अकथनीय.................

Monday, October 12, 2009

मनुष्य इस संसार का सबसे अजीब प्राणी है , कम से कम मेरी नज़र में तो है । कभी कभी होता क्या है हम किसी काम को कर रहे होते हैं और हमको लगता है , यार ! यह काम मैं क्यों कर रहा हूँ ? पर फिर भी हम वो काम करते रहते हैं और काम ख़तम भी कर देते हैं बावजूद ये जाने कि हमने फलां काम काहे किया । दरअसल प्रॉब्लम यह है कि काम करते रहना हम जानते हैं पर काम के अर्थ कि समीक्षा हम मन में नही कर पाते । मनोवैज्ञानिक तथ्य कि बात मैं नही कर रहा । पर फिर भी हम किसी न किसी ऐसी शक्ति के अधीन हैं जिसकी हम अभी तक शिनाख्त नही कर पाये हैं । मनुष्य की दुनिया केवल उसके दिमाग के फ़ितूर से ही परिपूर्ण हो जाती है ।

अब देखिये " मैं ख़ुद नही समझ पा रहा हूँ कि मैं लिख क्यों रहा हूँ पर फिर भी लिखता ही जा रहा हूँ...............................अभी तक लिख रहा हूँ ........................अभी भी लिखे जा रहा हूँ............और अब देखिये काम काम ख़तम भी हो गया । "


-धन्यवाद
श्रुतकीर्ति
11अक्टूबर 2009 , लखनऊ

स्वतंत्रता मुफ्त में नही मिलती........................

Wednesday, October 7, 2009

अभी जल्दी ही मैंने एक किताब पढ़नी शुरू की । किताब का नाम है " Freedom is not Free" इसके लेखक प्रख्यात वक्ता और शिक्षाविद ''शिव खेड़ा" हैं । किताब काफ़ी अच्छी है लेकिन केवल अच्छा होना ही इसकी लोकप्रियता का कारण नही है । किताब में जिन बातों का उल्लेख है, वो सही में काफ़ी ध्येय हैं । लेखक ने जिस बात पर ज़ोर दिया है , वो हम सबके दैनिक जीवन से जुडा हुआ है । सबसे महत्त्वपूर्ण बात ये कही गई है कि " If we are not part of the solution, then we are the problem". अब अगर कुछ समझ में आ रहा है तो बात ये है कि हम सभी को अपने आस पास कि समस्याओं के लिए ख़ुद उसके समाधान का भाग बनना होगा । कुछ न करने से हम उस समस्या में भागीदार हो रहे हैं न कि उसके समाधान के । क्या हम ये चाहते हैं कि हमारे अगले 50 साल भी वैसे ही हों जैसे पिछले 50 साल थे ? मेरे ख्याल से ज्यादातर लोग ऐसा "नही" चाहेंगे । यार !! सबसे आसान काम यही है कि हम ख़ुद को ही ठीक कर लें । यह सबसे आसान काम है । कोई झंझट ही नही । तब सब कुछ ठीक हो सकेगा । मैं कोई प्रवचन नही दे रहा । मैं ख़ुद इसके mood में नही हूँ । मैं ये नही कह रहा कि हर आदमी "भगवान् राम" जैसा मर्यादा पुरुषोत्तम और "गाँधी " जैसा सत्य-अहिंसावादी हो जाए । एक सामान्य, साधारण और सरल आदमी भी चलेगा । तो भइया !! सौ की सीधी एक ही बात है :
"खुदा से पहले ख़ुद को जानो " ™
-श्रुतकीर्ति
08/10/09........00.15 am
रायबरेली
 
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