कुछ दिन पहले मेरी एक "भाई साब" से गरमा-गर्म, तड़कती- फड़कती बहस हो गयी कि क्या गाँधी आज के समय में उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वो अपने समय में थे ? मेरा तो यही कहना है कि " हाँ , गाँधी जी, हर जगह, हर बात में, हर समय प्रासंगिक थे, हैं और रहेंगे । क्योंकि उनको अप्रासंगिक मानने वाले लोग 1920 में भी कम नहीं थे और 1947 में भी । पर उन्होंने सबको गलत साबित किया और भारत को दुनिया की एकमात्र अहिंसक स्वतंत्रता क्रांति का जनक बनाया । दरअसल गाँधी एक व्यक्ति नहीं थे , वे एक सिद्धांत थे और यही सिद्धांत ही है जो हर समय में प्रासंगिक है । गाँधी से मेरा मतलब उसी सिद्धांत से है । आप एक व्यक्ति से लड़ सकते हैं , उसे मार सकते हैं पर एक सिद्धांत को नहीं मार नहीं सकते , खासतौर पर तब तक तो बिलकुल नहीं जब आप उसका उल्टा ही कर रहे हो । गाँधी ने जो सिद्धांत दिया वो आम आदमी का पक्षधर था और इसीलिए वो सफल भी हुआ । जो लोग ये मानते हैं कि गाँधी अब के समय में लोगों को उतना प्रभावित नहीं कर सकेंगे , वो लोग अन्दर से कमज़ोर हैं और उनको खुद पर यकीन नहीं है । दूसरी सबसे बड़ी बात ये है कि
" अहिंसा किसी एक व्यक्ति-मात्र को प्रभावित नहीं करती, ये वो गंगा है जो पूरे समाज को पाप-मुक्त बनाती है । "
बहुत ही सुन्दर !
ReplyDeleteसूरज पर थूकने की कोशिश करके कुछ लोग अपने को ख्यातिवान बनाने की कोशिश करते हैं . ऐसा करके वो गाँधी नामक लाठी का ही सहारा लेते हैं .