बिलकुल सही कह रहा हूँ । "जहाँ पैसा, वहां ईमान कैसा? " दरअसल "ईमानदार" होने में बड़ी दिक्कतें हैं । काफी परेशानियां होती हैं । आजकल हमलोग देख ही रहे हैं कि भारतीय क्रिकेट में IPL नामक एक क्रिकेट लीग का बहुत बोलबाला है । वैसे इस लीग का आधार ही पैसा है । प्राचीन समय में अफ्रीका और आस-पास के मुल्कों में अच्छे मवेशियों के लिए बोली लगती थी , ठीक वैसा ही IPL में भी हुआ । पर ऐसा हम लोग सोचते हैं । ये जो IPL वाले कहते हैं कि फलां क्रिकेटर इतने करोड़ में बिका , हमने फलां टीम इतने करोड़ में खरीदी । ये सब कोरा झूठ था । किसी भी खिलाडी को उतना धन नहीं मिला, जितने में वो बिका था । वैसे ही कोई भी टीम उतने में नहीं खरीदी गयी, जितने में वो सबको बताई गयी । चूँकि IPL पर कोई टैक्स नहीं था अतः टीम खरीदने में जितना पैसा लगा उस पर भी टैक्स नहीं था । बस इसी चीज़ में सबको मज़ा आ गया । जिस भी आदमी का रसूख था , उसने अपना काला धन इसमें लगा दिया और नाम आया उस कंपनी का, जिस कंपनी के नाम पर टीम खरीदी गयी । दरअसल उस कंपनी के नाम के आड़ में इस देश हरामखोर उद्योगपतियों, भ्रष्टाचारी नेताओं और कमीने लोगों का पैसा लगा था ।
अब यही बात थरूर वाले केस में भी हुयी । ये थरूर महाशय ही थे जिन्होंने अपने राजनैतिक करियर कि शुरुआत में नेहरु-गाँधी परिवार दोषी ठहराया था देश की ख़राब स्थिति के लिए । पर जब देखा कि जनता तो कांग्रेस को ही वोट दे रही है तो आ गए उन्ही की नैय्या में । फिर बन गए विदेश राज्य मंत्री और चिड़िया बनकर चहचहाने (Twittering) लगे । बाद में अपनी "ताकत" के दम पर अपनी मित्र के नाम पर IPL में टीम में हिस्सेदारी दबा ली वो भी बिना पैसा लगाये ।
तो समझने वाली बात ये है कि इस आई०पी०एल० के समंदर में बड़ी मछलियाँ भी हैं , काफी गहरायी में बैठकर अपना खेल नियंत्रित कर रही हैं और अगर "सरकार" ने चाहा ..............माफ़ कीजियेगा.............."भगवान्" ने चाहा तो वो कभी सामने नहीं आएँगी । तो भैया सौ कि सीधी एक बात है कि जहाँ पैसा होता है वहां ईमान नाम की कोई चीज़ नहीं होती है । ये मानवजाति की चारित्रिक विशेषता है, अतः हमें ज्यादा चिंतित नहीं होना चाहिए । ये तो होना ही था । इस देश में बहुत कम काम बिना किसी भ्रष्टाचार के हुए होते हैं , इस देश का निकाय अब भ्रष्ट हो चुका है । आम आदमी भ्रष्टाचार और सदाचार में फर्क नहीं करता और न ही करना चाहता है ।
" आजकल जिसको जहाँ मौका मिलता है , वो वहीँ भ्रष्टाचार के तवे अपने स्वार्थ की रोटी बनाता है , खुद खाता है, दूसरों को खिलाता है और बनाने के लिए प्रेरित भी करता है । "
आजकल जिसको जहाँ मौका मिलता है , वो वहीँ भ्रष्टाचार के तवे अपने स्वार्थ की रोटी बनाता है , खुद खाता है, दूसरों को खिलाता है और बनाने के लिए प्रेरित भी करता है । "
ReplyDeleteBilkul sahi kha aapne ham khud bhi to isse kha bache hue hai kya ham khud hi bhrastachaar ko nahi badha rahe hai ???