर कैसे उठा सकते हैं या फिर किसानों की समस्या को निर्दोष लोगों को मारकर कैसे हल कर सकते हैं । ये बात मानी जा सकती है कि सरकारों ने नक्सल प्रभावित क्षेत्र में कोई उल्लेखनीय कार्य नहीं किया है । पर किसी भी समस्या को हल करने का ये सबसे घटिया और शर्मनाक तरीका है । अब तो हद ही हो गयी है । जिस भी किसान की जिस साल फसल ख़राब हो जाती है वो उस साल नक्सलवादी बन जाता है और अगले साल अगर फसल सही हो गयी तो फिर किसान । ऐसी समस्या का कोई तुरत-फुरत हल नहीं निकल सकता । इस समस्या का हल है शिक्षा और सतत-स्थिर-विकास ( sustainable development ) ।
..........................नक्सलियों की मदद के लिए चीन, पाकिस्तान और बंगलादेश के कई संगठनों के नाम सामने आये हैं । मतलब यार शर्म की बात है कि इतने "संयोजित" (Organized) तरीके से कोई सहायता का काम नहीं होता । कोई भी संगठन एडस या किसी और समस्या से जूझने के लिए इतनी माथापच्ची नहीं करता , इतना खून नहीं बहाता । पर जब ट्रेन की पटरी उड़ानी होती है या सुरक्षा बलों की गाडी को बम या लैंडमाइन से उडाना हो या कोई पुलिस चौकी में आग लगानी हो तो सबकी समस्याएं बड़ी विकट हो जाती हैं और इतनी ज्यादा विकट हो जाती हैं कि बस यही एक हल रह जाता है कि एक निर्दोष व्यक्ति को मार दो और उसे पता भी ना लगे कि वो क्यों मरा ? और मरा कि शहीद हुआ ।
..........................भाई मेरी समझ में तो नहीं आता ऐसा आन्दोलन । लगता ही नहीं है कि ये उन्ही गाँधी जी का देश है जो अहिंसा का पाठ पढ़ा-पढ़ा के मर गए । पर साला किसी के दिमाग में एक धेला तक नहीं घुसा ।
..........................आज का नक्सलवाद आन्दोलन उस प्राचीन जगदगुरु भारतवर्ष के गौरवमयी इतिहास के लिए एक धब्बा है और हमारी सारी परम्पराओं और मान्यताओं के अस्तित्व पर एक प्रश्नचिन्ह ।
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