अभी जल्दी ही महाराष्ट्र के विधानसभा चुनावों के नतीजे घोषित हुए, जिसमें कांग्रेस को विजय प्राप्त हुयी । साथ ही एक राष्ट्रद्रोही की पार्टी को भी सदन का मुंह देखने का मौका मिल गया । यह हैं हमारे अत्यन्त होनहार युवा नेता राज ठाकरे । इस व्यक्ति को यह लगता है कि अगर ये हिन्दी भाषा और हिन्दी भाषियों को बुरा-भला बोलेगा तो इसको राजनैतिक फायदा होगा और तो और कुछ सीटें जीत लेने के बाद इनको यह लगने लगा है कि इनकी कार्यशैली सही भी है । पर इन महाशय की सहूलियत और ज्ञानवृद्धि के लिए ये बता दूँ ये सब करने से कुछ नही होगा । भारत की राष्ट्रभाषा हिन्दी है और किसी का बाप भी किसी को किसी भी जगह हिन्दी बोलने से नही रोक सकता । अगर राज ठाकरे की राजनीति में ज़रा सा भी दम है तो वो मुंबई से "हिन्दी फ़िल्म इंडस्ट्री" को हटा कर दिखा दें ।
कुछ दिन पूर्व जब महाराष्ट्र विधान सभा में विधायक गण शपथ ग्रहण कर रहे थे तो समाजवादी पार्टी के विधायक श्री अबू आज़मी द्वारा हिन्दी में शपथ ग्रहण करने पर महाराष्ट्र नव निर्माण सेना के कुछ "वीर-पुरुषों" ने उनके साथ हाथापाई की । बाद में एक समाचार चैनल के कार्यक्रम में एक विधायक ने तो यहाँ तक कह दिया कि उसके लिए राज ठाकरे, भारत के संविधान से ऊपर हैं । इसके बाद तो यही लगता है कि राज ठाकरे जैसे दुष्टों, पापियों और देश को बांटने का काम करने वालों को कड़ी से कड़ी सजा मिलनी चाहिए । वैसे मेरा ये मानना है कि हमारा लोकतंत्र इतना कमज़ोर नही है कि इन जैसे व्यक्तियों के तोड़ने से टूट जाएगा । सच बात तो ये है कि बड़े-बड़े महारथी आए, कुछ तो मर-खप गए, कुछ अभी तक लगे पड़े हैं और कुछ आगे भी आयेंगे पर इन महारथियों से हमारा लोकतंत्र का कुछ न तो बिगडा है और न बिगडेगा । तो भइया सौ की सीधी एक बात, परेशान होने कि ज़रूरत नही है :
" हिटलर हो या राज ठाकरे, इन सबका अंत बुरा ही होता है । "