अनुभाव
विचार एवं अभिव्यक्ति
skip to main
|
skip to sidebar
सुलगते रहना है...
Friday, June 29, 2012
" जल के खाक़ हो जाना,
मुझे मंज़ूर नहीं,
मुझे तो-
सुलगते रहना है... "
1 comment:
Kaveesha
August 14, 2012 at 1:01 PM
Great!! very touchy!
Reply
Delete
Replies
Reply
Add comment
Load more...
Comment To Karo.....
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
Popular Posts
स्वतंत्रता मुफ्त में नही मिलती........................
अभी जल्दी ही मैंने एक किताब पढ़नी शुरू की । किताब का नाम है " Freedom is not Free " इसके लेखक प्रख्यात वक्ता और शिक्षाविद '...
" न्यूज़ चैनल वालों को दीवार में चुनवा देना चाहिए "
बात अभी अभी की है । एक न्यूज़ चैनल पर अभी खबर आई की दंतेवाडा में नक्सलियों ने CRPF के 55 जवान मार दिए हैं । फिर इस खबर पर विश्लेषण शुरू हुआ ।...
फोन उठाना ज़रूरी है क्या ?
एक बात मेरी समझ में नहीं आती कि " घंटी बजने पर फोन उठाना ज़रूरी है क्या ? अगर नहीं उठाया तो कौन सा पहाड़ टपक जायेगा । फ़ोन ही तो है, नह...
"कुछ वैचारिक प्रतिरोध"
क्या लिखूं यार ? कुछ वैचारिक प्रतिरोध सा महसूस हो रहा है आजकल । लेकिन ये प्रतिरोध केवल लिखने के वक़्त ही महसूस होता है । दिनभर चाहे जितनी बक...
भारतीय सेना : देश का गौरव
पिछले एक हफ्ते में कुछ ऐसी बातें हुयीं जिनके कारण मैं ये लेख लिख रहा हूँ । मैं उन बातों का उल्लेख नहीं करूँगा , पर य...
आज सुबह मुझे ये प्राप्त हुआ..........
ये काफ़ी मज़ेदार है......................... I M LOVIN IT......... फोटो का बड़ा रूप देखने के लिए उस पर क्लिक करिए......
"जीना इसी का नाम है"
कुछ दिन पहले मैंने एक मैगजीन में एक आर्टिकल देखा और उसे पढने के बाद मुझे मेरा अस्तित्व "तुच्छ" प्रतीत होने लगा । यह लेख वर्ष 2008 ...
" मैं मुसाफिर हूँ, मुझे राह नहीं मंजिल से मतलब है "
मैं जिंदगी के सूखे खडंजों पर, अकेला चला जा रहा था...आहिस्ता आहिस्ता, दूर कहीं एक पेड़ दिखा, जो मुरझाया सा लगा, मैं उस...
ट्रेन रिज़र्वेशन का झमेला
कुछ दिन पहले की बात है मुझे रिज़र्वेशन कराने का सौभाग्य (?) प्राप्त हुआ । मैं रायबरेली से दिल्ली का रिज़र्वेशन करा रहा था । ट्रेन थी पद्मावत...
" अहिंसा किसी एक व्यक्ति-मात्र को प्रभावित नहीं करती, ये वो गंगा है जो पूरे समाज को पाप-मुक्त बनाती है "
कुछ दिन पहले मेरी एक "भाई साब" से गरमा-गर्म, तड़कती- फड़कती बहस हो गयी कि क्या गाँधी आज के समय में उतने ही प्रासंगिक हैं, जितने वो ...
Blog Archive
►
2013
(1)
►
March
(1)
▼
2012
(6)
▼
June
(3)
यादें भी वो सभी...
सुलगते रहना है...
ग़म का पता
►
May
(1)
►
January
(2)
►
2011
(39)
►
December
(2)
►
October
(2)
►
September
(2)
►
August
(4)
►
July
(3)
►
June
(4)
►
May
(11)
►
April
(5)
►
March
(3)
►
February
(1)
►
January
(2)
►
2010
(42)
►
November
(1)
►
October
(2)
►
September
(5)
►
August
(5)
►
July
(4)
►
June
(1)
►
May
(4)
►
April
(7)
►
March
(10)
►
January
(3)
►
2009
(17)
►
November
(2)
►
October
(2)
►
September
(2)
►
August
(6)
►
July
(5)
FREE BLOGGER TEMPLATE BY
DESIGNER BLOGS
Great!! very touchy!
ReplyDelete