नूतनवर्षाभिनंदन !!

Saturday, December 31, 2011


नूतनवर्षाभिनंदन !! "अनुभाव" के पाठकों, सभी मित्रों एवं प्रियजनों को मेरी तरफ से नववर्ष की हार्दिक 
शुभेच्छाएं !! आपको ईश्वर का आशीर्वाद प्राप्त हो और जीवन में नित नए आयाम स्थापित हो !! धन्यवाद !!

Happy New Year !! On this auspicious occasion of New Year, My hearty wishes to the 
readers of "Anubhaav", Friends and Loved ones. May God bless You and install new 
dimensions in life. Thanks !!

"दुनियादारी की बातें काफी पेचीदा बनायीं गयी हैं ताकि कोई ट्राई मार के भी खुश न रह पाए"

Tuesday, December 27, 2011


           सुख एक अनुभूति है जो किसी न किसी अवस्था या दशा के सापेक्ष देखी जाती है l वास्तव में सुख और दुःख केवल सापेक्षता के परिमाण हैं l किसी प्रिय के मरने पर दुःख होता है और अगर कोई कम प्रिय है तो उसके मरने पर कम दुःख होता है l और तो और यदि कोई अप्रिय है तो उसके मरने पर ख़ुशी होती है l तो मतलब ये है कि मरने से दुःख और सुख का कोई लेना देना नहीं है l 

            वैसे तो आजकल आदमी का Default मूड दुःख ही होता है l क्यूंकि वो परेशान है अपने परिवार से, अपने काम से, इस महंगाई से, इस टीवी से, सचिन के 100 वें शतक के इंतज़ार से, भ्रष्टाचार से और अब जिस तरह से अन्ना हजारे दिन भर राखी सावंत की तरह टीवी पर गला फाड़ते रहते हैं, उनसे भी दुखी है l पहले मैं इस लेख को काफी सावधानी से और गंभीरता से लिखने वाला था l पहला पैराग्राफ थोड़ा है भी वैसा l पर जैसे जैसे मैं लिखता जा रहा था, मैं दुखी होता जा रहा था l फिर मैंने पल्टी मार के लेख का हार्ट ट्रांसप्लांट कर दिया और अपने मूड का कबाड़ा होने से बचा लिया l
            
             वैसे खुश रहना एक कला है और हमेशा खुश रहने की कोशिश करनी चाहिए (मेरे कहने का ये मतलब नहीं है कि आप के बप्पा मर गये हों और आप ठुमके लगा रहे हैं ) l बस आपको ये बात टाइम पे याद रहनी चाहिए कि आप जो भी कर रहे हैं खुश रहने के लिए ही कर रहे हैं l बाकी दुनिया जाये तेल लेने (अब इस बात का भी ये मतलब नहीं है कि पडोसी के बप्पा मर गये हो और आप फिर ठुमके लगाने लगे) l वैसे देखा जाये तो ये दुनियादारी की बातें काफी पेचीदा बनायीं गयी हैं ताकि कोई ट्राई मार के भी खुश न रह पाए l सिचुएशन कैसी भी हो ट्राई मारने में किसी का खुल्ला नहीं होता l चलिए हम अब चलते हैं l आज काफी दिन बाद यहाँ हाथ पाँव मार रहे हैं l एक और बात है हमारे अग्रज भी नयके ब्लॉगर बने हैं l पर लिखते चिपका के हैं l ऐसा लिख देते हैं की पेन की स्याही सूख जाये l ये है उनका ब्लॉग "स्वर"  एक बार अवश्य देखा जाये l 
धन्यवाद !

Tuesday, October 25, 2011

Happy Deepawali to all my readers, if there are any.

" विश्वास कीजिये, भारत में प्रतिवर्ष 17000 किसान आत्महत्या करते हैं "

Thursday, October 20, 2011

जब हम छोटे से थे तो स्कूल में पढाया जाता था कि भारत एक कृषि प्रधान देश है l आज ये वाक्य कहीं नहीं सुनाई देता और सुनाई देगा भी क्यों ? इस देश को अब ज़रूरत नहीं है कृषकों की l सबका काम चल रहा है l भारत में प्रतिवर्ष 17000 किसान आत्महत्या करते हैं और किसी हरामखोर नेता या 24 घंटे बकवास करने वाले चैनलों को कोई फर्क नहीं पड़ता l क्यों? क्योंकि ये खबर प्रायोजित (sponsored) नहीं है न l प्रतिदिन के हिसाब से 46 किसान अपनी जान दे रहे हैं l अगर एक कथित कृषिप्रधान देश में अन्नदाता का ये हाल है तब तो फिर हो चुका काम !

किसी को स्टीव जॉब्स के मरने का ग़म है तो किसी किसी को iPhone 4S लॉन्च होने की ख़ुशी, किसी को Ra.One फिल्म के आने का इंतज़ार तो किसी को ऐश्वर्या राय के माँ बनने की ख़ुशी l पर किसी को इस तथ्य पर न आश्चर्य होता है और न ही दुःख l इतने लोग तो कश्मीर और या अन्य किसी संवेदनशील जगह पर भी नहीं मरते साल भर में l भाड़ में जाये पाकिस्तान और चीन, मेरी नज़र में तो सबसे ज़रूरी मुद्दा यही है l पर अगर कोई इस मुद्दे पर बात करता भी है तो वो बात राजनैतिक रंग ले लेती है l मेरा सभी Socially Active लोगों से ये अनुरोध है कि इस मुद्दे को ज्यादा से ज्यादा तरजीह दें और फैलाएं l ये मुद्दा लोकपाल और भ्रष्टाचार से कम महत्त्वपूर्ण और ध्येय नहीं है l  

ये आम बात....

Friday, September 23, 2011

कभी कभी दिमाग ख़राब होने के लिए किसी ख़राब बात होने की ज़रूरत नहीं होती l यहाँ तक कि कभी कभी उस बात का हम से जुड़ा होना भी ज़रूरी नहीं होता l आजकल मेरे साथ ये आम बात हो गयी है l

"लोकपाल हमारे अन्दर है उसे बाहर क्यूँ ढूंढ रहे हो ?"

Saturday, September 17, 2011

बहुत दिन से मन कर रहा था कि कुछ उल्टा सीधा लिखूं l पर कुछ अजीब सी व्यस्तता (आप विश्वास नहीं करेंगे मैं भी आजकल व्यस्त रहता हूँ !!) होने की वजह से ये एहसान नहीं कर पाया l दरअसल कई दिन से मैं कुलबुला रहा था लोकपाल वाले मुद्दे पर अपनी नेतागिरी छांटने को , पर ससुरा मौका नहीं लग रहा था l एक दिन बड़ी मज़ेदार बात हुयी कालोनी में झगडा हो रहा था कि ये नगर पालिका वाले कूड़ा करकट साफ़ नहीं करते हैं l पूरा मोहल्ला सड़ रहा है l किसी ने बोला अब ये सब नहीं चलेगा l हम लोगों को अनशन करना चाहिए l मेरे मन में ख्याल आया कि अब अनशन करने की क्या ज़रूरत है l अन्ना हजारे ने सबके हिस्से का अनशन कर तो लिया है और साथ में "सब" के हिस्से की टीवी फुटेज भी तो खा ली है l
अब तो उनकी बात मान भी ली गयी है l अब लोकपाल आएगा l चारों ओर खुशहाली होगी l गैय्या ज्यादा दूध देगी l अब मुर्गा भी अब जल्दी उठ के बांग लगाएगा l कोई मक्कारी नहीं चलेगी l रामराज्य स्थापित हो जायेगा l अगर आप का सफाई करने वाला सफाई नहीं करे तो तुरंत लोकपाल से कहिये l वो सफाई करने वाले को लाये न लाये, खुद सफाई ज़रूर कर देगा l भारत की तरक्की कई गुना तेज़ी से बढ़ेगी l बच्चे स्कूल जाने का बहाना नहीं कर पाएंगे l सबको अपना काम तमीज़ से करना पड़ेगा l रात में जब बच्चा नहीं सोयेगा तो मां बोलेगी- बेटा, सो जा ! वरना लोकपाल आ जायेगा l धीरे धीरे सबकुछ लोकपाल-मय हो जायेगा l लोग अपने बच्चों का नाम लोकपाल रखने लगेंगे l हर तरफ बस लोकपाल की जय जयकार होगी l

ये सब जब हो जायेगा तब क्या होगा ? तब लोकपाल पर किसका बस चलेगा ? लोकपाल की खाल के नीचे भी तो एक इसी समाज का भ्रष्ट और निकम्मा आदमी ही होगा l कुछ दिन पहले फेसबुक पर मेरे भाईसाब ने एक बड़ी अच्छी बात लिखी कि "लोकपाल हमारे अन्दर है उसे बाहर क्यूँ ढूंढ रहे हो ?" दरअसल सभ्य और सुखी समाज की कल्पना करना तब तक मुमकिन नहीं है, जब तक समाज में रहने वाले लोग सभ्य और सम्यक व्यवहार नहीं करते l ये तो नैतिक मूल्यों पर आधारित व्यवस्था है l आप किसी को लाठी मार मार के कोई काम कब तक करा सकते हो ? "जिस दिन उसका दिमाग सटक गया, वो अपने पथ से भटक गया l"
मेरा तो यही मानना है कि लोकपाल कोई समाधान नहीं है और कोई चीज़ अगर समाधान या उसका हिस्सा नहीं होती तो वो एक समस्या ही होती है l सिर्फ लोकपाल बिल आ जाने से कोई देश तरक्की नहीं करता l अभी भी कुछ ऐसे मुद्दे हैं जिस पर सबका ध्यान जाना चाहिए, जैसे ग्रामीण शिक्षा, ग्रामीण विकास, स्वास्थ्य और रोज़गार जैसे मुद्दों पर कथित सिविल सोसायटी का कोई ध्यान नहीं है l

भाई यहाँ तो यही हाल है l चलिए, जो भी है यही ही है l

Lokpal Bill: Govt version vs civil society version

Friday, August 19, 2011

Given below is a comparison of the provisions of the Lokpal Bill as proposed by the Union government and civil society organisations.

Lokpal (Govt version):

1.The Lokpal will have jurisdiction only over the Prime Minister; ministers and MPs.

2.The Lokpal will not have suo motu power to initiate inquiry or even receive compliments of corruption directly from the public. The complaints will be forwarded to it by the presiding officer of either House of Parliament.

3.It is purely an advisory body and can therefore only give recommendations of the Prime Minister on complaints against ministers and to the presiding officer of either House on complaints against the Prime Minister and MPs.

4.Since it has no police powers, the Lokpal cannot register an FIR on any complaint. It can only conduct a preliminary enquiry.

5.Anybody found to have lodged a false complaint will be punished summarily by the Lokpal with imprisonment ranging from 1 year to 3 years.

6.The Lokpal will consist of three members, all of them will be retired judges.

7.The committee to select Lokpal members will consist entirely of political dignitaries and its composition is loaded in favour of the ruling party.

8.If a complaint against the Prime Minister relates to subjects like security, defence and foreign affairs, the Lokpal is barred from probing those allegations.

9.Though a time limit of six months to one year has been prescribed for the Lokpal to conduct its probe, there is no limit for completion of trial, if any.

10.Nothing has been provided in law to recover ill-gotten wealth. After serving his sentence, a corrupt person can come out of jail and use that money.

Jan Lokpal Bill (civil society version):

1.The Lokpal will have jurisdiction over politicians, bureaucrats and judges. The CVC and the entire vigilance machinery of the Centre will be merged into the Lokpal.

2.The Lokpal can not only initiate action on its own but it can also entertain complaints directly from the public. It will not need reference or permission from any authority.

3.After completing its investigation against public servants, the Lokpal can initiate prosecution, order disciplinary proceedings or both.

4.With the corruption branch of the CBI merged into it, the Lokpal will be able to register FIRs, conduct investigations under the Criminal Procedure Code and launch prosecution.

5.The Lokayukta can only impose financial penalties for complaints found to be false .

6.The Lokpal will consist of 10 members and one chairperson, out of which only four are required to have legal background without necessarily having any judicial experience.

7.The selection committee will be broad-based as it includes members from judicial background, Chief Election Commissioner , Comptroller and Auditor General, retired Army generals and outgoing members of the Lokpal .

8.There is no such bar on the Lokpal's powers.

9.The Lokpal will have to complete its investigation within one year & the subsequent trail will have to over in another year.

10.Loss caused to government due to corruption will be recovered from all those proved guilty.

" भ्रष्टाचार के विचार का बहिष्कार करना है "

Tuesday, August 16, 2011

जब तक असत्य नहीं होगा तब तक सत्य की पहचान नहीं हो पायेगी । अच्छाई के होने के लिए बुराई का होना भी आवश्यक है । अन्ना हजारे का समर्थन करने के लिए हमें हाथ में दिये और विरोधी पोस्टर लेकर सड़क पर टहलने की ज़रूरत नहीं है । हमें भ्रष्टाचार के कार्यों से स्वयं अपनी भागीदारी को समाप्त करना है । बस इस पूरे अभियान का गुरुत्व-केंद्र केवल यही है कि हम केवल अपने निजी स्तर मात्र से भ्रष्टाचार और इससे जुड़े लोगों और विचारों का बहिष्कार करें ।

तो मतलब साफ़ है अगर कोई आपसे कोई भी ऐसा काम करने को कहता है जिसमें आपको भ्रष्टाचार की बू आ रही हो तो उसे साफ़ मना कर दें । अन्ना हजारे और उनके इस अभियान को इससे बड़ा समर्थन और कुछ नहीं ।

Thanks !!

Monday, August 8, 2011

Its been two years of Blogging. I started this Blog on Tuesday, July 28, 2009. Today it reached 4000 visitors counts .Thank you all my Readers. Without your support it was not possible at all.

"नयी सुबह और नया विचार"

Sunday, August 7, 2011

आने वाले कुछ दिन में हम अपना 65 वां स्वतंत्रता दिवस मनाएंगे । वैसे तो हम हमेशा ही चाय, पान या नाई की दुकान पर देश के कार्यतंत्र और निकाय (system) की धज्जियाँ उड़ाते रहते हैं पर ये समय है अपनी उपलब्धियों और सकारात्मक प्रयासों को सराहने और नए सिरे से विचार करने का । आज़ादी के 65 साल बाद भी देश में बहुत कुछ नहीं हो सका है पर कभी कभी ये भी देख लेने में कोई हर्ज़ नहीं है कि बहुत कुछ हुआ भी है । 1947 में दो देश में बँट गए हम । पर पड़ोसी देश का क्या हाल है, इससे हम सब वाकिफ हैं । वो लोग तो बेचारे अपना लोकतंत्र भी नहीं बचा पा रहे हैं । कोई इधर से नोच रहा है कोई उधर से खींच रहा है । हम हर पांच साल पर पूरी दुनिया को एक ऐसा अजूबा करके दिखाते हैं जो वास्तव में गर्व का विषय है । 2004 के चुनाव के बाद जनता के उलटे हुए जनमत पर रिसर्च करने के लिए चाइना और अमेरिका से लोग आये थे । अभी हाल ही में हमने जम्मू में पंचायत के चुनाव संपन्न कराये हैं जो एक नए अध्याय की शुरुआत है । हमारी सुरक्षा दुनिया के सर्वश्रेष्ठ नौजवानों के हाथ में है ।
हाँ, कुछ चीज़ें हैं जिन पर हमको काम करना है पर अभी तक जितना भी हुआ है वो कम नहीं है । 1947 में जब अँगरेज़ यहाँ से गए तो वो हमारे लिए सिर्फ एक चीज़ छोड़कर गए, निराशा । अभी कुछ दिन पहले एक जगह पढ़ा कि 1947 में "टाइम" मैगज़ीन के एक अंक में मुखपृष्ठ पर ये फोटो छपी थी:



और "कवर स्टोरी" यह थी :
INDIA-PAKISTAN: The Trial of Kali
और इस लेख में जो लिखा था उसके शुरुआती कुछ शब्द इस प्रकार थे:
On a bed of stretched thongs in an open courtyard in Lahore, half naked, her head "wrung steeply back, her legs rigid in a convulsion as of birth, a woman lay dead.
इस लेख से ये समझ में आता है कि अंग्रेज़ विचारकों ने भारत के विभाजन को उसकी मृत्यु मान लिया था । सबका यही मत था कि भारत एक देश नहीं रहेगा अभी और हिस्सों में टूट जायेगा और एक Failed State हो जायेगा । पर ये नहीं हुआ । आज हम एक मज़बूत देश हैं । आज भी अखंड हैं ।
कुछ दिनों पहले भारत आये ब्रिटेन के प्रधानमंत्री डेविड केमरून ने कहा :
For most of the past half century we in the west have assumed that we set the pace and we set the global agenda. Well now we must wake up to a new reality. We have to share global leadership with India.
ये वही लोग हैं जो हमको दिशाहीनता और निराशा की स्थिति में छोड़कर और हमारा सारा धन लूटकर चले गए थे । अब ये हमारी शरण में आ गए हैं ।
तो ये बात तो तय है कि अब वक़्त हमारा है पर इस समय सबसे ज़रूरी ये है कि हम सब मिलकर इस देश की प्रगति में हिस्सा बनें । सिर्फ 15 अगस्त या 26 जनवरी को देशभक्ति दिखाने और परेड देख के खुश होने से काम नहीं चलेगा । अभी बहुत काम बाकी है । हमें अभी बहुत मेहनत करनी है ।

पूरे देश को स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं ।
जय हिंद !! जय भारत !!


नदिया के पार - 12

नदिया के पार - 11

भारतीय सेना : देश का गौरव

Wednesday, July 6, 2011

पिछले एक हफ्ते में कुछ ऐसी बातें हुयीं जिनके कारण मैं ये लेख लिख रहा हूँमैं उन बातों का उल्लेख नहीं करूँगा , पर ये लेख है भारतीय सेना के बारे मेंसबसे पहले तो मैं ये साफ़ कर दूं कि "मुझे गर्व है अपनी भारतीय सेना पर" । साथ ही ये बात मैं केवल बोलने और लिखने के लिए नहीं कह रहा हूँमैं ये महसूस करता हूँमैं दिल से इसे मानता हूँ
इस धरती पर अगर सबसे बड़ा बलिदान हो सकता है तो वो है जीवन कासामान्य आदमी सोच भी नहीं सकता किसी के लिए अपनी जान देने के बारे मेंपर हमारे देश के जवान जब भी देश को ज़रूरत पड़ती है तो अपनी जान तक दे डालते हैं और लोग तो उनका नाम भी नहीं जान पातेऔर सबसे बड़ी बात कि ये सब वो लोग इसी देश के लिए करते हैं जहाँ स्वार्थ की पराकाष्ठा हैयहाँ लोग पड़ोसी को चाय की पत्ती देने में बुरा मान जाते हैं तो किसी के लिए अपनी जान देना तो दूर की बात हैये वही देश है जहाँ जवानों के ताबूत बनाने में घोटाला हो जाता हैपर इन सब चीज़ों के बावजूद ये जवान अपनी जान खतरे में डालकर दिन रात मौत के साए में हमारी सुरक्षा को तत्पर रहते हैं और ज़रुरत पड़ने पर पाकिस्तान जैसे "बदजात" देश की मिट्टी पलीद भी कर देते हैंहम उनको चाहे कुछ भी दे दें पर जो वो हमारे लिए करते हैं उसका कोई मोल नहीं है


मेरा सलाम भारतीय सेना कोमुझे गर्व है कि हमारे देश की सुरक्षा ऐसी सेना के हाथ में है

नदिया के पार - 10

नदिया के पार - 9

नदिया के पार - 8

बाबा रे बाबा !!

Tuesday, June 28, 2011

अभी अपने ब्लॉग के लेखों पर ध्यान दिया तो पाया कि मैंने अभी तक बाबा रामदेव पर तो कुछ लिखा ही नहींऐसी महान शख्सियत के बारे में लिखने का कारण क्या हो सकता ? विचार किया तो लगा की पूरी दुनिया तो लिख ही रही है , अगर मैंने नहीं लिखा तो कौन सा बड़ा वाला पहाड़ टूट जायेगापर बात तो ये है कि मुझे तो लिखना ही है चाहे कुछौ हुई जाय तो भैया मामला ये है कि बाबा रामदेव को राजनीति का चस्का लग गवा हैऔर ये वो चस्का है जो प्रसिद्ध लोगों को बीच बीच में और बार बार लगता रहता हैदरअसल धन, ऐश्वर्य और संपदा होने के बावजूद भी यदि शक्ति हो तो ये तो वही बात है चाय में पानी हो, दूध हो, चीनी हो, इलाइची और मस्त मसाले हो पर चाय की पत्ती ही हो

तो हुआ ये है कि महान योगाचार्य और भ्रष्टाचार के धुर विरोधी बाबा रामदेव ने आजकल बड़ा रायता फैला रखा है और ये रायता उन्ही कि थाली से गिरा हैऔर तो और वो किसी को इसे साफ़ भी नहीं करने दे रहे हैंजब बाबा अपने MOST AWAITED अनशन पर बैठे तो उनका मंतव्य जनता का समर्थन प्राप्त करना थासाथ ही उन्होंने एक बात और कही थी कि वे जल्दी ही अपनी राजनैतिक पार्टी का पूरा कार्यक्रम भी घोषित करेंगेअब ये अनशन उन्होंने अपने राजनैतिक फायदे के लिए किया था या नहीं, इसका तो खुलासा नहीं हो पाया पर बाबा के अनुसार ये विदेश में जमा काले धन को भारत लाने के लिए किया गया थाइस उठा पटक से एक बात ये हुयी है कि बाबा रामदेव कि छवि थोड़ी प्रभावित हुयी हैलोग समझने लगे हैं कि इस सारे बवेले में बाबा का स्वार्थ भी निहित है


"कुछ वैचारिक प्रतिरोध"

Tuesday, May 31, 2011

क्या लिखूं यार ? कुछ वैचारिक प्रतिरोध सा महसूस हो रहा है आजकल । लेकिन ये प्रतिरोध केवल लिखने के वक़्त ही महसूस होता है । दिनभर चाहे जितनी बकैती करवा लो हमसे, पर लिखने के समय दिमाग एक दम शून्य सा प्रतीत होता है । वैसे ये कोई बड़ी बात नहीं है । मुझसे पहले भी कई "प्रख्यात" लेखकों को ऐसा ही लगता था, पर वे इससे जल्दी ही मुक्त हो जाते थे । शायद मैं भी उन्ही लोगों की तरह इस अवरोध से मुक्त होकर विचारों के अविच्छिन्न प्रवाह में गोते लगा सकूं । ईश्वर मुझे सामर्थ्य प्रदान करे ।

नदिया के पार-7

नदिया के पार-6

नदिया के पार-5

नदिया के पार-4

नदिया के पार-3

नदिया के पार-2

नदिया के पार-1

"इस देश में जनता जिसे चाहती है उसे गद्दी सौंपती है"

Saturday, May 14, 2011

कहते हैं ,जब बंगाल को छींक आती है तो देश को जुकाम हो जाता है और अब बंगाल को खांसी गयी है आज 13 मई को 13 साल पुरानी "तृणमूल कांग्रेस" ने बूढ़े और अप्रासंगिक (शायद सबसे उपयुक्त रहेगा ये कहना) हो चुके "वामपंथी" दल को 40 साल बाद उसकी राजगद्दी से उतार दिया है । ममता बनर्जी ने लेफ्ट के लाल किले को ढहा दिया है । ये बंगाल में एक नयी सुबह का संकेत है, पर ये सुबह इतनी आसानी से नहीं आई है । इसके लिए ममता बनर्जी ने बेहद कठिन राह चुनी थी । इतने सालों से वो वामपंथियों से अकेले लड़ रहीं थींकांग्रेस तो केवल दिखावा कर रही थी । पर तृणमूल ने तो पंचायत स्तर से लड़ाई शुरू की और लोकसभा तथा विधानसभा जैसे मोर्चों पर लेफ्ट को पटखनी दी है । 2006 के चुनावों में करारी हार के बावजूद उन्होंने संघर्ष जारी रखा । 1998 में तृणमूल कांग्रेस की नीव रखने के बाद से ममता ने बहुत संघर्ष किया है । वो अक्सर गरीबों, किसानों और ज़रुरतमंदों के लिए अनशन और हड़ताल पर बैठ जाती हैंसिंगूर मामले में तो अनशन पर जाने से उनकी हालत काफी ख़राब हो गयी थीअटल जी ने कहा था कि वो महिला जिद्दी है, मर जाएगी पर अनशन नहीं तोड़ेगीआज उन संघर्ष के दिनों का फल मिला हैवो बंगाल में राजनीति की नयी इबारत लिख रही हैं ।

किसी भी राजनैतिक दल के लिए लेफ्ट का तिलिस्म तोडना टेढ़ी खीर साबित होता रहा है पर मेरी समझ से लेफ्ट की हार के दो प्रमुख कारण रहेपहला ये कि पिछले 40 साल में बंगाल में विकास के नाम पे एक धेला भी यहाँ से वहां नहीं हुआ । आज़ादी के बाद से सब जस का तस पड़ा हुआ है । वहीँ दूसरा कारण ये है कि पहली बार जनता के सामने एक दमदार विकल्प भी मौजूद था । सो वही हुआ जो होना चाहिए था । वही विकल्प लेफ्ट के लिए रायता फैला गया । इन सब बातों के बीच एक बात कायम है कि ऐसी जीतों से भारत में लोकतंत्र की शक्ति और मजबूत हुयी है । साथ ही हम लोकतान्त्रिक रूप से एक मजबूत राष्ट्र बनकर उभरे हैं । इस देश में अभी भी जनता का राज हैजनता जिसे चाहती है उसे गद्दी सौंपती है चाहे वो ममता बनर्जी हों या जयललिता

अब क्या कहा जाये ?

Friday, May 6, 2011


काफी देर माथापच्ची करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूँ कि ओसामा बिन लादेन की जो फोटो मीडिया में जारी की गयी है वो नकली है । ओसामा की एक पुरानी फोटो (जो ऊपर दिख रही है) का प्रयोग करके और उसे कंप्यूटर से "एडिट" करके ये फोटो बनायीं गयी है । मीडिया में दी गयी फोटो को ध्यान से देखने पर ये साफ़ साफ़ नज़र आ रहा है कि ये नकली है । मैंने दोनों फोटो साथ में लगा दी हैं । सच्चाई सामने है । शायद इसीलिए अमेरिका अन्य फोटो जारी नहीं कर रहा है । इसका एक और मतलब है , कि अगर अमेरिका ये नकली फोटो जारी कर सकता है तो हो सकता है कि ये पूरा ऑपरेशन ही नकली हो । अगर लादेन जिंदा है और इस वाकये से खफा नहीं है तो हो सकता है कि जल्दी ही उसका कोई वीडियो आ जाये । पर ऐसा होना मुश्किल है क्यूंकि अमेरिका ऐसा कच्चा खेल नहीं खेलेगा । खासतौर पर तब जब राष्ट्रपति ओबामा की गद्दी दांव पर हो ।
पर एक़ बात साफ़ है कि जो चीज़ जैसी दिखती है वैसी होती नहीं है अगर होती भी है तो बाद में वैसी दिखती नहीं है ।

" ढाक के तीन पात "

Tuesday, May 3, 2011

कल खबर देखी कि लादेन भैया निकल लिए । पर जो मामला है वो थोड़ा पेचीदा लग रहा है । कार्रवाई बेहद गुपचुप तरीके से हुयी । यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी किसी को नहीं मालूम था इसके बारे में । पर एक बात बड़ी मज़ेदार है कि पाकिस्तान में कोई भी घुसके किसी को भी मार देता है और ये लोग घुइंयाँ छीलते रहते हैं । इसके बाद तुरन्त ही लादेन का शव भी दफना दिया गया । एक साईट ने कहा है कि जो फोटो मृत लादेन का दिखाया गया है वो कंप्यूटर से "एडिटेड" है । अभी तो ये शुरुआत है । पूरे मामले पर अभी ना जाने कितने पेंच ढीले होंगे और कितने सवाल पैदा होंगे । खैर ये तो अंतर्राष्ट्रीय खबर है । अपने देश में वही ढाक के तीन पात वाली कहानी चल रही है । वही पुराना भ्रष्टाचार का मुद्दा । वही प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे लीक होना । वही गांगुली, वही आईपीएल ।

आज एक मज़ेदार बात भी हुयी । किसी "बुद्धिमान" पत्रकार ने वायुसेना अध्यक्ष से पूछा कि क्या भारत भी ऐसी कार्रवाई करने में सक्षम है ? उन्होंने जो जवाब दिया उसका तो कोई मतलब मेरी समझ में नहीं आया । पर मेरे विचार से, किसी चीज़ में सक्षम होना और उसको करना दोनों अलग-अलग बात है । सक्षम होने से कहीं ज्यादा कठिन है काम को पूरा करना । भारत में सक्षमता है कि वो पाकिस्तान में बैठे अपने दुश्मनों को मार सके पर उसको करने के लिए जो राजनैतिक इच्छाशक्ति चाहिए वो यहाँ किसी माई के लाल में नहीं है । अटल जी ने बहुत ट्राई मारा था पर केवल एलओसी तक ही पहुँच पाए थे ।

चलो ये सब तो चलता ही रहेगा । मैं चला निद्रा-लोक में । आजकल यहाँ कम ही लिख पा रहा हूँ । मेरे हिसाब से कारण ये है कि मेरे अन्दर की "भड़ास और रचनात्मकता (creativity), भारत में बैठे अंग्रेजों के लिये अंग्रेजी अनुवाद लिखना ज़रूरी है, कहीं और ही निकल रही है । पर आज सोचा कि "अनुभाव" के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार ठीक नहीं ।
धन्यवाद । Justify Full

"ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है"

Monday, April 11, 2011

काफी समय से मैं ये गाना सुनता आ रहा हूँ । बहुत सही लफ़्ज़ों का प्रयोग किया है साहिर साहब ने । वैसे तो ये ग़ज़ल अमर हो चुकी है पर आज मन किया कि क्यों न इसे "अनुभाव" पर भी अमर कर दूं ।


ये महलो ये तख्तो ये ताजो की दुनिया,

ये इंसान के दुश्मन समाजो की दुनिया,

ये दौलत के भूखे रिवाजो की दुनिया,

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।


हर एक जिस्म घायल हर एक रूह प्यासी,

निगाहों में उलझन दिलों में उदासी,

यहाँ एक खिलौना है इंसान की हस्ती,

ये बस्ती है मुर्दा परस्तो की बस्ती,

यहाँ पर तो जीवन से है मौत सस्ती,

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।


जवानी भटकती है बदकार बनकर,

जवान जिस्म सजते हैं बाज़ार बनकर,

यहाँ प्यार होता है व्यापार बनकर,

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।


ये दुनिया जहाँ आदमी कुछ नहीं है,

वफ़ा कुछ नहीं दोस्ती कुछ नहीं है,

जहाँ प्यार की कद्र ही कुछ नहीं है,

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।


जला दो इसे फूँक डालो ये दुनिया,

मेरे सामने से हटा लो ये दुनिया,

तुम्हारी है तो तुम्ही संभालो ये दुनिया,

ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है ।


-साहिर लुधियानवी

"क्रांति व्यक्ति नहीं विचार से होती है"

Saturday, April 9, 2011

कहते हैं कि "जब किसी विचार का समय आ जाता है तो उसे कोई नहीं रोक सकता ।" ठीक ऐसा ही हुआ है अन्ना हजारे द्वारा किये अनशन के विषय में । इस प्रकरण को देश में जो अपूर्व समर्थन और उत्साह मिला है, उसका कोई जवाब नहीं है । खासकर ऐसे समय में जब ख़बरों में केवल घोटाले ही घोटाले हों । अच्छा लगता है जब आप सच को जीतता हुआ देखते हैं । यार, हम लोग बेकार में ही कभी कभी निराश हो जाते हैं । अन्ना हजारे साहब ने जो किया है वो लाजवाब है । उन्होंने फिर सिद्ध कर दिया है कि सत्याग्रह से अच्छा और सुलभ कोई हथियार नहीं है, असत्य और अहिंसा से लड़ने के लिए । अगर अन्ना हजारे ऐसा कर सकते हैं तो ये गाँधी का देश है, हम यहाँ करोड़ों गाँधी और हजारे रखते हैं । ज़रुरत थी तो बस उस "समय" कि जो अब आ गया है । अब लगने लगा है कि हम दुबारा विश्वगुरु बन सकते हैं । क्रांति व्यक्ति नहीं विचार से होती है ।

जब आप कोई काम सच्चाई से करते हैं और उसमें शुद्ध निष्ठा समर्पित करते हैं तो सफलता ज़रूर मिलती है । मैंने तो गाँधी जी को नहीं देखा, सिर्फ थोडा बहुत पढ़ा ही है, पर पिछले 2-3 दिन में उनके विचार और कर्मठता की झलक मिल गयी है । ईमानदारी में बहुत ताकत होती है और साथ ही बेईमानी बहुत कमज़ोर होती है । क्योंकि दोनों में सन्निहित विचार बिलकुल अलग हैं ।

पिछले एक हफ्ते से इस प्रकरण पर समाचार पत्रों और टीवी ने जो व्यापक रिपोर्ट दी है वो प्रशंसनीय है । कभी कभी खोटा सिक्का भी अपना दाम दे जाता है । पर यहाँ मैं एक बात और कहना चाहूँगा । भले ही मैं बात को बेहद मजाकिए तौर पर कह रहा हूँ पर इसकी गंभीरता में 1% की भी कमी नहीं है । बात ये है कि एक हफ्ते से अन्ना हजारे के अनशन के बीच हर शहर में कुछ चिरकुट, असभ्य, सड़क-छाप, गुटका-छाप, बेहद उल्लू किस्म के, जाहिल, फटीचर, दिशाहीन, बडबोले और मानसिक व वैचारिक रूप से दिवालिये, दोयम दर्जे के टुटपुंजिया नेता सड़क पर निकल आये हैं । आम आदमी से मैं यही आशा करूँगा कि इनके बहकावे में ना आयें । ये बस पुराने वालों के "सीक्वल" हैं ।हमें हजारे जैसे लोग चाहिए , इनके जैसे तो पहले से भरे पड़े हैं ।

जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं

Monday, April 4, 2011

आज हमारे एक पुराने (काफी पुराने) मित्र मानवेन्द्र सिंह जी का जन्मदिवस है । सुबह उनको बधाइयाँ दीं तो कहने लगे "चलो, इसी बहाने तुमने फ़ोन तो किया" । मैं क्या बोलता ? लड़के ने सही बात बोल दी । बात बात में उन्होंने कहा कि अनुभाव पे लिख देना । हमने भी वादा कर दिया । सो आ गए हम यहाँ वादा निभाने । तो " मन्नू भैया (प्रेम से हम लोग इनको मन्नू ही कहते हैं, ये नाम इनको देने का श्रेय, अगर ये देना चाहें, तो मुझे ही जाता है) आपको जन्मदिवस की हार्दिक शुभकामनाएं । आप प्रगति के पथ पर इसी तरह अग्रसर रहें । आप अपने सभी लक्ष्यों को प्राप्त करें । ईश्वर आपका साथ दे । " धन्यवाद ।

कौन क्या सोच रहा होगा...

गिलानी: हमारी टीम को हारना तो है ही, चलो दिल ही जीतने की कोशिश की जाये ताकि धीरे से और आतंकवादी भारत भेजे जा सकें ।

मनमोहन: ये गिलानी आ कैसे गया ? मैंने ऐंवे ही बुलावा भेजा था । लगता है इसके पास भी कोई काम नहीं है ।

सहवाग: जिस तरह से मेरे बाल गिर रहे हैं, लगता है मुझे भी पगड़ी पहननी पड़ेगी ।

सचिन: ये लोग अपना नाटक ख़तम करें तो मैच खेला जाये । हुंह !

The story of world cup '11

Sunday, April 3, 2011


1.I wanted That "World cup" very badly and "My team" gave it to me.
2.This World cup is for our Sachin.
3.I will not criticize Yuvraj anymore.
4.Gautam Gambhir was the real unsung hero.
5.We've taken revenge of the moment when Kambli was weeping in semifinal of 1996 World Cup in calcutta.
6.The moment when whole team was "in tears", somehow I felt their emotion.
7.From now on My belief in GOD has strengthened.
8.Dhoni is the greatest captain we've ever had. God bless you Dhoni.
9.We are the most powerful team in the world. Bye-Bye Australia.
10.There are very rare moments in your life when you actually feel proud to be an Indian. Today I felt that. I love my India.

"चिरकुट विचारक और सस्ता चित्रकार"

Wednesday, March 30, 2011

अभी अभी ख्याल आया कि क्यूँ न मैं अपनी "चिरकुट किन्तु रोचक" चित्रकारियां यहाँ पर डालूँ । इससे एक बात तो सिद्ध हो जाएगी कि बुद्धिजीवी होने का मैं कितना भी प्रयत्न कर लूं, मेरे अन्दर का "चिरकुट विचारक और सस्ता चित्रकार" बाहर आ ही जाता है । दुनिया कितनी भी ज़ालिम और गन्दी हो जाये, मुझे मेरी "काबिलियत" दिखाने से किसी के पिताजी भी नहीं रोकसकते जो आएगा उसको देख लिया जायेगा हीही

कांग्रेस सरकार की कुंडली देखनी पड़ेगी......

Saturday, March 19, 2011

विकिलीक्स के नए धमाके से संसद में भूचाल आने वाला है 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर हुए वोट में सांसदों को पैसे लेकर वोट देने की बात सामने आई है गाहे बगाहे इस बात को सभी लोग दबी जबान से बोलते भी थे परअब काफी हद तक बात सही साबित होती दिखती है इससे एक काम और हो गया आज कल इतने सारे धमाकों के बीच एक़ और धमाका हो गया कांग्रेस सरकार की कुंडली देखनी पड़ेगी अब तो पिछले 1 साल से ऐसे ऐसे "काण्ड" हुए हैं किरामायण के सारे "काण्ड" इसके सामने कुछ नहीं और अब विकिलीक्स ने भी तड़का लगा दिया इससे बड़ा पंगा होने की उम्मीद है खासतौर पर बीजेपी कोई मौका हाथ से जाने नहीं देगी क्योंकि उनके पास और कोई काम नहीं बचा अब वो इसमामले पर ज़रूर संसद में बवाल काटेगी और संसद नहीं चलने देगी एक और मज़ेदार बात है कि आजकल डॉ मनमोहनसिंह भी "फ्रंटफुट" पे आकर खेलने लगे हैं पहले तो लगता भी नहीं था कि वो बोलते भी हैं, पर आजकल वो भी "खुला खेल फरुर्खाबादी" से सहमत हैं

कांग्रेस का टाइम सही नहीं चल रहा है राज्यों में भी कांग्रेस कि सरकार बड़े बड़े पंगे कर रही हैं और केंद्र सरकार तो "काण्ड" छुपाने मे लगी है
पर अचानक इतने सारे मामले कैसे सामने गए दरअसल ये सारे मामले सामने लाने में कांग्रेस सरकार या कहें कि डॉ मनमोहन सिंह का ही हाथ है २००५ में सूचना का अधिकार लाने में डॉ साहब ने पूरा दम लगाया था सच कहें तो हमारे प्रधानमंत्री एक बेहद ईमानदार और शानदार छवि वाले व्यक्ति हैं वे विद्वान और गंभीर हैं पर उनकी भी किस्मत ऐसी है कि उनके आस पास के मंत्रीगण लूट खसोट और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं इन सभी मामलों से प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह और उनकी पार्टी पर एक अमिट दाग लग ही गया है जो उनकी छवि के लिए बेहद घातक है

" भ्रष्टाचार को स्वयं मनुष्य ही हरा सकता है , कोई सामाजिक शक्ति नहीं "

Wednesday, March 2, 2011

आजकल अख़बारों और समाचार चैनल पर भ्रष्टाचार के विषय में काफी लिखा बोला जा रहा है । दरअसल मुद्दा वही काले धन को वापस लाने का है । धीरे-धीरे इस मामले ने काफी तूल पकड़ लिया है । साथ 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में माननीय पूर्व मंत्री जी जेल के दर्शन भी कर चुके हैं और कल ही खबर आई कि कलमाड़ी जी के बैंक लॉकर से भरी मात्रा में सोना ज़ब्त किया । मतलब उनकी भी लंका लगने वाली है । अब ज़रा सोचिये जब 4-5 महीने से कलमाड़ी जी को दोषी बताया जा रहा था और जांच शुरू होने पर लॉकर से अभी भी काफी सोना मिल जाये तो ये बात समझ में आती है कि कितना सोना और कितना धन यहाँ-वहां हो चुका होगा ।

कभी कभी मैं सोचता हूँ कि भ्रष्टाचार से बचने का क्या उपाय हो सकता है ? हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं लेकिन केवल लोकतान्त्रिक रूप से शक्तिशाली होना ही काफी नहीं है । हमें अपने समाज में अच्छा चरित्र भी देखना है । संसद में ईमानदार और कर्मठ लोग जायें, इसकी पुष्टि हम लोगों को ही करनी है । लेकिन केवल संसद में ही ईमानदारी ज़रूरी नहीं है । सरकारी विभागों और निजी कंपनियों के कर्मचारियों और अधिकारियों में भी ईमानदारी ज़रूरी है । 2-जी स्पेक्ट्रम, S-बैंड स्पेक्ट्रम, राष्ट्रकुल खेल घोटालों में निजी कंपनियों ने बंटा धार किया है, हालांकि सरकारी सहयोग की शह पर ही ये भ्रष्टाचार की ईमारत खड़ी हो सकी ।

इतिहास बताता है कि हर काल में भ्रष्टाचार और चारित्रिक पतन जैसी समस्याएं रही हैं । ये मनुष्य की मस्तिष्क-जनित परिस्थितियाँ हैं जिन्हें स्वयं मनुष्य ही जीत सकता है ।

" हर आदमी भ्रष्टाचार करना चाहता है पर सदाचारी दिखना चाहता है "

Sunday, February 20, 2011

आजकल मेरे मन में कुछ अजब उमड़-घुमड़ चल रही है कि शिष्ट आचरण को हम कैसे परिभाषित करेंगे ? हमारे समाज की सबसे अनोखी बात ये है कि हम जो करना चाहते हैं वो दिखाना नहीं चाहते और जो दिखाना चाहते हैं वो करते नहीं हैं । तो फिर ये ढोंग-आडम्बर किस लिए ? हर आदमी भ्रष्टाचार करना चाहता है पर सदाचारी दिखना चाहता है किन्तु करता भ्रष्टाचार ही है । तो फिर हमने अपने लिए नियमों को इतना कठिन क्यों बना रखा है । जब सभी लोग वही चीज़ करना चाहते हैं जो मना है तो वो चीज़ मना क्यों है ?

भरोसे की बात

Tuesday, January 25, 2011

खबर आ रही है कि आरुषि तलवार के पिता डॉ. राजेश तलवार पर उत्सव शर्मा नाम के एक युवक ने कोर्ट परिसर में एक धारदार हथियार से हमला कर दिया सबसे पहले तो समाचार चैनल वालों को बधाई कि उनको दो-तीन दिन का मसाला मिल गया पर अचम्भे की बात तो ये है कि ये वही उत्सव शर्मा है जिसने हरियाणा के डीजीपी राठौर पर भी हमला किया था इसका ये मतलब है कि उत्सव शर्मा के हिसाब से डॉ. तलवार और डीजीपी राठौर दोनों ही दोषी हैं और हमारा न्यायिक प्रतंत्र इन "महानुभावों" को सजा देने में नाकामयाब रहा है इसलिए वो स्वयं सजा देने का कार्य कर रहा है दरअसल ये तो होना ही है मनुष्य परिणाम का भूखा होता है वो हर कार्य और विचार का परिणाम जानना चाहता है अगर परिणाम किसी न्यायिक मामले से जुड़ा हो तो धैर्य धोखा देने लगता है इसी का सीधा सा उदहारण हम आज उत्सव शर्मा के रूप में देख रहे हैं ये हमारी न्यायिक प्रणाली और सामाजिक ढांचे से आक्रोशित और क्षोभ से भरे मनुष्य का उदाहरण है आजकल जो माहौल है उससे तो संविधान से आम आदमी का भरोसा ही उठने लगा है अगर कोई समाधान नहीं आया तो ऐसा रोज़ होने लगेगा आदमी का कानून से विश्वास उठ जायेगा और सामाजिक पारितंत्र तहस नहस हो जायेगा अब ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपने लिए, अपने आस पास ऐसा माहौल न बनाएं जो हमें खुद नहीं पसंद है

अब वो बात कहाँ ?

Friday, January 21, 2011

आजकल लोकसभा में कुछ मज़ा नहीं रहा है राज्यसभा तो वैसे भी "फीकी चाय" हो गयी थी जब से बड़े बुद्धिजीवी लोग चुन चुन कर आने लगे थे पर कुछ समय पहले तक लोकसभा खौलते तेल से भरी कढ़ाही की तरह हुआ करती थी लोग अपने भाषणों से आग लगा देते थे सदन में पर पिछली लोकसभा और इस लोकसभा से विपक्ष भी दमदार उपस्थिति नहीं दर्ज करा पा रहा है जब विपक्ष जानदार होता है तो सदन भी धधकता है पर यहाँ तो "चुन्नी लाल मुन्नी" वाला हाल है विपक्ष का सब सो रहे हैं किसी को कोई धमाका नहीं करना पूछे जाने वाले प्रश्नों में भी कोई दम नहीं होता है कोई भी विपक्ष का नेता प्रश्न पूछने के पहले "रिसर्च" नहीं करता मज़ा तो तब आये जब कोई घुमा घुमा के और भिगो भिगो के दे और सामने वाला बगली झाँकने लगे पर यहाँ तो लगता है जैसे सब दो दो बाटली टिका के बैठे हैं किसी में कोई जान ही नहीं है

दरअसल मज़बूत विपक्ष भी लोकतंत्र का एक अपरिहार्य अंग है बहुत ज़रूरी है कि मंत्रिमंडल के सदस्य खुद को किसी ना किसी के प्रति जिम्मेदार समझें जनता के प्रति उनकी ना तो कोई जिम्मेदारी है और ना ही जनता से कोई डर तो कम से कम सदन में ही चार पांच लोग तो ऐसे हों जिनसे मंत्रिमंडल को कुछ भय महसूस हो हमारे लोकतंत्र को व्यापक रूप से सफल और सुदृढ़ बनाने के लिए ये बहुत ज़रूरी है कि संसद के दोनों सदन अपनी संपूर्ण शक्ति और सामर्थ्य के साथ काम करें और इन दोनों सदनों में पक्ष और विपक्ष स्पष्ट और सभ्य रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें


 
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