अभी अभी ख्याल आया कि क्यूँ न मैं अपनी "चिरकुट किन्तु रोचक" चित्रकारियां यहाँ पर डालूँ । इससे एक बात तो सिद्ध हो जाएगी कि बुद्धिजीवी होने का मैं कितना भी प्रयत्न कर लूं, मेरे अन्दर का "चिरकुट विचारक और सस्ता चित्रकार" बाहर आ ही जाता है । दुनिया कितनी भी ज़ालिम और गन्दी हो जाये, मुझे मेरी "काबिलियत" दिखाने से किसी के पिताजी भी नहीं रोकसकते । जो आएगा उसको देख लिया जायेगा । हीही ।
"चिरकुट विचारक और सस्ता चित्रकार"
Wednesday, March 30, 2011
Saturday, March 19, 2011
विकिलीक्स के नए धमाके से संसद में भूचाल आने वाला है । 2008 में भारत-अमेरिका परमाणु समझौते को लेकर हुए वोट में सांसदों को पैसे लेकर वोट देने की बात सामने आई है । गाहे बगाहे इस बात को सभी लोग दबी जबान से बोलते भी थे परअब काफी हद तक बात सही साबित होती दिखती है । इससे एक काम और हो गया आज कल इतने सारे धमाकों के बीच एक़ और धमाका हो गया । कांग्रेस सरकार की कुंडली देखनी पड़ेगी अब तो । पिछले 1 साल से ऐसे ऐसे "काण्ड" हुए हैं किरामायण के सारे "काण्ड" इसके सामने कुछ नहीं और अब विकिलीक्स ने भी तड़का लगा दिया । इससे बड़ा पंगा होने की उम्मीद है खासतौर पर बीजेपी कोई मौका हाथ से जाने नहीं देगी क्योंकि उनके पास और कोई काम नहीं बचा अब । वो इसमामले पर ज़रूर संसद में बवाल काटेगी और संसद नहीं चलने देगी । एक और मज़ेदार बात है कि आजकल डॉ मनमोहनसिंह भी "फ्रंटफुट" पे आकर खेलने लगे हैं । पहले तो लगता भी नहीं था कि वो बोलते भी हैं, पर आजकल वो भी "खुला खेल फरुर्खाबादी" से सहमत हैं ।
कांग्रेस का टाइम सही नहीं चल रहा है । राज्यों में भी कांग्रेस कि सरकार बड़े बड़े पंगे कर रही हैं और केंद्र सरकार तो "काण्ड" छुपाने मे लगी है । पर अचानक इतने सारे मामले कैसे सामने आ गए । दरअसल ये सारे मामले सामने लाने में कांग्रेस सरकार या कहें कि डॉ मनमोहन सिंह का ही हाथ है । २००५ में सूचना का अधिकार लाने में डॉ साहब ने पूरा दम लगाया था । सच कहें तो हमारे प्रधानमंत्री एक बेहद ईमानदार और शानदार छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विद्वान और गंभीर हैं पर उनकी भी किस्मत ऐसी है कि उनके आस पास के मंत्रीगण लूट खसोट और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं । इन सभी मामलों से प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह और उनकी पार्टी पर एक अमिट दाग लग ही गया है जो उनकी छवि के लिए बेहद घातक है ।
कांग्रेस का टाइम सही नहीं चल रहा है । राज्यों में भी कांग्रेस कि सरकार बड़े बड़े पंगे कर रही हैं और केंद्र सरकार तो "काण्ड" छुपाने मे लगी है । पर अचानक इतने सारे मामले कैसे सामने आ गए । दरअसल ये सारे मामले सामने लाने में कांग्रेस सरकार या कहें कि डॉ मनमोहन सिंह का ही हाथ है । २००५ में सूचना का अधिकार लाने में डॉ साहब ने पूरा दम लगाया था । सच कहें तो हमारे प्रधानमंत्री एक बेहद ईमानदार और शानदार छवि वाले व्यक्ति हैं । वे विद्वान और गंभीर हैं पर उनकी भी किस्मत ऐसी है कि उनके आस पास के मंत्रीगण लूट खसोट और भ्रष्टाचार में लिप्त हैं । इन सभी मामलों से प्रधानमन्त्री मनमोहन सिंह और उनकी पार्टी पर एक अमिट दाग लग ही गया है जो उनकी छवि के लिए बेहद घातक है ।
Wednesday, March 2, 2011
आजकल अख़बारों और समाचार चैनल पर भ्रष्टाचार के विषय में काफी लिखा बोला जा रहा है । दरअसल मुद्दा वही काले धन को वापस लाने का है । धीरे-धीरे इस मामले ने काफी तूल पकड़ लिया है । साथ 2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में माननीय पूर्व मंत्री जी जेल के दर्शन भी कर चुके हैं और कल ही खबर आई कि कलमाड़ी जी के बैंक लॉकर से भरी मात्रा में सोना ज़ब्त किया । मतलब उनकी भी लंका लगने वाली है । अब ज़रा सोचिये जब 4-5 महीने से कलमाड़ी जी को दोषी बताया जा रहा था और जांच शुरू होने पर लॉकर से अभी भी काफी सोना मिल जाये तो ये बात समझ में आती है कि कितना सोना और कितना धन यहाँ-वहां हो चुका होगा ।
कभी कभी मैं सोचता हूँ कि भ्रष्टाचार से बचने का क्या उपाय हो सकता है ? हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं लेकिन केवल लोकतान्त्रिक रूप से शक्तिशाली होना ही काफी नहीं है । हमें अपने समाज में अच्छा चरित्र भी देखना है । संसद में ईमानदार और कर्मठ लोग जायें, इसकी पुष्टि हम लोगों को ही करनी है । लेकिन केवल संसद में ही ईमानदारी ज़रूरी नहीं है । सरकारी विभागों और निजी कंपनियों के कर्मचारियों और अधिकारियों में भी ईमानदारी ज़रूरी है । 2-जी स्पेक्ट्रम, S-बैंड स्पेक्ट्रम, राष्ट्रकुल खेल घोटालों में निजी कंपनियों ने बंटा धार किया है, हालांकि सरकारी सहयोग की शह पर ही ये भ्रष्टाचार की ईमारत खड़ी हो सकी ।
इतिहास बताता है कि हर काल में भ्रष्टाचार और चारित्रिक पतन जैसी समस्याएं रही हैं । ये मनुष्य की मस्तिष्क-जनित परिस्थितियाँ हैं जिन्हें स्वयं मनुष्य ही जीत सकता है ।
कभी कभी मैं सोचता हूँ कि भ्रष्टाचार से बचने का क्या उपाय हो सकता है ? हम दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र हैं लेकिन केवल लोकतान्त्रिक रूप से शक्तिशाली होना ही काफी नहीं है । हमें अपने समाज में अच्छा चरित्र भी देखना है । संसद में ईमानदार और कर्मठ लोग जायें, इसकी पुष्टि हम लोगों को ही करनी है । लेकिन केवल संसद में ही ईमानदारी ज़रूरी नहीं है । सरकारी विभागों और निजी कंपनियों के कर्मचारियों और अधिकारियों में भी ईमानदारी ज़रूरी है । 2-जी स्पेक्ट्रम, S-बैंड स्पेक्ट्रम, राष्ट्रकुल खेल घोटालों में निजी कंपनियों ने बंटा धार किया है, हालांकि सरकारी सहयोग की शह पर ही ये भ्रष्टाचार की ईमारत खड़ी हो सकी ।
इतिहास बताता है कि हर काल में भ्रष्टाचार और चारित्रिक पतन जैसी समस्याएं रही हैं । ये मनुष्य की मस्तिष्क-जनित परिस्थितियाँ हैं जिन्हें स्वयं मनुष्य ही जीत सकता है ।
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