अकथनीय.................

Monday, October 12, 2009

मनुष्य इस संसार का सबसे अजीब प्राणी है , कम से कम मेरी नज़र में तो है । कभी कभी होता क्या है हम किसी काम को कर रहे होते हैं और हमको लगता है , यार ! यह काम मैं क्यों कर रहा हूँ ? पर फिर भी हम वो काम करते रहते हैं और काम ख़तम भी कर देते हैं बावजूद ये जाने कि हमने फलां काम काहे किया । दरअसल प्रॉब्लम यह है कि काम करते रहना हम जानते हैं पर काम के अर्थ कि समीक्षा हम मन में नही कर पाते । मनोवैज्ञानिक तथ्य कि बात मैं नही कर रहा । पर फिर भी हम किसी न किसी ऐसी शक्ति के अधीन हैं जिसकी हम अभी तक शिनाख्त नही कर पाये हैं । मनुष्य की दुनिया केवल उसके दिमाग के फ़ितूर से ही परिपूर्ण हो जाती है ।

अब देखिये " मैं ख़ुद नही समझ पा रहा हूँ कि मैं लिख क्यों रहा हूँ पर फिर भी लिखता ही जा रहा हूँ...............................अभी तक लिख रहा हूँ ........................अभी भी लिखे जा रहा हूँ............और अब देखिये काम काम ख़तम भी हो गया । "


-धन्यवाद
श्रुतकीर्ति
11अक्टूबर 2009 , लखनऊ

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