" भ्रष्टाचार को स्वयं मनुष्य ही हरा सकता है , कोई सामाजिक शक्ति नहीं "

Wednesday, March 2, 2011

आजकल अख़बारों और समाचार चैनल पर भ्रष्टाचार के विषय में काफी लिखा बोला जा रहा है । दरअसल मुद्दा वही काले धन को वापस लाने का है । धीरे-धीरे इस मामले ने काफी तूल पकड़ लिया है । साथ 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में माननीय पूर्व मंत्री जी जेल के दर्शन भी कर चुके हैं और कल ही खबर आई कि कलमाड़ी जी के बैंक लॉकर से भरी मात्रा में सोना ज़ब्त किया । मतलब उनकी भी लंका लगने वाली है । अब ज़रा सोचिये जब 4-5 महीने से कलमाड़ी जी को दोषी बताया जा रहा था और जांच शुरू होने पर लॉकर से अभी भी काफी सोना मिल जाये तो ये बात समझ में आती है कि कितना सोना और कितना धन यहाँ-वहां हो चुका होगा ।

कभी कभी मैं सोचता हूँ कि भ्रष्टाचार से बचने का क्या उपाय हो सकता है ? हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं लेकिन केवल लोकतान्त्रिक रूप से शक्तिशाली होना ही काफी नहीं है । हमें अपने समाज में अच्छा चरित्र भी देखना है । संसद में ईमानदार और कर्मठ लोग जायें, इसकी पुष्टि हम लोगों को ही करनी है । लेकिन केवल संसद में ही ईमानदारी ज़रूरी नहीं है । सरकारी विभागों और निजी कंपनियों के कर्मचारियों और अधिकारियों में भी ईमानदारी ज़रूरी है । 2-जी स्पेक्ट्रम, S-बैंड स्पेक्ट्रम, राष्ट्रकुल खेल घोटालों में निजी कंपनियों ने बंटा धार किया है, हालांकि सरकारी सहयोग की शह पर ही ये भ्रष्टाचार की ईमारत खड़ी हो सकी ।

इतिहास बताता है कि हर काल में भ्रष्टाचार और चारित्रिक पतन जैसी समस्याएं रही हैं । ये मनुष्य की मस्तिष्क-जनित परिस्थितियाँ हैं जिन्हें स्वयं मनुष्य ही जीत सकता है ।

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