मैं जिंदगी के सूखे खडंजों पर,
अकेला चला जा रहा था...आहिस्ता आहिस्ता,
मैं उसके नीचे खड़ा होकर सुस्ताने लगा,
तभी किसी ने पीछे से पुकारा-
मैंने कहा मैं ऐसा मुसाफिर हूँ,
मुझे राह नहीं मंजिल से मतलब है l
मैंने जानने की कोई कोशिश नहीं की,
मैंने सोचा गुज़रा हुआ कल होगा l
शायद कुछ कहना चाह रहा हो...
मैंने दुबारा मुड़कर देखा तो,
कई सारे साए थे पर चेहरे स्याह थे...
ध्यान दिया तो हर चेहरे में खुद को पाया,
जो मेरे गुज़रे हुए कल से निकल कर ,
मैंने खुद को देखा उन चेहरों में,