बैंक में नौटंकी .......(भाग-2)...."मोक्ष की प्राप्ति"...........
Friday, August 28, 2009
मैं एक बात और यहाँ उद्धृत कर दूँ कि इन बैंकों में प्रयोग होने वाले फॉर्म अगर हिन्दी में हुए तो हिन्दी इतनी "फाडू" होगी कि "गिरिजा जी" (जो लोग इनको न जानते हो वोह मुझसे बाद में पूछ लें ) भी समझ न पाएं और अगर इंग्लिश में हुए तो इतने एब्रिविएशन होंगे कि आपका बाप भी उसको समझ न पाये । अब ऐसी स्थिति में अगर आपने "बाबू प्रजाति" के किसी नुमाइंदे से पूछ लिया कि फलां जगह क्या भरना है तो भैय्या वो आपके लालन-पालन, शिक्षा और सामाजिक जीवन पर ऐसा कुठाराघात करेगा कि जितना "कबीर" ने भी पुरानी कुरीतियों पर नही किया होगा । हालाँकि इतना सब कुछ मालूम होने के बावजूद भी मैंने यह गलती कर ही दी । फिर मेरे साथ भी उतना नाटक हुआ जितना होना चाहिए था । अरे भाई!! मैंने इतना बड़ा पाप जो कर दिया था और सनातन धर्म के हिसाब से मुझे सजा भी मिलनी ही थी सो मैंने सजा भोग भी ली । फिर किसी तरह इन सारी गलतियों को दुहराते-तिहराते मैंने जैसे-तैसे फॉर्म भर कर जमा किया । शाम पाँच बजे जब मुझे ड्राफ्ट मिला टो मुझे ज्ञान हो गया कि "मोक्ष" मिलने पर भी ऐसी ही अनुभूति होगी । इन सब बातों से यह भी स्पष्ट हो गया कि "सरकारी बैंक" के द्वार "मोक्ष के द्वार" के समकक्ष हैं ।
अगर किसी व्यक्ति को मेरे द्बारा कही गई बातों और "बाबू प्रजाति" जैसे शब्दों के सटीक किंतु अनुचित प्रयोग पर आपत्ति है टो मैं (FROM BOTTOM OF MY HEART) उनसे बिल्कुल माफ़ी "नहीं" मांगता हूँ और आशा करता हूँ कि वे मुझे बिल्कुल माफ़ "नहीं" करेंगे ।
Tuesday, August 18, 2009
धन्यवाद !!!
Saturday, August 8, 2009
अभी जल्दी ही मेरा एक सरकारी बैंक जाना हुआ । मैं बैंक का नाम नही लेना चाहता , पर भारत के बड़े सरकारी बैंकों में से एक है । मेरे भाग्य में उस दिन एक ड्राफ्ट बनवाना लिखा था , शायद साथ में ये भी लिखा था कियह ड्राफ्ट इसी बैंक से बनवाना है । मैं जैसे ही बैंक पहुँचा, दरवाज़े पर काफ़ी भीड़ थी । जिसे देखकर ये लग रहा था की भारत में बैंकिंग का भविष्य काफ़ी सुखद है , साथ ही बैंक कर्मियों का भी । अन्दर जाने में ही 10 मिनट लग गए । मैंने चारों तरफ़ नज़र घुमाई और जो सबसे "कमज़ोर कर्मचारी" लगा उसकी तरफ़ कदम बढ़ा दिए । मैंने उसके काउंटर पर पहुंचकर उससे पूछा " अंकल, ड्राफ्ट कहाँ बनेगा यहाँ ?" उसने कोई जवाब नहीं दिया । मुझे ऐसा लगा की शायद वो सुन नही पाया तो मैंने दुबारा तेज़ आवाज़ में पूछा । फिर भी कोई जवाब नही मिला । मैंने तीसरी बार पूछा तो "अंकल" जी ने अपनी अकडी हुयी गर्दन ऊपर उठाई और गिद्ध जैसी छोटी पर चमकदार आंखों से मुझे घूरा और कहा, " आप देख नही रहे हैं , मैं कुछ काम कर रहा हूँ । " मैंने भी अपने अन्दर के "रावण" को शांत रखकर "राम" को बाहर निकाला और कहा, "बस ये बता दीजिये की ड्राफ्ट बनता कहाँ है ?" अंकल जी ने अपनी खोपडी को रजिस्टर में घुसाए रखते हुए दूसरे काउंटर की तरफ़ इशारा किया और धीरे से उसी रजिस्टर में समाधि ले ली । मैं उस काउंटर की तरफ़ गया । वहां 7-8 लोग लाइन में लगे थे । मैं जाकर लाइन में लग गया और अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा । करीब २० मिनट बाद जब मेरा नम्बर आया तो पता लगा की ड्राफ्ट बनाने वाले "बाबूजी", ( ये "बाबूजी" वही प्रजाति है, जिसने भारत का "कल्याण" किया है ), अभी आए नही हैं । जब वो आ जायें तो उनसे ड्राफ्ट बनाने का फॉर्म ले लूँ और भर कर जमा कर दूँ । मैं दूसरी तरफ़ जाकर खड़ा हो गया और इंतज़ार करने लगा ।
Friday, August 7, 2009
Thursday, August 6, 2009
Sunday, August 2, 2009
मजेदार बात तो ये है की पिताजी बूटा सिंह के भी इस मामले में शामिल होने की अटकले लगायी जा रही हैं । अब बूटा के विरोधी उनकी लेने पर तुले हैं , मेरा मतलब है उनकी जान लेने पर तुले हैं । इस सबके बीच अपने बूटा बाबू ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके ये बात सिद्ध भी कर दी है कि उनकी पुँछ पर किसी ने पैर तो रख ही दिया है तभी तो वो इतना ......रहे हैं ।
वैसे असली मज़ा तो तब आएगा जब पिता पुत्र को कोर्ट से सज़ा हो और ये जोड़ी जेल जाकर डीलिंग करे ।