हम कोई वैश्विक खेल क्यों नहीं खेल सकते??

Tuesday, July 6, 2010


dddddddddपूरी दुनिया इस समय फुटबाल वर्ल्ड कप के नशे में चूर है । जिसे देखो वो लियोनेल मैसी और जर्मनी के क्लोज़ की बात कर रहा है । यहाँ तक कि केवल क्रिकेट देखने वाले भी चिरकुटई छोड़कर फुटबाल देख रहे हैं । पर मुझे एक बात का अफ़सोस है कि हमारी टीम कब ऐसे किसी महाकुम्भ में शरीक होगी ?
ध्यान दिया जाये तो हॉकी को छोड़कर हम लोग कोई भी ऐसा खेल नहीं खेलते है जो पूरी दुनिया में खेला जाता हो । यदि खेलते भी हैं तो बेहद फिसड्डी और घटिया प्रदर्शन करते हैं । उसका सीधा सा कारण है कि हमारे यहाँ किसी भी खेल संघ की बागडोर उसके किसी पुराने जानकार या खिलाडी के हाथ में ना होकर किसी भिखारी नेता या नौकरशाह के हाथ में है । ये लोग अपने निजी स्वार्थ और सरकारी सहायता के लिए इन संघों को अपनी बपौती मानकर बैठ गए हैं । केपीएस गिल ने हॉकी इंडिया की बैंड बजा रखी है । ये तो हॉकी को छोड़ ही नही रहे हैं । ऐसे ही ना जाने कितने ही खेल संघ हैं जो इन जैसे "महानुभावों" के अनुभव के वट-वृक्षों के तले दब के रह गए हैं । उनका कोई अस्तित्व नहीं बचा है । अगर कुछ बचा है तो वो है नेता जी का सदा खाली रहने वाला कटोरा । जिसमें आये हुए सरकारी धन को वे पता नहीं कहाँ पचा जाते हैं ?

3333333333बात काफी गंभीर है । हमारे देश में कोई खेल तरक्की नहीं कर रहा है (क्रिकेट को छोड़कर, क्योंकि ये खेल नहीं बिज़नेस है) भ्रष्टाचार ने जब सबकी कमर तोड़ दी है तो खेल कैसे अछूते रह सकते हैं । पर मुझे तो इस बात पर आश्चर्य होता है (कभी-कभी) कि इन लोगों के बेशर्मी की हद क्या है ???

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