खबर आ रही है कि आरुषि तलवार के पिता डॉ. राजेश तलवार पर उत्सव शर्मा नाम के एक युवक ने कोर्ट परिसर में एक धारदार हथियार से हमला कर दिया । सबसे पहले तो समाचार चैनल वालों को बधाई कि उनको दो-तीन दिन का मसाला मिल गया । पर अचम्भे की बात तो ये है कि ये वही उत्सव शर्मा है जिसने हरियाणा के डीजीपी राठौर पर भी हमला किया था । इसका ये मतलब है कि उत्सव शर्मा के हिसाब से डॉ. तलवार और डीजीपी राठौर दोनों ही दोषी हैं और हमारा न्यायिक प्रतंत्र इन "महानुभावों" को सजा देने में नाकामयाब रहा है । इसलिए वो स्वयं सजा देने का कार्य कर रहा है । दरअसल ये तो होना ही है । मनुष्य परिणाम का भूखा होता है । वो हर कार्य और विचार का परिणाम जानना चाहता है । अगर परिणाम किसी न्यायिक मामले से जुड़ा हो तो धैर्य धोखा देने लगता है । इसी का सीधा सा उदहारण हम आज उत्सव शर्मा के रूप में देख रहे हैं । ये हमारी न्यायिक प्रणाली और सामाजिक ढांचे से आक्रोशित और क्षोभ से भरे मनुष्य का उदाहरण है । आजकल जो माहौल है उससे तो संविधान से आम आदमी का भरोसा ही उठने लगा है । अगर कोई समाधान नहीं आया तो ऐसा रोज़ होने लगेगा । आदमी का कानून से विश्वास उठ जायेगा और सामाजिक पारितंत्र तहस नहस हो जायेगा । अब ये हमारा कर्तव्य है कि हम अपने लिए, अपने आस पास ऐसा माहौल न बनाएं जो हमें खुद नहीं पसंद है ।
भरोसे की बात
Tuesday, January 25, 2011
Friday, January 21, 2011
आजकल लोकसभा में कुछ मज़ा नहीं आ रहा है । राज्यसभा तो वैसे भी "फीकी चाय" हो गयी थी जब से बड़े बुद्धिजीवी लोग चुन चुन कर आने लगे थे । पर कुछ समय पहले तक लोकसभा खौलते तेल से भरी कढ़ाही की तरह हुआ करती थी । लोग अपने भाषणों से आग लगा देते थे सदन में । पर पिछली लोकसभा और इस लोकसभा से विपक्ष भी दमदार उपस्थिति नहीं दर्ज करा पा रहा है । जब विपक्ष जानदार होता है तो सदन भी धधकता है । पर यहाँ तो "चुन्नी लाल मुन्नी" वाला हाल है विपक्ष का । सब सो रहे हैं । किसी को कोई धमाका नहीं करना । पूछे जाने वाले प्रश्नों में भी कोई दम नहीं होता है । कोई भी विपक्ष का नेता प्रश्न पूछने के पहले "रिसर्च" नहीं करता । मज़ा तो तब आये जब कोई घुमा घुमा के और भिगो भिगो के दे और सामने वाला बगली झाँकने लगे । पर यहाँ तो लगता है जैसे सब दो दो बाटली टिका के बैठे हैं । किसी में कोई जान ही नहीं है ।
दरअसल मज़बूत विपक्ष भी लोकतंत्र का एक अपरिहार्य अंग है । बहुत ज़रूरी है कि मंत्रिमंडल के सदस्य खुद को किसी ना किसी के प्रति जिम्मेदार समझें । जनता के प्रति उनकी ना तो कोई जिम्मेदारी है और ना ही जनता से कोई डर । तो कम से कम सदन में ही चार पांच लोग तो ऐसे हों जिनसे मंत्रिमंडल को कुछ भय महसूस हो । हमारे लोकतंत्र को व्यापक रूप से सफल और सुदृढ़ बनाने के लिए ये बहुत ज़रूरी है कि संसद के दोनों सदन अपनी संपूर्ण शक्ति और सामर्थ्य के साथ काम करें और इन दोनों सदनों में पक्ष और विपक्ष स्पष्ट और सभ्य रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें ।
दरअसल मज़बूत विपक्ष भी लोकतंत्र का एक अपरिहार्य अंग है । बहुत ज़रूरी है कि मंत्रिमंडल के सदस्य खुद को किसी ना किसी के प्रति जिम्मेदार समझें । जनता के प्रति उनकी ना तो कोई जिम्मेदारी है और ना ही जनता से कोई डर । तो कम से कम सदन में ही चार पांच लोग तो ऐसे हों जिनसे मंत्रिमंडल को कुछ भय महसूस हो । हमारे लोकतंत्र को व्यापक रूप से सफल और सुदृढ़ बनाने के लिए ये बहुत ज़रूरी है कि संसद के दोनों सदन अपनी संपूर्ण शक्ति और सामर्थ्य के साथ काम करें और इन दोनों सदनों में पक्ष और विपक्ष स्पष्ट और सभ्य रूप से अपने कर्तव्यों का निर्वहन करें ।
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