कल खबर देखी कि लादेन भैया निकल लिए । पर जो मामला है वो थोड़ा पेचीदा लग रहा है । कार्रवाई बेहद गुपचुप तरीके से हुयी । यहाँ तक कि पाकिस्तान में भी किसी को नहीं मालूम था इसके बारे में । पर एक बात बड़ी मज़ेदार है कि पाकिस्तान में कोई भी घुसके किसी को भी मार देता है और ये लोग घुइंयाँ छीलते रहते हैं । इसके बाद तुरन्त ही लादेन का शव भी दफना दिया गया । एक साईट ने कहा है कि जो फोटो मृत लादेन का दिखाया गया है वो कंप्यूटर से "एडिटेड" है । अभी तो ये शुरुआत है । पूरे मामले पर अभी ना जाने कितने पेंच ढीले होंगे और कितने सवाल पैदा होंगे । खैर ये तो अंतर्राष्ट्रीय खबर है । अपने देश में वही ढाक के तीन पात वाली कहानी चल रही है । वही पुराना भ्रष्टाचार का मुद्दा । वही प्रतियोगी परीक्षाओं के पर्चे लीक होना । वही गांगुली, वही आईपीएल ।
आज एक मज़ेदार बात भी हुयी । किसी "बुद्धिमान" पत्रकार ने वायुसेना अध्यक्ष से पूछा कि क्या भारत भी ऐसी कार्रवाई करने में सक्षम है ? उन्होंने जो जवाब दिया उसका तो कोई मतलब मेरी समझ में नहीं आया । पर मेरे विचार से, किसी चीज़ में सक्षम होना और उसको करना दोनों अलग-अलग बात है । सक्षम होने से कहीं ज्यादा कठिन है काम को पूरा करना । भारत में सक्षमता है कि वो पाकिस्तान में बैठे अपने दुश्मनों को मार सके पर उसको करने के लिए जो राजनैतिक इच्छाशक्ति चाहिए वो यहाँ किसी माई के लाल में नहीं है । अटल जी ने बहुत ट्राई मारा था पर केवल एलओसी तक ही पहुँच पाए थे ।
चलो ये सब तो चलता ही रहेगा । मैं चला निद्रा-लोक में । आजकल यहाँ कम ही लिख पा रहा हूँ । मेरे हिसाब से कारण ये है कि मेरे अन्दर की "भड़ास और रचनात्मकता (creativity), भारत में बैठे अंग्रेजों के लिये अंग्रेजी अनुवाद लिखना ज़रूरी है, कहीं और ही निकल रही है । पर आज सोचा कि "अनुभाव" के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार ठीक नहीं ।
धन्यवाद ।
आज एक मज़ेदार बात भी हुयी । किसी "बुद्धिमान" पत्रकार ने वायुसेना अध्यक्ष से पूछा कि क्या भारत भी ऐसी कार्रवाई करने में सक्षम है ? उन्होंने जो जवाब दिया उसका तो कोई मतलब मेरी समझ में नहीं आया । पर मेरे विचार से, किसी चीज़ में सक्षम होना और उसको करना दोनों अलग-अलग बात है । सक्षम होने से कहीं ज्यादा कठिन है काम को पूरा करना । भारत में सक्षमता है कि वो पाकिस्तान में बैठे अपने दुश्मनों को मार सके पर उसको करने के लिए जो राजनैतिक इच्छाशक्ति चाहिए वो यहाँ किसी माई के लाल में नहीं है । अटल जी ने बहुत ट्राई मारा था पर केवल एलओसी तक ही पहुँच पाए थे ।
चलो ये सब तो चलता ही रहेगा । मैं चला निद्रा-लोक में । आजकल यहाँ कम ही लिख पा रहा हूँ । मेरे हिसाब से कारण ये है कि मेरे अन्दर की "भड़ास और रचनात्मकता (creativity), भारत में बैठे अंग्रेजों के लिये अंग्रेजी अनुवाद लिखना ज़रूरी है, कहीं और ही निकल रही है । पर आज सोचा कि "अनुभाव" के साथ ऐसा सौतेला व्यवहार ठीक नहीं ।
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