सिगरेट पीने वाले इसे एक प्रेम कथा मानते हैं क्योंकि इसमें भी कुछ खोकर ही कुछ मिलता है । पर मेरा ये कहना कि " इस प्रेम-कथा में आपको पैसा खोना है और बड़े बड़े मर्ज़ पाने हैं " । पर भाई ! पीने वाले तो सिर्फ पीते हैं उनको किसी का कोई फर्क नहीं पड़ता । मेरा ये मानना है कि सिगरेट स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है और मैं "शायद" इसी कारण से इस "सद्गुण" से काफी दूर हूँ । मज़े की बात ये है कि ये एक ऐसा सद्गुण है जिसके ना होने से मैं ज्यादा संतुष्ट हूँ । पर मेरा प्रश्न ये है कि "आखिर लोग सिगरेट पीते क्यों हैं ?" कुछ सज्जन कहते हैं "जब पूरा देश तो सिगरेट पीता है तो क्या हम लोग पागल हैं? " तब मैं ये कहता हूँ कि भैया कौन पागल है और कौन नहीं ये तो मैं नहीं जानता पर ये वही देश जहाँ लालू जैसे लोग सांसद हैं । बाकी हिसाब आप स्वयं लगा लें । हमारे कुछ मित्र हैं जो इस सद्गुण के अत्यंत जिम्मेदार और अनुभवी अधिकारी हैं । ( मैं नाम नहीं बताऊंगा क्योंकि शेक्सपीयर ने भी कहा है "नाम मां का धरा अहै " ) । ये लोग पूरी जिम्मेदारी से ये काम निभाते हैं और दिन में दो-चार सिगरेट तो ऐसे भस्म कर ही डालते हैं । पर वे ये नहीं चाहते कि इस सद्गुण की "भनक" उनके परिवारजन को लगे । अन्यथा उनका भांडा और साथ में ना जाने क्या क्या "फूट" जायेगा । मेरे पूछने पर उन सुधीजनों में से एक मित्र ने इस प्रकरण पर पूरी ताकत से और जितना उनका ज्ञान था उस हिसाब से "प्रकाश" उडेला और कहा "देखिये, मरना तो सबको है तो क्यों ना पी के मरें " । अब मैं निरुत्तर था क्योंकि हमारे भाई साब ने भारतीय संस्कृति का वो चैप्टर खोल दिया था जिसके बाद केवल मोक्ष आता है और उस दिशा में भटकने का मेरा आज बिलकुल मन नहीं था ।
मेरे एक लखनवी और सहपाठी मित्र ने मुझे बताया था कि " 90 % लोग जो सिगरेट पीते हैं वो केवल दिखावे और शान के लिए पीते हैं पर ये "शान" कब उनकी "जान" पर बन आती है इसका उनको कोई अंदाज़ा नहीं होता " पर मज़ेदार बात तो ये है कि इतना सब पता होने के बावजूद वो खुद भी पीते हैं और सिर्फ पीते ही नहीं हैं , सिगरेट कंपनी वालों को जल्दी ही काफी अमीर करने पर तुले हुए हैं । जो भी हो, मैं शायद कभी समझ नहीं पाउँगा कि सिगरेट में ऐसा क्या है जो लोग इतना पीते हैं । पर ये ज़रूर कह सकता हूँ कि ये एक प्रेम कथा की तरह है, जिस पर किसी बेधड़क शायर ने कहा है -
मेरे एक लखनवी और सहपाठी मित्र ने मुझे बताया था कि " 90 % लोग जो सिगरेट पीते हैं वो केवल दिखावे और शान के लिए पीते हैं पर ये "शान" कब उनकी "जान" पर बन आती है इसका उनको कोई अंदाज़ा नहीं होता " पर मज़ेदार बात तो ये है कि इतना सब पता होने के बावजूद वो खुद भी पीते हैं और सिर्फ पीते ही नहीं हैं , सिगरेट कंपनी वालों को जल्दी ही काफी अमीर करने पर तुले हुए हैं । जो भी हो, मैं शायद कभी समझ नहीं पाउँगा कि सिगरेट में ऐसा क्या है जो लोग इतना पीते हैं । पर ये ज़रूर कह सकता हूँ कि ये एक प्रेम कथा की तरह है, जिस पर किसी बेधड़क शायर ने कहा है -
" एक आग का दरिया है और डूब के जाना है,
बाद में उसी आग के दरिये से सिगरेट भी जलाना है "
बाद में उसी आग के दरिये से सिगरेट भी जलाना है "
good effort man...kai bAaTein kaafi achhi kahi...bravo
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