" बिटवा, अगर तनिक आपन दिमाग घिसत्यौ तो ये नहीं बकत्यौ "

Saturday, October 2, 2010

न चाहते हुए भी मुझे आखिरकार इस मुद्दे पर लिखना ही पड़ा । पर मैं पूरी तरह से इसके लिए दोषी नहीं हूँ । भारतीय राजनीति में कुछ ऐसे " बे-हया " लोग हैं जिनको मैं अपने साथ इस पोस्ट को लिखने के लिए दोषी मानता हूँ । इन लोगों ने वही किया जो नहीं करना चाहिए था , " मुंह खोला और भक्क से उगल दिया " । इन सब में एक बड़के समाजवादी ( जिनको समाजवाद का " स " भी नहीं मालूम ) हैं । वो फरमाते हैं " न्याय आस्था नहीं सबूतों के आधार पर होता है " । अब कोई इनकी कनपट्टी पर दो चपेंटे चिपकाये और इनको समझाए कि " बिटवा, अगर तनिक आपन दिमाग घिसत्यौ तो ये नहीं बकत्यौ " । इनको बड़ा कानून छांटना है । न्यायमूर्तियों ने ये बात साफ़ साफ़ लिखी है कि सभी निर्णय हर तरह के साक्ष्य और तथ्यों को ध्यान में रखके दिए गए हैं । अगर इन लोगों ने " अर्कियोलोजिकल सर्वे ऑव इंडिया " (ASI ) नामक एक चिड़िया का नाम सुना होता तो ये सब न उगलते । (ASI ) ने सारी जांच के बाद अपनी संस्तुति उच्च न्यायालय को प्रस्तुत कर दी थी । ऐसे ही कई अन्य सबूतों के आधार पर ही ये निर्णय दिए गए हैं । दूसरी सबसे बड़ी बात, ये काम जिसका है उसने कर दिया है । अब इन लोगों के पास ज्यादा कुछ है नहीं करने को । क्योंकि माननीय उच्च न्यायालय का निर्णय बहुत अच्छा है और भविष्य की ओर उन्मुख भारत के लिए है । कहीं किसी प्रकार को कोई हिंसक घटना का न होना इसका सबसे बड़ा प्रमाण है । आज तक दुनिया में किसी भी धार्मिक विवाद का निर्णय न्यायपालिका नहीं कर सकी है । भारत की जनता ने न्यायपालिका में जो विश्वास दिखाया है वो काबिले तारीफ है और ये हमारे सामाजिक निकाय और लोकतान्त्रिक ढांचे की जीत है ।

दरअसल ये जो राजनेता लोग हैं इनको बस एक ही काम आता है " अपनी औकात पर उतर आना " । कोई मरे, कोई जिए, इनको कुछ नहीं मालूम ( जैसे गब्बर कहता है " हमको कुच्छ नई मालूम ) । तो सबसे बड़ी बात " अपनी अकल लगाओ यार !!! "

अंत में, आज गाँधी जयंती है । अहिंसा और त्याग की उस प्रतिमूर्ति को मेरा शत शत नमन ।

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