एक मंज़र

Friday, January 22, 2010


उफुक के दरीचे से किरणों ने झांका
फ़ज़ा तन गयी रास्ते मुस्कुराये
सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाखसारों ने घूंघट उठाये
परिंदों की आवाज़ से खेत चौंके
पुर-असरार लय में रहट गुनगुनाये
हंसीं शबनम-आलूद पगडंडियों से
लिपटने लगे सब्ज़ पेड़ों के साए
वो दूर एक टीले पे आँचल-सा झलका
तसव्वुर में लाखों दिए झिलमिलाये
( साहिर लुधयानवी )

No comments:

Post a Comment

Comment To Karo.....

 
FREE BLOGGER TEMPLATE BY DESIGNER BLOGS