आप लोगों का तो पता नही पर भइया मुझे तो यही लग रहा है की मैं मुग़ल काल में आ गया हूँ । लखनऊ में जिस स्तर पर निर्माण कार्य चल रहे हैं उससे तो यही लग रहा है । बहिन मायावती जी ने जिस लगन का परिचय दिया है वो काबिले-तारीफ़ है । अरे भाई ! अपने सारे काम-काज छोड़कर जब कोई मुख्यमंत्री इतनी तन्मयता से पार्क और मूर्ति लगवाने पर तुल जाए ( चाहे लोगों को पानी, बिजली, अन्न मिल रहा हो या नहीं ) तो तारीफ़ तो करनी ही होगी ।
अच्छा एक बात और भी है कि इतना सब नाटक होने की बाद भी बहिन जी के कान पर वो तक नहीं रेंग रहा । वैसे इन सब कामों में इतना पैसा खर्च हो रहा है की अगर प्राचीन मिस्र के फ़राओ इसे देख ले तो शर्म से पानी-पानी होकर बह जाएँ और सोचें कि "यार , हम लोगों को थोड़ा और खर्चा करना चाहिए था । " वैसे इस झकड़-पकड़ के बीच बहिन जी ने अपनी एक आलीशान कोठी ( मुख्यमंत्री आवास ) ठोंक दी है । ये इतनी आलीशान है कि पकिस्तान के वजीरे आज़म की भी चीपों चीपों हो जाए और वैसे भी उनको अगर हाफिज़ सईद को पकड़ने- छोड़ने से फुर्सत मिले तब ।
खैर बात का सारांश यह है कि "शायद दूसरे ताजमहल कि आशा करना तो बेमानी होगा पर दूसरे शाहजहाँ की आशा कि जा सकती है .............."
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