अब वो बात कहाँ ?

Friday, January 21, 2011

आजकल लोकसभा में कुछ मज़ा नहीं रहा है राज्यसभा तो वैसे भी "फीकी चाय" हो गयी थी जब से बड़े बुद्धिजीवी लोग चुन चुन कर आने लगे थे पर कुछ समय पहले तक लोकसभा खौलते तेल से भरी कढ़ाही की तरह हुआ करती थी लोग अपने भाषणों से आग लगा देते थे सदन में पर पिछली लोकसभा और इस लोकसभा से विपक्ष भी दमदार उपस्थिति नहीं दर्ज करा पा रहा है जब विपक्ष जानदार होता है तो सदन भी धधकता है पर यहाँ तो "चुन्नी लाल मुन्नी" वाला हाल है विपक्ष का सब सो रहे हैं किसी को कोई धमाका नहीं करना पूछे जाने वाले प्रश्नों में भी कोई दम नहीं होता है कोई भी विपक्ष का नेता प्रश्न पूछने के पहले "रिसर्च" नहीं करता मज़ा तो तब आये जब कोई घुमा घुमा के और भिगो भिगो के दे और सामने वाला बगली झाँकने लगे पर यहाँ तो लगता है जैसे सब दो दो बाटली टिका के बैठे हैं किसी में कोई जान ही नहीं है

दरअसल मज़बूत विपक्ष भी लोकतंत्र का एक अपरिहार्य अंग है बहुत ज़रूरी है कि मंत्रिमंडल के सदस्य खुद को किसी ना किसी के प्रति जिम्मेदार समझें जनता के प्रति उनकी ना तो कोई जिम्मेदारी है और ना ही जनता से कोई डर तो कम से कम सदन में ही चार पांच लोग तो ऐसे हों जिनसे मंत्रिमंडल को कुछ भय महसूस हो हमारे लोकतंत्र को व्यापक रूप से सफल और सुदृढ़ बनाने के लिए ये बहुत ज़रूरी है कि संसद के दोनों सदन अपनी संपूर्ण शक्ति और सामर्थ्य के साथ काम करें और इन दोनों सदनों में पक्ष और विपक्ष स्पष्ट और सभ्य रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें


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