करीब 15 मिनट बाद एक "बाबू" सा दिखने वाला प्राणी मुंह में पान को भूंसे की तरह ठूंसे "जुगाली" करता हुआ प्रकट हुआ । यह "जुगाली" वह क्रिया है जो गाय, भैंस जैसे जानवर टाइम-पास के लिए करते हैं । वह आकर अपने काउंटर पर बैठ गया । मैं उसकी ओर लपका और बोला " सर, एक ड्राफ्ट बनवाना है , फॉर्म दे दीजिये । " इस पर उसने मुझे दो मिनट रुकने का इशारा किया और अपने दो रुपये के पान का पूरा पैसा वसूलने में तल्लीन हो गया । फिर थोडी देर में पान की इज्ज़त रौंदकर और उसे थूककर चीखा " लाइन में आइये । " मैंने कहा " सर, लाइन नही है, मैं अकेला ही हूँ । वैसे मैंने अपने मन में कुछ और ही कहा था कि "हम जहाँ खड़े होते हैं , लाइन वहीँ से शुरू होती है । " इस पर वो बोला " तो अकेले ही लाइन बनाकर आओ । " मैंने भी अपने अन्दर की "आग" को ज्यादा हवा न देते हुए अकेले ही लाइन बनाई (पता नही कैसे पर बनाई ज़रूर ) और ठीक उसके सामने जाकर खड़ा हो गया । अब उसने पूछा " आपका अकाउंट है यहाँ ? बिना अकाउंट के नही बनेगा ड्राफ्ट । " मैंने कहा " मेरा अपना अकाउंट है । मुझे फॉर्म दे दीजिये । " उसने भी "दानवीर कर्ण" की तरह अपने "कवच-कुंडल"..... मेरा मतलब है कि ड्राफ्ट वाला फॉर्म दे दिया । मैं एक तरफ़ होकर फॉर्म भरने लगा ।
मैं एक बात और यहाँ उद्धृत कर दूँ कि इन बैंकों में प्रयोग होने वाले फॉर्म अगर हिन्दी में हुए तो हिन्दी इतनी "फाडू" होगी कि "गिरिजा जी" (जो लोग इनको न जानते हो वोह मुझसे बाद में पूछ लें ) भी समझ न पाएं और अगर इंग्लिश में हुए तो इतने एब्रिविएशन होंगे कि आपका बाप भी उसको समझ न पाये । अब ऐसी स्थिति में अगर आपने "बाबू प्रजाति" के किसी नुमाइंदे से पूछ लिया कि फलां जगह क्या भरना है तो भैय्या वो आपके लालन-पालन, शिक्षा और सामाजिक जीवन पर ऐसा कुठाराघात करेगा कि जितना "कबीर" ने भी पुरानी कुरीतियों पर नही किया होगा । हालाँकि इतना सब कुछ मालूम होने के बावजूद भी मैंने यह गलती कर ही दी । फिर मेरे साथ भी उतना नाटक हुआ जितना होना चाहिए था । अरे भाई!! मैंने इतना बड़ा पाप जो कर दिया था और सनातन धर्म के हिसाब से मुझे सजा भी मिलनी ही थी सो मैंने सजा भोग भी ली । फिर किसी तरह इन सारी गलतियों को दुहराते-तिहराते मैंने जैसे-तैसे फॉर्म भर कर जमा किया । शाम पाँच बजे जब मुझे ड्राफ्ट मिला टो मुझे ज्ञान हो गया कि "मोक्ष" मिलने पर भी ऐसी ही अनुभूति होगी । इन सब बातों से यह भी स्पष्ट हो गया कि "सरकारी बैंक" के द्वार "मोक्ष के द्वार" के समकक्ष हैं ।
अगर किसी व्यक्ति को मेरे द्बारा कही गई बातों और "बाबू प्रजाति" जैसे शब्दों के सटीक किंतु अनुचित प्रयोग पर आपत्ति है टो मैं (FROM BOTTOM OF MY HEART) उनसे बिल्कुल माफ़ी "नहीं" मांगता हूँ और आशा करता हूँ कि वे मुझे बिल्कुल माफ़ "नहीं" करेंगे ।
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Baat saaf hai ki apne ek draft banwaya...aur woh sahi ban bhi gaya....ab karna kya hai,...aap bhi jaakar 2 go rupaiya ka paan khonsiye muh maaa aur chalte baniye.
ReplyDelete