बैंक में नौटंकी .......(भाग-2)...."मोक्ष की प्राप्ति"...........

Friday, August 28, 2009

करीब 15 मिनट बाद एक "बाबू" सा दिखने वाला प्राणी मुंह में पान को भूंसे की तरह ठूंसे "जुगाली" करता हुआ प्रकट हुआ । यह "जुगाली" वह क्रिया है जो गाय, भैंस जैसे जानवर टाइम-पास के लिए करते हैंवह आकर अपने काउंटर पर बैठ गयामैं उसकी ओर लपका और बोला " सर, एक ड्राफ्ट बनवाना है , फॉर्म दे दीजिये । " इस पर उसने मुझे दो मिनट रुकने का इशारा किया और अपने दो रुपये के पान का पूरा पैसा वसूलने में तल्लीन हो गयाफिर थोडी देर में पान की इज्ज़त रौंदकर और उसे थूककर चीखा " लाइन में आइये । " मैंने कहा " सर, लाइन नही है, मैं अकेला ही हूँवैसे मैंने अपने मन में कुछ और ही कहा था कि "हम जहाँ खड़े होते हैं , लाइन वहीँ से शुरू होती है । " इस पर वो बोला " तो अकेले ही लाइन बनाकर आओ । " मैंने भी अपने अन्दर की "आग" को ज्यादा हवा देते हुए अकेले ही लाइन बनाई (पता नही कैसे पर बनाई ज़रूर ) और ठीक उसके सामने जाकर खड़ा हो गयाअब उसने पूछा " आपका अकाउंट है यहाँ ? बिना अकाउंट के नही बनेगा ड्राफ्ट । " मैंने कहा " मेरा अपना अकाउंट हैमुझे फॉर्म दे दीजिये । " उसने भी "दानवीर कर्ण" की तरह अपने "कवच-कुंडल"..... मेरा मतलब है कि ड्राफ्ट वाला फॉर्म दे दियामैं एक तरफ़ होकर फॉर्म भरने लगा
मैं एक बात और यहाँ उद्धृत कर दूँ कि इन बैंकों में प्रयोग होने वाले फॉर्म अगर हिन्दी में हुए तो हिन्दी इतनी "फाडू" होगी कि "गिरिजा जी" (जो लोग इनको जानते हो वोह मुझसे बाद में पूछ लें ) भी समझ पाएं और अगर इंग्लिश में हुए तो इतने एब्रिविएशन होंगे कि आपका बाप भी उसको समझ पाये । अब ऐसी स्थिति में अगर आपने "बाबू प्रजाति" के किसी नुमाइंदे से पूछ लिया कि फलां जगह क्या भरना है तो भैय्या वो आपके लालन-पालन, शिक्षा और सामाजिक जीवन पर ऐसा कुठाराघात करेगा कि जितना "कबीर" ने भी पुरानी कुरीतियों पर नही किया होगाहालाँकि इतना सब कुछ मालूम होने के बावजूद भी मैंने यह गलती कर ही दीफिर मेरे साथ भी उतना नाटक हुआ जितना होना चाहिए थाअरे भाई!! मैंने इतना बड़ा पाप जो कर दिया था और सनातन धर्म के हिसाब से मुझे सजा भी मिलनी ही थी सो मैंने सजा भोग भी लीफिर किसी तरह इन सारी गलतियों को दुहराते-तिहराते मैंने जैसे-तैसे फॉर्म भर कर जमा किया । शाम पाँच बजे जब मुझे ड्राफ्ट मिला टो मुझे ज्ञान हो गया कि "मोक्ष" मिलने पर भी ऐसी ही अनुभूति होगीइन सब बातों से यह भी स्पष्ट हो गया कि "सरकारी बैंक" के द्वार "मोक्ष के द्वार" के समकक्ष हैं



अगर किसी व्यक्ति को मेरे द्बारा कही गई बातों और "बाबू प्रजाति" जैसे शब्दों के सटीक किंतु अनुचित प्रयोग पर आपत्ति है टो मैं (FROM BOTTOM OF MY HEART) उनसे बिल्कुल माफ़ी "नहीं" मांगता हूँ और आशा करता हूँ कि वे मुझे बिल्कुल माफ़ "नहीं" करेंगे

कर्मावेश..........

Tuesday, August 18, 2009

तबियत ख़राब होने की वजह से , " बैंक में नौटंकी " का दूसरा भाग नही लिख पाया । जल्दी ही लिखकर ऑनलाइन कर दूँगा ।

धन्यवाद !!!
--श्रुतकीर्ति

बैंक में नौटंकी ...........(भाग-१)

Saturday, August 8, 2009

अभी जल्दी ही मेरा एक सरकारी बैंक जाना हुआ मैं बैंक का नाम नही लेना चाहता , पर भारत के बड़े सरकारी बैंकों में से एक है मेरे भाग्य में उस दिन एक ड्राफ्ट बनवाना लिखा था , शायद साथ में ये भी लिखा था कियह ड्राफ्ट इसी बैंक से बनवाना है मैं जैसे ही बैंक पहुँचा, दरवाज़े पर काफ़ी भीड़ थी जिसे देखकर ये लग रहा था की भारत में बैंकिंग का भविष्य काफ़ी सुखद है , साथ ही बैंक कर्मियों का भी अन्दर जाने में ही 10 मिनट लग गए मैंने चारों तरफ़ नज़र घुमाई और जो सबसे "कमज़ोर कर्मचारी" लगा उसकी तरफ़ कदम बढ़ा दिए मैंने उसके काउंटर पर पहुंचकर उससे पूछा " अंकल, ड्राफ्ट कहाँ बनेगा यहाँ ?" उसने कोई जवाब नहीं दिया मुझे ऐसा लगा की शायद वो सुन नही पाया तो मैंने दुबारा तेज़ आवाज़ में पूछा फिर भी कोई जवाब नही मिला मैंने तीसरी बार पूछा तो "अंकल" जी ने अपनी अकडी हुयी गर्दन ऊपर उठाई और गिद्ध जैसी छोटी पर चमकदार आंखों से मुझे घूरा और कहा, " आप देख नही रहे हैं , मैं कुछ काम कर रहा हूँ " मैंने भी अपने अन्दर के "रावण" को शांत रखकर "राम" को बाहर निकाला और कहा, "बस ये बता दीजिये की ड्राफ्ट बनता कहाँ है ?" अंकल जी ने अपनी खोपडी को रजिस्टर में घुसाए रखते हुए दूसरे काउंटर की तरफ़ इशारा किया और धीरे से उसी रजिस्टर में समाधि ले ली मैं उस काउंटर की तरफ़ गया वहां 7-8 लोग लाइन में लगे थे मैं जाकर लाइन में लग गया और अपनी बारी का इंतज़ार करने लगा करीब २० मिनट बाद जब मेरा नम्बर आया तो पता लगा की ड्राफ्ट बनाने वाले "बाबूजी", ( ये "बाबूजी" वही प्रजाति है,  जिसने भारत का "कल्याण" किया है ), अभी आए नही हैं जब वो जायें तो उनसे ड्राफ्ट बनाने का फॉर्म ले लूँ और भर कर जमा कर दूँ मैं दूसरी तरफ़ जाकर खड़ा हो गया और  इंतज़ार करने   लगा  

शेष अगले भाग में .............








आज सुबह मुझे ये प्राप्त हुआ..........

Friday, August 7, 2009



ये काफ़ी मज़ेदार है......................... I M LOVIN IT.........

फोटो का बड़ा रूप देखने के लिए उस पर क्लिक करिए......




क्या हम दूसरे शाहजहाँ की आशा कर सकते हैं...........

Thursday, August 6, 2009


आप लोगों का तो पता नही पर भइया मुझे तो यही लग रहा है की मैं मुग़ल काल में आ गया हूँ । लखनऊ में जिस स्तर पर निर्माण कार्य चल रहे हैं उससे तो यही लग रहा है । बहिन मायावती जी ने जिस लगन का परिचय दिया है वो काबिले-तारीफ़ है । अरे भाई ! अपने सारे काम-काज छोड़कर जब कोई मुख्यमंत्री इतनी तन्मयता से पार्क और मूर्ति लगवाने पर तुल जाए ( चाहे लोगों को पानी, बिजली, अन्न मिल रहा हो या नहीं ) तो तारीफ़ तो करनी ही होगी ।

अच्छा एक बात और भी है कि इतना सब नाटक होने की बाद भी बहिन जी के कान पर वो तक नहीं रेंग रहा । वैसे इन सब कामों में इतना पैसा खर्च हो रहा है की अगर प्राचीन मिस्र के फ़राओ इसे देख ले तो शर्म से पानी-पानी होकर बह जाएँ और सोचें कि "यार , हम लोगों को थोड़ा और खर्चा करना चाहिए था । " वैसे इस झकड़-पकड़ के बीच बहिन जी ने अपनी एक आलीशान कोठी ( मुख्यमंत्री आवास ) ठोंक दी है । ये इतनी आलीशान है कि पकिस्तान के वजीरे आज़म की भी चीपों चीपों हो जाए और वैसे भी उनको अगर हाफिज़ सईद को पकड़ने- छोड़ने से फुर्सत मिले तब ।

खैर बात का सारांश यह है कि "शायद दूसरे ताजमहल कि आशा करना तो बेमानी होगा पर दूसरे शाहजहाँ की आशा कि जा सकती है .............."

पत्ता पत्ता (500 -500 का ) , बूटा बूटा ..............

Sunday, August 2, 2009

एक और धमाका, अनुसूचित जाति/जनजाति आयोग के अध्यक्ष बूटा सिंह के स्वीट स्वीट सुपुत्र स्वीटी सिंह (सरबजोत सिंह) ने एक बड़ा स्वीट सा काम किया है । इन महानुभाव ने नासिक के एक बिल्डर को अनुसूचित जाति / जनजाति आयोग में चल रहे एक मुक़दमे को खत्म कराने के लिए ३ करोड़ रूपये मांगे थे पर डील १ करोड़ पर जाकर सेट हुयी । पर डील इतनी ज्यादा बढ़िया सेट हो गई की सीबीआई को भी ये डील काफ़ी पसंद आ गई और इन्होने वहां जाकर डील को सही तरीके से अंजाम दे दिया । अब बाकी डीलिंग कोर्ट में होगी जहाँ इनकी बजायी जायेगी ।
मजेदार बात तो ये है की पिताजी बूटा सिंह के भी इस मामले में शामिल होने की अटकले लगायी जा रही हैं । अब बूटा के विरोधी उनकी लेने पर तुले हैं , मेरा मतलब है उनकी जान लेने पर तुले हैं । इस सबके बीच अपने बूटा बाबू ने एक प्रेस कांफ्रेंस करके ये बात सिद्ध भी कर दी है कि उनकी पुँछ पर किसी ने पैर तो रख ही दिया है तभी तो वो इतना ......रहे हैं ।
वैसे असली मज़ा तो तब आएगा जब पिता पुत्र को कोर्ट से सज़ा हो और ये जोड़ी जेल जाकर डीलिंग करे ।
 
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