उफुक के दरीचे से किरणों ने झांका
फ़ज़ा तन गयी रास्ते मुस्कुराये
सिमटने लगी नर्म कुहरे की चादर
जवां शाखसारों ने घूंघट उठाये
परिंदों की आवाज़ से खेत चौंके
पुर-असरार लय में रहट गुनगुनाये
हंसीं शबनम-आलूद पगडंडियों से
लिपटने लगे सब्ज़ पेड़ों के साए
वो दूर एक टीले पे आँचल-सा झलका
तसव्वुर में लाखों दिए झिलमिलाये
( साहिर लुधयानवी )
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