बैंक में नौटंकी ...........(भाग-१)

Saturday, August 8, 2009

अभी जल्दी ही मेरा एक सरकारी बैंक जाना हुआ मैं बैंक का नाम नही लेना चाहता , पर भारत के बड़े सरकारी बैंकों में से एक है मेरे भाग्य में उस दिन एक ड्राफ्ट बनवाना लिखा था , शायद साथ में ये भी लिखा था कियह ड्राफ्ट इसी बैंक से बनवाना है मैं जैसे ही बैंक पहुँचा, दरवाज़े पर काफ़ी भीड़ थी जिसे देखकर ये लग रहा था की भारत में बैंकिंग का भविष्य काफ़ी सुखद है , साथ ही बैंक कर्मियों का भी अन्दर जाने में ही 10 मिनट लग गए मैंने चारों तरफ़ नज़र घुमाई और जो सबसे "कमज़ोर कर्मचारी" लगा उसकी तरफ़ कदम बढ़ा दिए मैंने उसके काउंटर पर पहुंचकर उससे पूछा " अंकल, ड्राफ्ट कहाँ बनेगा यहाँ ?" उसने कोई जवाब नहीं दिया मुझे ऐसा लगा की शायद वो सुन नही पाया तो मैंने दुबारा तेज़ आवाज़ में पूछा फिर भी कोई जवाब नही मिला मैंने तीसरी बार पूछा तो "अंकल" जी ने अपनी अकडी हुयी गर्दन ऊपर उठाई और गिद्ध जैसी छोटी पर चमकदार आंखों से मुझे घूरा और कहा, " आप देख नही रहे हैं , मैं कुछ काम कर रहा हूँ " मैंने भी अपने अन्दर के "रावण" को शांत रखकर "राम" को बाहर निकाला और कहा, "बस ये बता दीजिये की ड्राफ्ट बनता कहाँ है ?" अंकल जी ने अपनी खोपडी को रजिस्टर में घुसाए रखते हुए दूसरे काउंटर की तरफ़ इशारा किया और धीरे से उसी रजिस्टर में समाधि ले ली मैं उस काउंटर की तरफ़ गया वहां 7-8 लोग लाइन में लगे थे मैं जाकर लाइन में लग गया और अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा करीब २० मिनट बाद जब मेरा नम्बर आया तो पता लगा की ड्राफ्ट बनाने वाले "बाबूजी", ( ये "बाबूजी" वही प्रजाति है,  जिसने भारत का "कल्याण" किया है ), अभी आए नही हैं जब वो जायें तो उनसे ड्राफ्ट बनाने का फॉर्म ले लूँ और भर कर जमा कर दूँ मैं दूसरी तरफ़ जाकर खड़ा हो गया और  इंतज़ार करने   लगा  

शेष अगले भाग में .............








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