अमेरिकन राष्ट्रपति बराक ओबामा को वर्ष 2009 में शांति के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया । पुरस्कार देने वाली ज्यूरी ने शायद पहली बार किसी व्यक्ति को नोबेल इस लिए दिया कि वो भविष्य में शांति के लिए कुछ करने वाला है । बराक ओबामा वास्तव में ऐसी स्थिति में हैं कि वे ऐसा कुछ कर सकते हैं , वो अमेरिका के राष्ट्रपति जो ठहरे । वर्षों से यह परंपरा चली आ रही है कि संपूर्ण विश्व में शांति और अशांति के लिए अमेरिका ही जिम्मेदार है । शांति के लिए भले ही न हो पर अशांति के लिए तो है । पहले अफगानियों को मदद दी कि वो रूस में शांति भंग करें फिर अब उन्ही अफगानियों से लड़ रहे हैं । यही हाल पकिस्तान का भी होगा । खैर बात तो ओबामा बाबू कि चल रही थी । अब संपूर्ण विश्व उनकी तरफ देख रहा है कि वो परमाणु अप्रसार कार्यक्रम, निरस्त्रीकरण और ग्लोबल वार्मिंग के मुद्दे पर ठीक उसी तरह मुखातिब होंगे जैसे कि वो अपने चुनावों के दौरान "YES, WE CAN" कहते नज़र आते थे। मज़ेदार बात तो ये है कि अफगानिस्तान में उन्होंने सैनिकों कि संख्या बढ़ा दी पाकिस्तान को आर्थिक मदद का ऐलान किया और कोपेनहेगेन में ग्लोबल वार्मिंग पर हुयी बैठक में विकसित देशों से मिलकर वार्ता का कबाड़ा कर दिया । अब ऐसी स्थिति में मुझे तो ये कहीं से नहीं लगता कि वो शांति के नोबेल के लिए सही चुनाव थे । पर अब दे ही दिया है तो देखते हैं कि वो क्या ऐसा कोई चमत्कार करेंगे जिससे अमेरिका कि छवि और विश्व का भविष्य कुछ अच्छा हो जाये ।
श्रुतकीर्ति सोमवंशी "शिशिर"
19.01.2010
लखनऊ
nice!
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